करीब 70 साल पहले गंगापुर सिटी के हाबुलाल हलवाई ने दूध को फाड़कर एक प्रयोग किया। इस प्रयोग ने दुनिया को ऐसा जायका दिया कि इसके दीवाने दुबई से लेकर पाकिस्तान में भी हैं। राजस्थानी जायके की इस कड़ी में आज बात ऐसी मिठाई की, जो कभी 1 रुपए किलो बिकती थी। आज उसका सालाना कारोबार 150 करोड़ रुपए से भी ज्यादा है। ...तो पढ़िए, सुनिए और लीजिए एक लाजवाब स्वाद।
हाबु हलवाई को माना जाता है जनक
गंगापुर सिटी में सबसे पहले खीरमोहन बनाने का श्रेय हाबुलाल हलवाई को जाता है। हाबुलाल अग्रवाल ने करीब 1950 में खीरमोहन की मिठाई बनाई थी। इसका बेहतरीन स्वाद ऐसा था कि धीरे-धीरे लोगों की जुबान पर चढ़ने लगा। हाबु हलवाई ने अपनी छोटी से दुकान पर खीरमोहन बेचकर कई सालों तक एकछत्र राज किया। मिठाई की बढ़ती प्रसिद्धि को देख गंगापुर के दूसरे हलवाइयों ने भी इसे बनाने का तरीका सीखा।
धीरे-धीरे गंगापुर सिटी के खीरमोहन का जायका पूरे प्रदेश के लोगों तक पहुंचा। एक वक्त ऐसा भी आया जब खीरमोहन पाकिस्तान तक में सप्लाई होने लगा। अस्पताल रोड पर बाबा मिष्ठान भंडार के मोहनलाल ने बताया कि पंजाब में दूध को खीर बोलते हैं। खीरमोहन दूध को फाड़कर बनाया जाता है। इसलिए इसका नाम खीरमोहन रखा गया।
खीरमोहन की शुरुआत करने वाले हाबु हलवाई तो अब मौजूद नहीं है। उनके पोते राजेन्द्र अग्रवाल ही अब खीरमोहन बनाने का कार्य करते हैं। राजेन्द्र बताते हैं गंगापुर के खीरमोहन लोग सऊदी अरब, पाकिस्तान तक अपने रिश्तेदारों के लिए ले जाते हैं। वर्षों पहले खीरमोहन के स्वाद को देखते हुए जयपुर के एक प्रतिष्ठित मिष्ठान भंडार वालों ने इसे बनाने की कोशिश की, लेकिन जो लज्जत और रवा गंगापुर के खीरमोहन में होता है वो नहीं बन पाया। कारण यह कि गंगापुर का पानी खीरमोहन के स्वाद को बढ़ाता है। ऐसा स्वाद कहीं दूसरी जगह नहीं हो सकता।
ट्रेनों से पहुंचाए जा रहे खीरमोहन
खीरमोहन 4 से 5 दिन तक खराब नहीं होते। बशर्ते इन्हें ठंडे स्थान पर रखा जाए। इसीलिए लोग स्पेशल ऑर्डर देकर ट्रेनों से मंगवा लेते हैं। रेलवे के एक रिटायर्ड ड्राइवर ने बताया कि उससे रेलवे के कई बडे़ अधिकारी खीरमोहन मंगवाते थे। महाराष्ट्र से भी लोगों के फोन पर ऑर्डर आते थे। आते हुए 5 किलो खीरमोहन ले आना। वे बताते हैं रोजाना 5 से 10 किलो खीरमोहन ले जाते थे।
ऐसे बनता है खीरमोहन
खीरमोहन में किसी तरह के महंगे ड्राई फ्रूट का इस्तेमाल नहीं होता। रेसिपी की खास बात यह है कि इसे चाशनी में ही पकाया जाता है। इसे बनाने के लिए पहले दूध को टाटरी से फाड़कर इसका छैना तैयार किया जाता है। छैने में सूजी और शक्कर मिलाकर इसे झज्जर से छानते हैं। फिर इस मिश्रण की गोलियां बनाकर इसे उबलती चाशनी में पकाते हैं। लाल-भूरा रंग होने के बाद एक दिन तक चाशनी में डालकर ही रखा जाता है। 24 घंटे के बाद खीरमोहन खाने के लिए तैयार हो जाता है। अच्छा खीरमोहन उसे माना जाता है जो मुंह में जाते ही घुल जाए।
250 से ज्यादा दुकानें, क्विंटल में खपत
गंगापुर सिटी में हलवाई की करीब 250 दुकानें हैं। अनुमान के मुताबिक सभी दुकानों पर 35 से 40 किलो खीरमोहन की बिक्री रोजाना होती है, लेकिन कुछ खास दुकानों पर यह आंकड़ा क्विंटल तक पहुंच जाता है। यहां 25 से ज्यादा बड़ी फैक्ट्रियां हैं, जहां करीब 100 क्विंटल माल रोजाना बनता है। वहीं 200 से ज्यादा लोकल दुकानों पर 50 से 80 क्विंटल खीरमोहन तैयार होता है। गंगापुर सिटी में खीरमोहन की रोज की खपत 150 से 200 क्विंटल तक पहुंच जाती है।
अब एक किलो खीरमोहन 300 रुपए में
गंगापुर सिटी में एक किलो खीरमोहन की कीमत 300 रुपए है। यहां से तैयार खीरमोहन जयपुर के महेश नगर, मानसरोवर, प्रताप नगर, जगतपुरा आदि इलाकों में जाते हैं। यहां 350 रुपए किलो के भाव में बेचे जाते हैं। खीरमोहन के सालाना कारोबार की अगर बात करें तो यह 150 करोड़ से भी ज्यादा होता है। इस कारोबार से गंगापुर सिटी में 800 से 900 लोगों को रोजगार मिल रहा है।
सहयोग: गोविंद तिवाड़ी, गंगापुर सिटी
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