एसएमएस मेडिकल कॉलेज के डॉक्टर्स ने रिसर्च कर पहली बार पता लगाया है कि वसा की कोशिकाओं से स्रावित होने वाले साइटोकाइंस के बदलाव से डायबिटीज और एथिरोस्क्लेरोसिस (हार्ट से जुड़ी बीमारियां) हो सकती हैं। अभी तक माना जाता था कि हार्ट और डायबिटीज की आशंका मोटे लोगों में अधिक होती है लेकिन इस रिसर्च में सामने आया कि मोटे हों या पतले, वसा की कोशिकाओं से परिवर्तन लगभग समान हाेता है और बीमािरयों का खतरा भी बराबर रहता है।
एसएमएस के स्किन और एंडोक्राइनोलॉजी विभाग ने कॉलेज की मॉलीक्यूलर जैनेटिक लैब में चर्म रोग विभागाध्यक्ष डॉ. दीपक माथुर के निर्देशन में एंडोक्राइनोलॉजी विभाग के सीनियर प्रोफेसर डॉ. संदीप माथुर, डॉ. नैंसी, डॉ. रचिता माथुर और डॉ. कृतिका अग्रवाल की टीम ने यह रिसर्च किया है। यह स्विटजरलैंड से प्रकाशित एस. कारगेर एजी बेसल जनरल में प्रकाशित हुआ है।
एशिया मूल की लड़कियों में समस्या अिधक सामने आई
डाॅ. दीपक माथुर ने बताया कि एशिया मूल की लड़कियों में वसा की कोशिकाओं संबंधी विकार (रोग) सबसे अधिक होते हैं। इनमें हाइपरएंड्रोजेनिज्म (मुंह पर बाल व मुंहासे), इंसुलिन रेजिस्टेंस, एकनथोसिसमेग्रीकेंस (गर्दन पर काली धारियां) व हेयर सिंड्रोम प्रमुख हैं। इस पर लड़कियों में वसा की कोशिकाओं की कार्यप्रणाली का अध्ययन किया गया। इन कोशिकाओं से स्रावित साइटोकाइंस, (लेप्टिन, एडिपोनेस्टिंग) पर रिसर्च में सामने आया कि स्रावित होने वाले लेवल में काफी बदलाव होता है।
ऐसा रिसर्च पहले कभी नहीं हुआ। हम कई साल से इस पर काम कर रहे थे। यह प्रमुख जनरल में प्रकाशित हुआ है और दुनिया के डॉक्टर्स डिटेलिंग में जुटे हैं। इस रिसर्च के बाद लोगों में वसा की कोशिकाओं के कारण होने वाली डायबिटीज और हार्ट डिजीज को रोका जा सकेगा। - डॉ. दीपक माथुर, चर्म रोग विभागाध्यक्ष, एसएमएस मेडिकल कॉलेज
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