जायकास्टंटबाजी वाले पकौड़े, लग्जरी कारों की लगती है लाइन:सबसे महंगी आलू टिक्की का खुला राज; घंटों इंतजार करते हैं नेता

जयपुर6 महीने पहलेलेखक: छवि टाक
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आपके शहर में सबसे ज्यादा भीड़ कहां मिलती है?
मेरा जवाब तो है - चाट वाले ठेले पर।

यकीनन आपका जवाब भी यही होगा। एक बार कोई स्वाद जुबां पर चढ़ जाए तो खाने के शौकीन ऐसे टूट पड़ते हैं कि लंबी लाइन भी छोटी लगने लगती है। महाभारत के अर्जुन की तरह सबका एक ही टारगेट होता है, नंबर आने का।

जयपुर में ऐसे ही चटपटे ठिकानों पर भास्कर की जायका टीम पहुंची। एक या 2 नहीं, तीन अलग-अलग ठेलों से उस स्वाद को कवर किया, जहां सर्दी की दस्तक के साथ ही इन स्वाद को चखने वालों की भीड़ लगी थी। एक जगह तो जयपुर की पूर्व मेयर ज्योति खंडेलवाल भी स्पेशल आलू टिक्की पैक करवाते हुए मिल गईं। ये वो टिक्की है जो मावे में बनती है।

इसी तरह एक दाल-पकौड़े बेचने वाले कारीगर को देखने के लिए ही गाड़ियां रुक रही थीं। हमने पास जाकर देखा तो एक शख्स खौलते तेल में हाथ डालकर पकौड़े तल रहा था। राजस्थानी जायका की इस कड़ी में आपको ले चलते हैं वर्ल्ड हेरिटेज जयपुर की चारदीवारी में। यहां तीन बेहतरीन स्वाद हैं, जिनको खाने क्या आम और क्या VIP, सब लाइन में लग जाते हैं....

आलू वाली नहीं ये है मावा से बनी टिक्की
छोले के साथ आलू टिकिया तो आपने बहुत खाई होगी। लेकिन क्या मावे की टिकिया का स्वाद चखा है? चलिए बताते हैं आपको

चांदपोल बाजार में बाबा हरिशचंद मार्ग पर श्री प्राजीत चाट भंडार का शटर दोपहर 2 बजे खुलता है, लेकिन टिकिया खाने वाली भीड़ उससे पहले ही पहुंच जाती है। शाम के 8 बजे तक तो 2000 के करीब ग्राहक टिकिया खाकर घर जा चुके होते हैं।

ये छोले टिक्की इतनी लाजवाब क्यों है, खाने वालों को भी शायद ही इसकी जानकारी हो। इसके टेस्ट का असली राज है मावा। दरअसल, इस टिकिया को टेस्टी बनाने के लिए चाट भंडार के मालिक त्रिलोक चंद इसमें मावा मिक्स करते हैं। जिससे टिकिया बेहद क्रिस्पी बनती है।

साथ ही स्वाद भी दोगुना हो जाता है। देशी घी में बनी इस टिकिया को बिना लहसुन-प्याज के बने छोले, हरी चटनी और मीठी चटनी के साथ सर्व किया जाता है। ऊपर से अनार दाना और हरा धनिया डालकर गार्निश करते हैं।

ये दुकान किसी जमाने में ठेले पर लगा करती थी। वर्ष 1981 में धौलपुर से जयपुर आए त्रिलोक चंद शर्मा और परमेंद्र कुमार शर्मा ने छोले टिकिया बेचना शुरू किया, लेकिन ग्राहकों को वही कॉमन स्वाद कुछ जमा नहीं। कुछ ही दिनों में ठेला फेल होने के कगार पर आ गया।

तब त्रिलोक चंद ने आलू टिकिया के स्वाद बढ़ाने के लिए कई एक्सपेरिमेंट किए। पनीर तक डालकर देखा, लेकिन जो टिकिया मावे से बनी, उसका स्वाद बेहतरीन था। यहीं से शुरू हुई मावा से बनी छोले टिक्की के बनने की कहानी...

