नाट्य कला मंच पर दिखा गुगला बाबा का ज्ञान:जीवन और आधुनिक उपकरणों के बिच उठापक, एक्स्पेरिमेंत्ल नाटक जो सोचने पर करता है मजबूर

जयपुर6 महीने पहले
  • कॉपी लिंक
40 दिनों की महनत में दिखी जीवन और आधुनिक उपकरणों के बिच की उठापक - Dainik Bhaskar
40 दिनों की महनत में दिखी जीवन और आधुनिक उपकरणों के बिच की उठापक

40 दिवसीय नाट्य कार्यशाला के बाद तैयार नाटक गुगल बाबा की परफॉर्मेंस ने जम कर तालियां बटोरी। ओम प्रकाश सैनी के निर्देशन और अंजलि सैनी, आदित्य सैनी के सहायक निर्देशन में बना ये नाटक जीवन और आधुनिक उपकरणों के बीच घूमता है।

40 दिवसीय थिएटर वर्कशॉप के बाद दिखा गुगल बाबा का जादू
40 दिवसीय थिएटर वर्कशॉप के बाद दिखा गुगल बाबा का जादू

गूगल बाबा आज के उस समाज की कहानी है जिसमें हर इन्सान किसी भी तरह की जानकारी के लिये सिर्फ और गूगल पर ही निर्भर हो गया है जिसमें चाहे शहर लोग हो या गाँव के आज हर व्यक्ति के पास स्मार्ट फोन है चाहे अनपड हो या पढ़ा लिखा सब लोग स्मार्ट चलाना जानते है | और सभी लोग अब गूगल पर निर्भर हो गये है | आधुनिक युग एवं तकनीकी के चलते हमारा भी आधुनिक होना इतना आवश्यक हो गया है की हमारे हाथ में एक अलग ही दुनिया का रिमोट आ गया हो | इसमें हमें लगता है की हम दुनिया को चला रहे है |

नाटक दिखाता है कैसे आज के युग के सभी लोग अब गूगल पर निर्भर हो गये है
नाटक दिखाता है कैसे आज के युग के सभी लोग अब गूगल पर निर्भर हो गये है

जबकि हकीकत ये है की एक छोटी मशीन हमारे पुरे मस्तिष्क के साथ दिल और दिमाग को कंट्रोल कर हमारी भावनाओं से खेल रही हमें पूरी तरह से सोसियल नेटवर्क के जाल फंसा रही है – जिससे इन्सान की संवेदना भी मरती जा रही है | हम मोबाईल के जरिये पूरी दुनिया से तो जुड़ गये है लेकिन हम अपने सभी लोगों से उतने ही दूर हो गये है | इसके साथ जितने आज इसके फायदे है उससे ज्यादा इसके नुकसान है।

गुगला को अपना भगवान बना चुके के जिसके बिना उनकी जिंदगी बेमतलब और बेबुनियाद हो गई है।
गुगला को अपना भगवान बना चुके के जिसके बिना उनकी जिंदगी बेमतलब और बेबुनियाद हो गई है।

जीवन और इन आधुनिक उपकरणों के बिच की की उठापक के इर्द गिर्द घूमता हुआ एक एक्स्पेरिमेंत्ल नाट्य प्रस्तुति है गूगल बाबा |

नाटक में प्रवीण कुमावत और फूलचंद सैनी ने संगीत निर्देशन की कमान संभाली थी।

नाट में दिखाया है की कैसे आज हमारी जिंदगी पर आधूनिक उपकरणों ने कबजा कर लिया है
नाट में दिखाया है की कैसे आज हमारी जिंदगी पर आधूनिक उपकरणों ने कबजा कर लिया है
ओम प्रकाश सैनी के निर्देशन में बने इस नाटक ने आज के युग के कई पहलुओं पर रोशनी डालने की कोशिश की है।
ओम प्रकाश सैनी के निर्देशन में बने इस नाटक ने आज के युग के कई पहलुओं पर रोशनी डालने की कोशिश की है।

नाटकवाला मंच की नीव रखने वाले एवं राजस्थान विश्विद्यालय के नाट्य विभाग के पूर्व छात्र रहे ओम प्रकाश सैनी का कहना है की मैंने नाटक की दुनिया रंगमंच में आना ही एक नाटकीय घटना है | किन्तु रंगमंच में आने के बाद मुझे रंगमंच करने में काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ा सबसे बड़ी समस्या गाँव से शहर आना और अपनी रंगमंच की कला का प्रदर्शन अपने क्षेत्र के लोगो को ना दिखा पाना बन गयी वैसे ही हर समाज रंगमंच एवं नाटक जैसे विधा को हासिये की नजर से देखता है और फिर जब मेरे जीवन का लक्ष्य ही जीवन पर्यन्त रंगमंच करना है तो मैं अपने आप को जीवन भर हासिये का पात्र बन कर तो नहीं रह सकता है | इसका एक ही उपाय है की जिस समाज में आप रहते हो उस समाज के लोगो को रंगमंच की समझ विकसित की जाये उसी का परिणाम है मेरे इसी विचार से आमेर में नाटकवाला कला मंच की नीव पड़ी |

खबरें और भी हैं...