दुनियाभर को कोरोना बांटने वाला चीन अब इलाज में मरहम की महंगाई का दर्द दे रहा है। वजह; कोरोना फैलने के बाद दवाइयों की डिमांड बढ़ना और वहां से आने वाले कच्चे माल की कीमतों का बढ़ना है। नतीजा यह हुआ है कि पैरासिटामोल से लेकर ब्लड प्रेशर, हार्ट, न्यूरो, एंटीबायोटिक जैसी महत्वपूर्ण दवाइयों की कीमत भी 25% तक बढ़ गई।
परेशानी का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि मरीजों को जो दवाएं 30% तक डिस्काउंट पर मिलती थीं, अब घटकर 5-7% तक रह गया है। मेडिकल संचालकों का कहना है कि दवा कंपनियों ने मार्जिन कम कर दिया है। इसलिए डिस्काउंट में कमी की गई है।
अभी देश में 12 मिलियन टन तक एपीआई (एक्टिव फार्मास्यूटिकल इंटीग्रेडेंट) आयात किया जाता है, जिसकी कीमत 24900 करोड़ रु. तक होती है। बजट सत्र 2013-2014 में गहलोत सरकार ने उदयपुर के औद्योगिक क्षेत्र कलड़वास में फार्मास्यूटिकल जोन के लिए 64 एकड़ जमीन व 700 करोड़ रु. निवेश की घोषणा की, जो आगे नहीं बढ़ी।
दवा हो या जांच... सभी की कीमतें पूरे देश में बढ़ी हैं। चीन से आने वाला कच्चा माल महंगा हुआ है तो जांच किट के दाम भी बढ़े हैं। अस्पतालों में कोविड किट के खर्च भी बढ़े हैं।
-डॉ. विजय कपूर, सेक्रेटरी, पीएचएनएस
सरकार! जरूरी दवाओं की रेट लिस्ट देखिए- कीमतों पर लगाम जरूरी है
दवाओं के रॉ मेटेरियल के दाम चीन ने 600% तक बढ़ा दिए
पहले महामारी बांटी, अब महंगाई
महंगाई का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि चीन से आने वाले कच्चे माल की कीमत 40 से 600 प्रतिशत तक बढ़ गई है। नतीजतन जीवनरक्षक दवाइयां भी महंगी हुई हैं। 2019 के फरवरी-मई तक जो कच्चा माल 14000 से 17000 रुपए किलोग्राम तक आ रहा था, 2020 दिसम्बर तक उसकी कीमत बढ़कर 15,0000 रुपए प्रति किलोग्राम और अब 1,74000 रुपए पहंुच गई है। सबसे अधिक असर न्यूरो और कार्डियो डिजीज के मरीजों पर हुआ है। आगे भी होगा।
किस डिजीज में काम आने वाले रॉ-मेटेरियल के दाम कितने बढ़े
बुखार-बीपी मापने के भी ज्यादा पैसे
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