पूर्व डिप्टी CM सचिन पायलट गुट के आक्रामक रहे विधायकों की एक महीने से खामोशी है। यह चुप्पी सियासी हलकों में किसी राजनीतिक तूफान का संकेत मानी जा रही है। कोरोनाकाल की वजह से अभी साफ नहीं हो रहा है, लेकिन राजनीतिक जानकार कहते हैं कि कुछ तो होने वाला है। एक महीने पहले पायलट खुद कह चुके है कि सुलह कमेटी में जो बातें हुई थी, उन पर अविलंब कार्रवाई होनी चाहिए, अब देरी का कोई कारण नहीं बनता। पायलट के बयान के एक महीने बाद भी आक्रामक रहे उनके समर्थक विधायकों ने एक भी बयान नहीं दिया है, यह राजस्थान में चर्चा का विषय बना हुआ है।
राजनीतिक जानकार इसे अस्थाई शांति मान रहे हैं, कोरोना से हालात सामान्य हाेते ही इस मुद्दे पर खींचतान तय मानी जा रही है। कुछ समय के लिए मुख्यमंत्री खेमा डिले टेक्टिस अपनाकर मामले को खींचने के कवायद में था, कोरोना ने वह मौका दे दिया है लेकिन जानकारों के मुताबिक यह रणनीति ज्यादा दिन कारगर होती नहीं दिख रही।
सचिन पायलट और उनके खेमे के विधायक लगातार सुलह कमेटी में तय हुए मुद्दों पर कार्रवाई की मांग कर रहे थे। 14 अप्रैल तक भी सचिन पायलट और उनके समर्थक मुखर होकर अपनी मांगों का समाधान निकालने की मांग कर रहे थे, अचानक कोरोना बढ़ने के बाद कांग्रेस की अंदरूनी सियासत का नरेटिव बदल गया और एकबार कुछ समय के लिए पायलट खेमा शांत हुआ है। सचिन पायलट खेमे के विधायकों ने कहा है कि अब पहला फोकस कोरोना से लड़ने का है, कोरोना से हालात सामान्य होने के बाद राजनीतिक मुद्दों पर ध्यान दिया जाएगा।
विश्वेंद्र ने सोशल मीडिया एकाउंट बंद किए, बाकी विधायकों की रहस्यमयी चुप्पी
सचिन पायलट खेमे के हमेशा मुखर रहने वाले विश्वेंद्र सिंह अपने ट्वीटर फेसबुक अकांउट बंद कर चुके हैं और इन दिनों किसी तरह का बयान भी नहीं दे रहे हैं। सचिन समर्थक विधायकों की चुप्पी के पीछे एक तय रणनीति है। पायलट खेमा फिलहाल यह नहीं दिखाना चाहता कि उनके लोग बगावती तेवर अपनाए हुए हैं, इसलिए फिलहाल बयानबाजी रोक दी गई है। मंत्रिमंडल विस्तार और राजनीतिक नियुक्तियों की बारी आने पर उग्र तेवर निगेटिव नहीं चले जाएं, इसलिए रणनीति के तहत यह तरीका अपनाया गया है। विधानसभा के बजट सत्र के दौरान एसी-एसटी और अलपसंख्यक विधायकों की आवाज बंद करने और उनके इलाकों में विकास के कामों में भेदभाव के आरोप लगाने वाले विधायक रमेश मीणा, मुरारी मीणा, वेदप्रकाश सोलंकी, हेमाराम चौधरी और बृजेंद्र ओला भी रहस्यमय चुप्पी साधे हुए है। बड़े से बड़े मुद्दे पर भी कुछ नहीं बोल रहे।
पायलट खेमे की शांति अस्थायी, कभी भी गर्मा सकता है मुद्दा
कांग्रेस के जानकारों का मानना है कि सचिन पायलट खेमा कोरोना के कारण भले शांत हो गया हो, लेकिन जैसे ही हालात सामान्य होंगे, यह खेमा फिर मुखर होकर अपने मुद्दों के समाधान की मांग उठाएगा। घोषणा पत्र और जनता से किए वादों पर सरकार-संगठन से एक्शन टेकन रिपोर्ट की मांग करेगा। कांग्रेस के जानकार अंदरूनी सियासत में हलचल मचना तय मान रहे हैं।
सचिन पायलट ने 14 अप्रैल को कहा था- देरी का कोई कारण नहीं बचा
सचिन पायलट ने 14 अप्रैल को कहा था- कई माह पहले एक कमेटी बनी थी। मुझे विश्वास है कि अब और ज्यादा विलंब नहीं होगा। जो चर्चाएं की थीं और जिन मुद्दों पर आम सहमति बनी थी, उस पर तुरंत प्रभाव से कार्यवाही होनी चाहिए। ऐसा होगा मुझे लगता है। मुझे सोनिया गांधी पर पूरा विश्वास है, उनके आदेश पर ही कमेटी बनी थी। अभी कमेटी में दो सदस्य हैं। उपचुनाव पांच राज्यों के चुनाव थे, वह भी समाप्त होने को हैं मुझे नहीं लगता कि अब कोई ऐसा कारण है कि उस कमेटी के निर्णयों के क्रियान्वयन में और अधिक देरी होगी।
पायलट खेमा सत्ता में भागीदारी के साथ अपने मुद्दों के समाधान की मांग कर रहा है
सचिन पायलट खेमे की पिछली जुलाई में बगावत के बाद अगस्त के दूसरे सप्ताह में सुलह हो गई थी, उस वक्त अहमद पटेल, केसी वेणुगोपाल और प्रभारी महासचिव को शामिल करते हुए तीन सदस्यीय कमेटी बनाई थी। इस कमेटी को पायलट खेमे की मांगों को सुनकर हाईकमान को रिपोर्ट देनी थी और समाधान का रास्ता निकालना था। सुलह कमेटी में शामिल अहमद पटेल का देहांम हो चुका है।
केसी वेणुगोपाल और अजय माकन इस कमेटी में हैं, पायलट और उनके खेमे के विधायक कमेटी के सामने बात रख चुके हैं। पायलट खेमा सत्ता और संगठन में अपनी सम्मानजनक भागीदारी चाहता है। पायलट खेमा अपने 5 समर्थक विधायकों को मंत्री बनाने, राजनीतिक नियुक्तियों में भी भागीदारी की मांग कर रहा है।
गहलोत-पायलट खेमे की खींचतान की वजह से ही मंत्रिमंडल विस्तार और बड़ी राजनीतिक नियुक्तियां अटकी
प्रदेश में अभी मंत्रिपरिषद में मुख्यमंत्री के अलावा 20 मंत्री हैं। विधानसभा की कुल सदस्य संख्या के 15 फीसदी मंत्री बन सकते हैं। राजस्थान में मुख्यमंत्री सहित ही 30 मंत्री बनाए जा सकते हैं। अभी 9 मंत्री और बनाए जा सकते हैं। जुलाई में बगावत के बाद सचिन पायलट, विश्वेंद्र सिंह और रमेश मीणा को बर्खास्त किया गया था। बताया जाता है कि पायलट खेमे से सुलह के बाद लगातार खींचतान जारी है। सचिन पायलट खेमे ओर सीएम अशोक गहलोत के बीच जारी खींचतान की वजह से ही मंत्रिमंडल विस्तार और बड़ी राजनीतिक नियुक्तियां अटकी हुई हैं।
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