त्रिलोकचंद ने ठेले से हुई कमाई के दम पर दुकान खरीद ली। स्वाद के सफर में कई उतार चढ़ाव भी देखे। वर्ष 2018 में मिलावट के चलते टिकिया में मावा डालना बंद कर दिया। इससे टिकिया का स्वाद इतना बिगड़ गया कि ग्राहकों के लिए तरसना पड़ा।

लेकिन 2021 में एक बार फिर नए सिरे से शुरुआत की। मिलावट से बचने के लिए घर पर ही मावा बनाना शुरू किया। अब जो स्वाद बना, वो लोगों के सिर चढ़ कर बोलने लगा है। यहां तक की कई IAS अफसर, पूर्व मेयर ज्योति खंडेलवाल से लेकर कई पॉलिटिशियन, विदेशी पर्यटक और VIP लोग वहां खड़े हो टिकिया का मजा लेते हैं।

आज महेंद्र शर्मा और सुरेंद्र शर्मा इनकी दूसरी पीढ़ी है, जो 40 साल पुराने इस कारोबार को संभाल रही है। महेंद्र बताते हैं उनके उनके पास कोई बाहर का वर्कर काम नहीं करता। उनकी पूरी फैमली ही मसालों से लेकर फाइनल प्रोडक्ट तक बनाती है।

एक दिन में करीब 2 से 3 हजार लोग इनके यहां की चाट खाने आते हैं। मावा से बनी ये टिकिया करीब 400 ग्राम की बनती है। एक प्लेट की कीमत 45 रुपए है। छोले टिकिया के अलावा लोग सूजी से तैयार पतासी के भी दीवाने हैं। शॉप पर 30 रुपए की 4 दही पतासी और 20 रुपए के 4 गोलगप्पे मिलते हैं। ऐसे में सालाना कारोबार लाखों में होता है।

तीन बार बदला दुकान का नाम
महेन्द्र ने बताया कि दुकान के नाम की भी अपनी एक अलग हिस्ट्री रही है। जिस ठेले से यह सफर शुरु हुआ, उसका नाम था कालू राम चाट।

फिर उनके फैमिली गुरु श्री श्री नंदा दास महाराज के कहने पर नाम रखा जय श्री प्रेम भायाजी चाट भंडार। बाद में उन्हीं गुरु के कहने पर इस दुकान का नाम हो गया है श्री प्राजीत चाट भंडार।

आगे बढ़ने से पहले देते चलिए इस आसान से सवाल का जवाब

ये पकौड़ी नहीं पकौड़े हैं, वो भी 'आयुर्वेदिक'
कड़ाके की सर्दी हो और ऊपर से गरमा गरम पकौड़ी मिल जाए तो आप कहेंगे कि क्या बात है। ठंड तो चुटकियों में गायब हो जाएगी।
हवा महल से आमेर किले की तरफ जाते समय बीच में पड़ता है सुभाष चौक। यहां शाम के 4 बजते ही किशन पकौड़ी वाले के गर्म-गर्म पकौड़ी खाने वालों की जितनी भीड़ आप देखेंगे, उससे ज्यादा संख्या तो केवल उनको पकौड़े निकालते समय देखने वालों की होती है।

हम जिन दाल के पकौड़ों की बात कर रहे हैं वो कोई आम नहीं है। इसे खाने वाले और बेचने वाले आयुर्वेदिक पकौड़े कहते हैं। दावा है कि अगर आप इनकी बनी दाल पकौड़ी खाते हैं तो जुकाम और कब्ज जैसी समस्या एकदम दूर हो जाती है।

