ये इतेफाक नहीं था कि ईद, अक्षय तृतीया के दिन ही जोधपुर में दंगे भड़के और न ये कि सामान्यत: घरों और दुकानों में न मिलने वाली तेजाब की बोतलें, उस दिन दर्जनों दंगाइयों के हाथों में थीं। एक गली से शुरू हुआ उपद्रव देखते-देखते ही जोधपुर के पांच इलाकों में पहुंच गया। सब कुछ पहले से प्लांड था और जिस तरह से घटनाएं घटी, ये भी तय है कि ये प्लानिंग काफी समय से की जा रही थी।
2 दिन से ग्राउंड जीरो पर डटी भास्कर टीम सच जानने के लिए दंगा प्रभावित पांचों इलाकों में गई। 100 से ज्यादा सीसीटीवी फुटेज खंगाले, 50 से ज्यादा लोगों से बात की। 2 दिन की इन्वेस्टिगेशन के बाद जो सच सामने आया वो सिर्फ हैरान करने वाला नहीं, होश उड़ाने वाला था। पढ़िए, पूरी रिपोर्ट…
पहला CCTV फुटेज : पहले रेकी, फिर तलवार-सरियों से हमला
भास्कर टीम ने सोनारो का बास में एक घर के बाहर लगे सीसीटीवी फुटेज खंगाले। फुटेज में साफ दिख रहा था कि कुछ दंगाइयों ने पास के मोहल्ले से आकर रेकी की और वापस चले गए। थोड़ी देर बाद मोहल्ले में दंगाइयों की भीड़ आ गई, जिनके हाथ में तलवार, सरिए और लाठियां थीं। देखते ही देखते दंगाइयों ने निहत्थे लोगों पर हमला कर दिया। जहां लोग नहीं मिले, उन घरों पर तेजाब की बोतलों, पत्थरों और सरियों से हमला किया।
दूसरा CCTV फुटेज : पुलिस बैरिकेड्स की आड़ में पथराव
ईदगाह मस्जिद के पास लगे सीसीटीवी फुटेज में दिख रहा है कि दंगाइयों ने पहले पुलिस के बैरिकेड्स लगाए और उनकी आड़ में पथराव किया, ताकि पुलिस उन्हें पकड़ न पाए। दंगाइयों ने गाड़ियों में तोड़फोड़ की और जैसे ही पुलिस आई, गली में छिप गए।
पुलिस जालोरी गेट पर हालात काबू कर रही थी, दंगाइयों ने दूसरे इलाकों में उपद्रव शुरू कर दिया
दंगाइयों ने पहले से प्लान कर रखा था कि पुलिस मौके पर पहुंचे तो क्या करना है। यही वजह थी कि भारी फोर्स होने के बावजूद पुलिस को हालात को कंट्रोल करने में कई घंटे लग गए।
जालोरी गेट चौराहे पर जब सैकड़ों की तादाद में लोग प्रदर्शन कर रहे थे तो पुलिस के कई बड़े अफसरों सहित 200 से ज्यादा का अमला भीड़ को कंट्रोल करने की कोशिश कर रहा था। पुलिस लाठीचार्ज कर भीड़ को खदेड़ रही थी। दंगाइयों को इसी मौके का इंतजार था। पुलिस जालोरी गेट चौराहे पर बिजी थी और दंगाई शहर के भीतरी इलाकों की तरफ निकल गए। दंगाइयों ने कबूतरों का चौक, सोनारो का बास, ईदगाह मस्जिद, जालोरी गेट, शनिचरजी का थान, ईशाकिया मोहल्ले में 3-4 घंटे आतंक मचाया।
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पहले से जमा कर रखी थी तेजाब की बोतलें
सीलावटों के बास में दंगाइयों की भीड़ जमा थी। उन लोगों ने पहले से ही तेजाब की बोतलें जमा कर रखी थीं। अचानक हाथों में तेजाब की बोतलें लिए भीड़ आई और घरों पर फेंकनी शुरू कर दी। गालियां देते हुए लोगों के घरों के दरवाजे खटखटाए। लोग बाहर नहीं आए तो पथराव शुरू कर दिया। पथराव में घायल मनीष ने बताया कि वह घर का दरवाजा बंद कर रहा था, तभी एक पत्थर उसके सिर पर आकर लगा और वह घायल हो गया। वह दरवाजा बंद नहीं करता तो दंगाई घर में घुस जाते।
- सूरज प्रकाश, सोनारों का बास निवासी
बाहर से आए दंगाई, बोले- झंडा लगाना है
सोमवार सुबह मस्जिद में बड़ी संख्या में लोग नमाज पढ़ने आए थे। इस दौरान बाहर से कुछ युवक आए और बोले हमें चौराहे पर झंडा लगाना है और दूसरे पक्ष वाले लगाने नहीं दे रहे हैं। इन युवकों के साथ बाहर से आए दूसरे लोग भी शामिल हो गए। कुछ ही देर बाद इन लोगों ने दूसरे पक्ष के लोगों पर पथराव शुरू कर दिया।
- इलियास, ईदगाह मस्जिद के पास रहने वाले
उपद्रव करने वाले सभी युवक बाहरी क्षेत्र के थे। हमारे क्षेत्र के सभी लोगों को हम पहचानते हैं। जो लोग उपद्रव मचा रहे थे, उन्हें हम नहीं जानते। इसका मतलब वे बाहर के थे।
- रवि गुप्ता, ईदगाह मस्जिद के पास रहने वाले
लोगों को अलर्ट किया तो दंगाइयों ने चाकू मारा
घंटाघर में पाल हाउस के पास रहने वाले लोकेश सिंह ने बताया कि वह अपने भाई दीपक परिहार के साथ पिता की दवाई खरीदने बाइक पर जालोरी गेट जा रहे थे। रास्ते में मोती चौक के पास करीब 200 से ज्यादा दंगाई हाथों में तलवार, सरिये और डंडे लेकर खड़े थे।
हमें देखते ही बोले- मारो, बचकर जाने न पाएं। इस पर हमने बाइक की स्पीड बढ़ाई और सोनारो की गली में पहुंचे। वहां लोगों को अलर्ट किया कि दंगाइयों की भीड़ आ रही है। सभी घर-दुकानों के गेट बंद कर दो।
लोकेश ने बताया कि हम लोगों को अलर्ट ही कर रहे थे, इसी दौरान एक दंगाई भागता हुआ आया और पीछे बैठे मेरे भाई दीपक की पीठ पर चाकू से हमला कर दिया। मैंने तेजी से बाइक भगाई। किसी तरह अस्पताल पहुंचे, जहां ऑपरेशन कर दीपक का चाकू निकाला गया।
लोग दहशत में, कई घंटों बाद पहुंची पुलिस
दहशत और खौफ के माहौल में घरों में बंद लोग पुलिस को इंतजार करते रहे, लेकिन पुलिस हर जगह कई घंटों बाद देरी से पहुंची। दंगों के दो दिन बाद भी लोग खौफ में हैं। टूटी हुई गाड़ियां, घरों के टूटे दरवाजे, खिड़कियां, सड़कों पर बिखरे पत्थर दंगों का दर्द बयां कर रहे हैं।
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