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सीवर के साथ आ रहे इंडस्ट्री के पानी को ट्रीट करने के लिए अव्वल तो एसटीपी बहुत कम हैं, वहीं जो हैं भी वो जिम्मेदारी नहीं निभा रहे। पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड ने जयपुर सहित प्रदेश के ट्रीटमेंट प्लांट के पानी की जांच कराई है। 78 में 30 ट्रीटमेंट के नाम पर प्रदूषित पानी को ही पास कर रहे हैं। एनजीटी के आदेश के बाद बोर्ड ने जांच के दायरे को सख्त (बीओडी को 40 से घटाते हुए 10 तक) किया है, लेकिन सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट की आउटडेटड टेक्नोलॉजी इस पर खरा नहीं उतर रही है।
मिलीभगत ऐसी कि प्रतिमाह जेडीए ही 30-30 एमएलडी के रालावता-गजधरपुरा एसटीपी पर पौने 4 करोड़ के बिल पास कर रहा है। मतलब साफ है जिसके लिए प्लांट लगे हैं, वो पूरे नहीं हो रहे जबकि सरकारी धन का दुरुपयोग जरूर हो रहा है। निगम के अधीन शहर के सबसे बड़े देलावास ट्रीटमेंट (62.50) प्लांट तो बरसों से दोगुना पानी सीधे छोड़ रहा है। इनका सीधा असर हमारी सेहत पर पड़ रहा है। इनसे सींची जाने वाली सब्जियां हमें गंभीर बीमारियां दे रही हैं।
जयपुर के ये एसटीपी फेल पाए गए
निगम-जेडीए के 3 बड़े एसटीपी भी आउटडेटेड
चिंता का विषय ये: 22 से 25 मार्च तक एमएनआईटी में पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड ने 15 जिलों के इंजीनियर्स के साथ एक सेमिनार का आयोजन किया। सामने आया कि वर्तमान में अपशिष्ट जल 1500 मिलियन लीटर से अधिक है, जबकि फिलहाल केवल 700 मिलीलीटर पानी का ही उपचार हो पा रहा है। एक्सपर्ट ने इन हालात पर चिंता जताई कि जल्द से जल्द नए सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट बनाए जाएं। साथ ही जो चल रहे हैं, उनकी तकनीक को तुरंत उन्नत किया जाए।
कैडमियम और लेड से पेट का कैंसर हो सकता है
चिकित्सा विभाग ने सांगानेर, प्रतापनगर और दिल्ली रोड मानसागर जैसे अनेक क्षेत्रों से सैंपल लिए थे। इनमें कैडमियम 50 की जगह 100, लेड 100 की जगह 176 माइको मिलीग्राम पाया गया। इसके अलावा हैवी मेटल और पेस्टीसाइड भी मिले। गेस्ट्रेंटोलॉजिस्ट डॉ. सुनील गुप्ता का कहना है कि इन सब्जियों में कैडमियम से पेट दर्द, उल्टी-दस्त, फेफड़ों की बीमारी, कैंसर हो सकता है। मुनाफा कमाने के चक्कर में गंदे नालों में सब्जियां उगाकर और केमिकल मिलाकर सेहत के साथ खिलवाड़ किया जा रहा है। ऐसे में सब्जियों को पानी में अच्छे से धोकर ही पकाना चाहिए।
गड़बड़ी क्या? प्रदूषित जल को शोधन करने वाले बीओडी के स्टैंडर्ड 10 से ज्यादा, सीओडी 50 के स्टैंडर्ड से अधिक तो टीएसएस (टोटल सस्पेक्टेड सॉलिड्स) तय 20 मानकों से कहीं ज्यादा मिले।
स्टैंडर्ड फेल होने की वजह?
अब क्या? प्रदूषण नियंत्रण मंडल ने जिम्मेदारों को हालात सुधारने की चेतावनी दी है। अन्यथा नियमानुसार कंसेंट (संचालन समत्ति) खारिज करने के पावर।
पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड ने एसटीपी के पानी की गुणवत्ता जांची है, जिसमें कई के नतीजे अच्छे नहीं है। ट्रैनिंग करवा रहे हैं, ताकि जागरुकता बढ़े।
-गोविंद सागर, सदस्य सचिव, पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड
रालावता-गजधरपुरा की तकनीक पुरानी है। अब एनजीटी ने अपने स्टैंडर्ड और सख्त कर दिए हैं। इस ओर जरूरी कदम उठाएंगे।
-एनसी माथुर, निदेशक इंजीनियरिंग, जेडीए
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