पिछले सप्ताह 16 नए खनन पट्टे जारी होने के बाद प्रदेश में बजरी के वैध पट्टों की संख्या 28 हो गई है, पर दरें कम नहीं हुई हैं। जगह और दूरी के हिसाब से यह 900 से 1300 रु./टन की रेट पर बिक रही है। लोगों को महंगी बजरी से राहत नहीं मिलने की सबसे बड़ी वजह अवैध खनन और इसकी आड़ में पनपा वसूली का तंत्र है। लगाम लगाने का सबसे आसान रास्ता एमपी की तर्ज पर चेक पोस्ट स्थापित बनाना है।
पड़ोसी राज्य में अवैध खनन व रॉयल्टी की चोरी रोकने के लिए पुलिस, खनिज, राजस्व, वन व परिवहन विभाग की संयुक्त चेक पोस्ट बनी हैं, जबकि राजस्थान में अलग-अलग विभाग जांच करते हैं। जांच के नाम पर रोकना और वसूली करने के कई मामले सामने आ चुके हैं। बजरी खनन व इसके परिवहन से जुड़े लाेगों के अनुसार इन्हें जो रकम दी जाती है वह लोगों को मिलने वाली बजरी के दरों में जुड़ जाती है।
भ्रष्टाचार का यह तंत्र बजरी खनन पर रोक के दौरान पनपा, जो रोक हटने के बाद भी सक्रिय है। विशेषज्ञों के अनुसार यदि राजस्थान में भी मध्यप्रदेश की तर्ज पर चेक पोस्ट बन जाएं तो बजरी 30% तक सस्ती हो सकती है।
अवैध खनन पर सुप्रीम कोर्ट सख्त
बजरी का अवैध खनन नहीं रुकने पर सुप्रीम कोर्ट नाराजगी जाहिर कर चुका है। बजरी लीज होल्डर्स की याचिका पर पिछली सुनवाई के दौरान कोर्ट ने पूछा था कि सरकार ने अवैध बजरी खनन रोकने के लिए अब तक क्या किया? सरकार की ओर से अब तक दर्ज की की गई एफआईआर और जुर्माना वसूली की जानकारी दी गई तो कोर्ट इससे संतुष्ट नहीं हुआ। मामले की अगली सुनवाई 16 नवंबर को होनी है।
एमपी मॉडल / राजस्थान सिस्टम
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