दिव्या ने नशीली दवाओं के मामले में आरोपी के पिता से डीजीपी को लिखवाया परिवाद- निष्पक्ष जांच हो
एसओजी की एएसपी दिव्या मित्तल ने नशीली दवा के जिस केस में गिरफ्तारी का डर दिखाकर हरिद्वार की फार्मा कंपनी के मालिक से 2 करोड़ रु. की घूस मांगी, उसकी जांच ‘ऊपरवालों’ की मेहरबानी से ही मिली थी। जांच दिव्या को ही मिलेगी- इसके लिए वह पूरी तरह आश्वस्त थी।
भास्कर पड़ताल में सामने आया कि 11 करोड़ रु. की नशीली दवाओं की खेप पकड़ने के आरोप में नागौर के गोटन का कमल मौर्य भी आरोपी था। दिव्या ने उसके पिता पूनाराम से तत्कालीन डीजीपी एमएल लाठर को निष्पक्ष जांच करने के परिवाद दिलवाया। कहा कि इसके बाद जांच उसी के पास आएगी। पूनाराम के परिवाद पर डीजीपी ने मामला सीधे एसओजी को सौंप दिया। उन्होंने न एसपी, आईजी या एडीजी क्राइम से तथ्यात्मक रिपोर्ट मांगी न खुद केस की फाइल देखी। एक्सपर्ट्स के अनुसार, ऐसा बहुत कम होता है कि परीक्षण किए बिना जांच सीधे एसओजी को सौंपी जाए। सवाल उठ रहा है कि इस मामले में क्या परिस्थिति रही? दरअसल, नशीली दवाओं के खेप को लेकर अजमेर के 2 थानों में 3 एफआईआर दर्ज थीं। अलवर गेट थाने की एफआईआर में कमल मौर्य भी आरोपी था।
वह फार्मा कंपनियों और माल लेने वालों की बीच की कड़ी था। इसलिए पुलिस उसे सरगर्मी से तलाश रही थी। उसके पिता ने 23 जून 2021 को डीजीपी को परिवाद देकर बेटे को बेकसूर बताया। अनुसंधान अधिकारी को सही जांच करने के निर्देश देने की प्रार्थना की। डीजीपी ने एडीजी (एसओजी) को मार्क करते हुए निर्देश दिया कि मामले का परीक्षण करें और निष्पक्ष जांच सुनिश्चित करें। एडीजी ने केस डायरी देखने के बाद 3 जुलाई को एसओजी की अजमेर चौकी पर तैनात सीआई भूराराम खिलेरी को जांच अधिकारी बना दिया। दिव्या मित्तल इसी चौकी पर एएसपी थीं। उन्होंने खिलेरी काे अपने इशारों पर चलाने की कोशिश की, लेकिन वह तैयार नहीं हुए। इस बीच, हाई कोर्ट ने एक आरोपी की जमानत याचिका पर सुनवाई करते हुए 21 दिसंबर 2021 को डीजीपी को निर्देश दिए कि इसकी जांच कम से कम एएसपी स्तर के अधिकारी से करवानी चाहिए। इसकी पालना में दिव्या मित्तल को जांच अधिकारी बना दिया। कमान हाथ में आते ही दिव्या ने मनमानी शुरू कर दी।
सूत्रों के अनुसार, कमल जांच के दौरान ही दिव्या मित्तल के दलाल बर्खास्त पुलिसकर्मी सुमित के संपर्क में आया। केस की कमान अपने पास आने के बाद कमल ने सरेंडर किया। केस की अहम कड़ी होने के बावजूद पूछताछ नोट में सिर्फ इतना लिखा कि मैं तो मुख्य आरोपी श्याम सुंदर मूंदड़ा के लिए 20 हजार रुपए में काम करता था।
जिस सीओ को रेंज से बाहर करवाया, उसकी जांच सही मानी
दिव्या ने पिछले साल 22 मार्च को हाई कोर्ट में केस की तथ्यात्मक रिपोर्ट पेश की। इसमें पहले के तीनाें जांच अधिकारियों की भूमिका पर सवाल खड़े किए। सबसे गंभीर आरोप तत्कालीन सीओ मुकेश सोनी पर लगाया गया कि उन्होंने मुख्य आरोपी श्याम मूंदड़ा के खिलाफ एनडीपीएस एक्ट की धारा 08/22 को हटाकर धारा 08/29 लगाई। इसी रिपोर्ट के आधार पर हाई कोर्ट ने कार्रवाई को कहा तो पुलिस मुख्यालय ने मामले की जांच कर चुके सोनी, सीआई भूराराम खिलेरी और क्लॉक टावर थाना प्रभारी दिनेश कुमावत को रेंज से बाहर कर दिया। एसओजी के एसपी गौरव यादव की ओर से 7 अप्रैल को सुप्रीम कोर्ट को भेजी गई दूसरी रिपोर्ट में इसे खारिज कर दिया। रिपोर्ट में लिखा कि सोनी ने एक्ट के प्रावधानों के मुताबिक सही कार्रवाई की।
लाठर बोले- नशीली दवा का मामला था, इसलिए जांच दी
तत्कालीन डीजीपी एमएल लाठर बोले- मामला नशीली दवाओं से जुड़ा था। बड़े गैंग के शामिल होने की आशंका थी। इसलिए जांच एसओजी को दी। मैंने एडीजी एसओजी को एग्जामिन कर निष्पक्ष जांच को कहा था।
एसपी-आईजी या एडीजी क्राइम से रिपोर्ट मांगनी थी
डीजीपी के पास किसी भी मामले की जांच बदलने का हक है, लेकिन केस के हिसाब से एसपी, आईजी या एडीजी क्राइम से रिपोर्ट मांगते हंै। इसके आधार पर जांच का फैसला होता है। बिना परीक्षण सीधे जांच एसओजी को देना बहुत कम होता है।
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