केंद्रीय कृषि कानूनों को बायपास करने के लिए राजस्थान सरकार के पारित तीन कृषि बिलों पर 10 महीने से काम आगे नहीं बढ़ा है। तीनों कृषि बिल को राज्यपाल ने रोक रखा है। केंद्रीय कानूनों में संशोधन का क्षेत्राधिकार नहीं होने का हवाला देकर इन बिलों को रोका गया है। राज्यपाल की अनुमति के बिना इन बिलों के प्रावधान लागू नहीं हो सकते। इस मामले में कांग्रेस और बीजेपी के बीच सियासी विवाद शुरू हो गया है।
गहलोत सरकार ने 3 केंद्रीय कृषि कानूनों के प्रावधानों को प्रदेश में लागू नहीं करने की घोषणा की थी। इसके बाद पिछले साल 31 अक्टूबर को विधानसभा में रखा और 2 नवंबर को बहस के बाद पारित करवाया गया। जब ये बिल राज्यपाल के पास भेजे गए, तो इन्हें रोक लिया गया। पिछले साल से ही ये बिल राजभवन में ही हैं। राज्य सरकार ने कृषक उपज व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सरलीकरण) राजस्थान संशोधन विधेयक 2020, कृषक (सशक्तीकरण और संरक्षण) कीमत आश्वासन और कृषि सेवा पर करार (राजस्थान संशोधन) विधेयक, 2020 और आवश्यक वस्तु (विशेष उपबंध और राजस्थान संशोधन) विधेयक, 2020 पारित किए थे।
किसान के उत्पीड़न पर सजा का प्रावधान
कृषक उपज व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सरलीकरण) संशोधन विधेयक में किसान के उत्पीड़न पर 5 लाख के जुर्माना और 7 साल की सजा का प्रावधान किया गया है। कृषक (सशक्तीकरण और संरक्षण) कीमत आश्वासन कृषि सेवा पर करार संशोधन विधेयक में संविदा खेती को लेकर प्रावधान किए गए हैं। इसके तहत किसान से न्यूनतम समर्थन मूल्य एमएसपी से कम संविदा खेती का करार मान्य नहीं होने और एमएसपी से कम करार करने पर जुर्माना और सजा का प्रावधान किया गया है। आवश्यक वस्तु विशेष उपबंधन और राजस्थान संशोधन विधेयक में कृषि जिंसों पर स्टॉक लिमिट लगाने का प्रावधान फिर से किया गया है। केंद्रीय कानून में इस प्रावधान को हटा दिया था।
कांग्रेस-बीजेपी के बीच कृषि बिलों पर विवाद
राज्यपाल के कृषि बिलों को रोककर रखने पर कांग्रेस ने नाराजगी जताई है। कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा ने कहा है कि किसान हित में पारित किए गए तीन बिलों को राज्यपाल साल भर से रोककर बैठे हैं। सत्ता के दुरुपयोग का इससे बड़ा उदाहरण क्या हो सकता है। कांग्रेस किसानों के साथ रहेगी और इस मुद्दे पर लड़ाई जारी रखेगी। बीजेपी प्रदेशाध्यक्ष सतीश पूनिया का कहना है कि केंद्रीय कानून के प्रावधान राज्य नहीं बदल सकते, तीनों बिल संघीय ढांचे की मूल भावना के ही खिलाफ थे। राज्य सरकार को बिल लाने का अधिकार ही नहीं था, लेकिन केवल किसानों को बरगलाने के लिए ऐसा किया गया।
राज्यपाल के साथ केंद्र की मंजूरी जरूरी
राजस्थान के तीन कृषि बिलों पर राज्यपाल के साथ केंद्र की भी मंजूरी जरूरी है। राज्यपाल ने कानूनी प्रावधानों का हवाला देते हुए इन्हें रोका है। पिछले साल सभी कांग्रेस शासित राज्यों ने कृषि कानूनों के प्रावधान बदलने वाले बिल पारित किए थे, लेकिन सब जगह राज्यपाल के स्तर पर ही रुके हुए हैं। इस वजह से फिलहाल इन बिलों के प्रावधान राज्य में लागू नहीं हो रहे। आगे भी इन बिलों के इसी तरह अटके रहने के ही आसार हैं।
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