कारण हैं मसाले, जो बॉडी में गर्मी पैदा करते हैं। घोल में पिसी हुई दाल के अलावा करीब 20 तरह की सीजनल सब्जियां डलती हैं। जैसे- प्याज, पालक, मेथी, पुदीना, लहसुन, अदरक, हरी मिर्च। इसी तरह जावित्री, दालचीनी, जायफल जैसे कम से कम 20 टाइप के पिसे हुए गरम मसाले डलते हैं।

अब बताते हैं पकौड़े देखने के लिए भीड़ क्यों लगती है?
खौलते तेल में झार से पकौड़ी निकालते तो आपने कई लोगों को देखा होगा। लेकिन किशन पकौड़ी वाला के सुरेश सिंह खौलते तेल में पूरा हाथ डाल देते हैं। हाथ से ही पकौड़ियों को पलटकर निकाल देते हैं। एक खास ट्रिक के चलते उनका हाथ जलता भी नहीं।

सुरेश की इसी करामात को देखने लोगों की भीड़ दुकान पर जमा होती है। कई लोग तो सोशल मीडिया पर रील्स बनाकर डालते हैं। हालांकि, सुरेश का सुझाव है कि ऐसा स्टंट घर पर कभी भी ट्राई नहीं करना चाहिए।

ये जायका है 50 साल पुराना
50 साल पुरानी इस दुकान को कन्हैया सिंह लोधा और सुरेश लोधा के दादाजी स्व.किशन सिंह लोधा ने शुरू किया था। किशन सिंह पहले सिर पर टोकरी रख घर घर मटका कुल्फी बेचा करते थे। कुल्फी का बिजनेस केवल गर्मी में चलता था। सर्दी में कमाई का कोई जरिया नहीं था।

घर चलाने के लिए किशन सिंह ने सर्दी के सीजन में एक ठेला लगाकर दाल पकौड़ी बेचना शुरू किया। घोल में सब्जियों और मसालों पर कई एक्सपेरिमेंट किए। तेल की भट्टी की बजाय मिट्टी के चूल्हे पर कढ़ाई में गरमा-गरम पकौड़ियों का स्वाद लोगों की जुबां पर चढ़ने लगा। ठेले से शुरू हुआ पकौड़ी का सफर आज एक दुकान में तब्दील हो चुका है।

सुरेश बताते हैं कि कभी 70 रुपये में किलो पकौड़ी बेचते थे। आज इसकी कीमत 240 रुपए पहुंच गई है। लेकिन स्वाद आज भी बरकरार है। परकोटे के कई लोगों ने दूर जाकर घर बसा लिए, लेकिन आज भी पकौड़ियों का स्वाद चखने यहां तक आते हैं। डेली शाम को 4 घंटे इतनी भीड़ रहती है कि पूरा माल खत्म हो जाता है।

आम पाचक वाले गोलगप्पे, पूरा पानी पी जाते हैं कस्टमर
चाट की बात हो और पतासी, गोलगप्पे या पुचका का नाम न आए, ऐसे कैसे मुमकिन हो सकता है। ये चटोरों का एकमात्र ऐसा ठिकाना होता है जहां लोग कटोरी लेकर अपनी बारी का इंतजार करते हैं। जलेबी चौक पर बृजवासी पतासी वाले के यहां भी ऐसा ही नजारा देखने को मिलता है।

केवल 3 घंटे यहां लोग जितने गोलगप्पे खाते हैं, उससे कहीं ज्यादा चटपटा आमपाचक पानी हजम कर जाते हैं। गुड़ से बनी मीठी चटनी के साथ जीरा, पुदीना, हींग, नींबू, अमचूर से बने स्पेशल पानी में गोलगप्पे का स्वाद चखने लोग दूर-दूर से आते हैं। इन गोलगप्पों में जो आलू मसाला डालते हैं, उसमें चने की दाल भी एड करते हैं, जो स्वाद को दोगुना कर देती है।

आज से करीब 50 से 60 साल पहले जयपुर में परम कुमार सैनी के दादा ने स्टार्ट किया था। परम बताते हैं उनके दादा मथुरा में पतासी बेचते थे। लेकिन पैसों की तंगी के चलते जयपुर में पलायन किया। यहां कंवर नगर में पतासी का ठेला लगाना शुरू किया। उनकी पतासी की शुद्धता और टेस्ट के चलते लोगों की लाईन लगने लगी। और देखते ही देखते ठेला दुकान में बदल गई। शाम 5 बजे से शुरू होने के बाद रात 8 बजे तक ही उनकी सारी पतासी खत्म हो जाती है। आज उनकी दुकान पर 10 रुपए के 4 गोलगप्पे मिलते हैं।

30% लोगों ने इसे सांभर वड़ा बताया। जबकि 40% लोगों ने इसे बालूशाही समझा। लेकिन असल में यह मिठाई है भीलवाड़ा जिले के गंगापुर कस्बे की फेमस मिठाई 'अकबरी'। दिखने में ये वड़ा जैसी ही है। इसका इतिहास 150 साल पुराना है। स्वाद ऐसा है कि एक बार चख लिया तो भूल नहीं पाएंगे। ग्वालियर के पूर्व सिंधिया राजघराने से इसका विशेष जुड़ाव है। इस 'अकबरी' के दीवाने राजस्थान ही नहीं, बल्कि गुजरात, मध्यप्रदेश, कर्नाटक में भी हैं।

सिर्फ शरद पूर्णिमा से भाई दूज तक बनती है मिठाई
शरद पूर्णिमा से भाई दूज तक बनने वाली इस मिठाई को बनाने के लिए पूरे कस्बे में 150 से ज्यादा स्टॉल लग जाती हैं। भाई दूज के दिन बहनें भी अपने भाई के लिए यही मिठाई लेकर जाती हैं। सीजन के 20 दिनों में इसकी डेली सेल 400 से 500 किलो होती है।

फाेटाे और वीडियो- ऋषभ सैनी

जायका के बाकी एपिसोड यहां पढ़ें :-
1. राजस्थान की ऐसी सब्जी, जिसमें ऑरेंज जूस डालते हैं:सिर्फ 4 महीने मिलता है साग-रोटा; बनाने में 3 घंटे लगते हैं

'मक्के दी रोटी और सरसों का साग'सर्दियों में अगर किसी को पंजाब जाना हो तो इसे खाना भला कौन भूलेगा? ऐसा ही एक बेहतरीन स्वाद राजस्थान के शेखावाटी का भी है, जिसे कोई एक बार चख ले तो शायद ही उसका स्वाद कभी भूल पाएगा। ये है चिड़ावा का साग-रोटा, जो केवल सर्दी के सीजन में 4 महीने ही बनता है...(यहां क्लिक कर पढ़ें पूरी स्टोरी)

2. आधा किलो का दही-बड़ा, ठेले पर रुकती हैं VIP गाड़ियां:81 तरह के मसालों से होता है तैयार, आमिर से लेकर सोनम कपूर तक फैन

मेरा टेसू यहीं खड़ा, खाने को मांगे दही बड़ा....बचपन में आपने भी ये जिद जरूर की होगी और दही बड़ों का स्वाद भी चखा होगा। ऐसी जिद के साथ जयपुर में एक ठेले पर भीड़ जुटती है, नाम है कलकत्ता चाट भंडार। जिस VVIP इलाके में यह ठेला लगता है, वहां CM से लेकर मंत्री-विधायकों का काफिला गुजरता है। कार की विंडो खोलकर बड़े से बड़ा VIP भी रिस्पेक्ट के साथ ऑर्डर देता है- 'पंडित जी एक प्लेट हमारी भी लगा देना।' बॉलीवुड स्टार आमिर खान, अभिषेक बच्चन से लेकर सोनम कपूर तक पंडित जी के हाथ से बने दही बड़े के जबरा फैन हैं...​​​​​​ (यहां क्लिक कर पढ़ें पूरी खबर)