नियम तय नहीं, ग्रीन कॉरिडोर का फैसला पुलिस के हाथ:वह चाहे तो आम जन को यह सुविधा देकर हर साल बचा सकती है 10

जयपुर7 महीने पहलेलेखक: डूंगरसिंह राजपुरोहित
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आयुष मंत्री बीमार हुए तो भरतपुर से जयपुर 170 किमी डेढ़ घंटे में भेजा, 24 घंटे में अस्पताल से डिस्चार्ज। - Dainik Bhaskar
आयुष मंत्री बीमार हुए तो भरतपुर से जयपुर 170 किमी डेढ़ घंटे में भेजा, 24 घंटे में अस्पताल से डिस्चार्ज।

आयुष मंत्री डॉ. सुभाष गर्ग भरतपुर में रविवार सुबह अपने निवास पर लोगों से मुलाकात कर रहे थे तब उनका हाथ जकड़ा, सिर चकराया। पुलिस ने तुरंत ग्रीन कॉरिडोर बनवाया और महज डेढ़ घंटे में भरतपुर से 170 किमी दूर जयपुर पहुंचा दिया। एसएमएस अस्पताल से सोमवार को उन्हें छुट्‌टी भी दे दी गई। अधीक्षक डॉ. अचल शर्मा ने बताया कि गर्ग को चक्कर आने व अन्य परेशानियों के चलते भर्ती किया गया था।

उनकी एमआरआई, ब्रेन एंजियाेग्राफी, ब्रेन स्केन, टू डी इको, एचआरसीटी व सभी ब्लड टेस्ट की रिपोर्ट सामान्य आई तो दोपहर में डिस्चार्ज कर दिया गया। इधर, सवाल उठा रहा है कि क्या गंभीर घायल या बीमार आम व्यक्ति के लिए भी ग्रीन कॉरिडोर बनाया जा सकता है? जानकारों का कहना है कि हादसों के मामलों में पुलिस अस्पताल तक 10 से 15 मिनट का ग्रीन कॉरिडोर बनाए तो प्रदेश में हर साल 10 हजार से अधिक घायलों को गोल्डन ऑवर में अस्पताल पहुंचाकर उनकी जान बचा सकती है।
प्रदेश में ज्यादातर ग्रीन कॉरिडोर मंत्रियों की सिफारिश पर या पुलिसकर्मियों के लिए
श्रीगंगानगर: 10 साल पहले सड़क हादसे में एक पुलिसकर्मी गंभीर घायल हो गया था। तब प्रदेश में पहली बार ग्रीन कॉरिडोर बनाकर उसे अस्पताल पहुंचाया गया था।
कोटा: नयापुरा थाने में आत्मदाह के प्रयास में युवक राधेश्याम मीणा झुलस गया था। 18 सितंबर 2022 को यूडीएच मंत्री शांति धारीवाल के दबाव पर पुलिस ने ग्रीन कॉरिडोर बनाकर पहले जयपुर, फिर दिल्ली पहंुचाया। इतना लंबा ग्रीन कॉरिडोर अब तक किसी के लिए नहीं बना।

उदयपुर: आतंकी घटना के बाद उपजे तनाव के बीच राजसमंद के भीम में 29 जून 2022 को भीड़ ने पुलिस कांस्टेबल पर जानलेवा हमला कर दिया था। कांस्टेबल को पहले ब्यावर ले जाया गया। फिर जेएलएन अस्पताल पहुंचाने के लिए अजमेर में ग्रीन कॉरिडोर बनाया। तबीजी से जेएलएन अस्पताल तक 16 किमी का सफर 13 मिनट में पूरा किया।
बीकानेर: पिछले साल अक्टूबर में पीबीएम अस्पताल के डाॅक्टर रवींद्र कुमार जांगिड़ की तबीयत बिगड़ी तो मंत्रियों की सिफारिश पर ग्रीन कॉरिडोर बनाकर 16 मिनट में एम्बुलेंस से नाल एयरपोर्ट पहुंचाया गया। फिर एयर एम्बुलेंस से दिल्ली भेजा गया।

झारखंड में आमजन को भी सुविधा: झारखंड में रांची पुलिस ने तो ऐलान कर दिया कि आम लोगों को भी ग्रीन कॉरिडोर की सुविधा मिल सकेगी। इसके लिए 4 साल पहले मोबाइल नंबर भी जारी किया। इस पर कोई भी अपने निजी वाहन से मरीज ले जाने संबंधी जानकारी दे तो ट्रैफिक पुलिस रास्ता क्लियर कराती है।

क्या है ग्रीन कॉरिडोर की प्रक्रिया
ग्रीन कॉरिडोर यानी क्या?

किसी व्यक्ति को अस्पताल पहुंचाने तक रास्ते की सभी रोड लाइट ग्रीन मिलें।
ग्रीन कॉरिडोर के नियम क्या हैं, इसका फैसला कौन करता है?
एडीजी ट्रैफिक वीके सिंह का कहना है- कोई कानून या नियम नहीं है। संबंधित क्षेत्र के एसपी या अन्य पुलिस अथाॅरिटी मानवीय आधार पर फैसला लेती है।
फैसले की प्रक्रिया क्या है?
व्यक्ति को जिस जगह भेजना है, संबंधित एसपी को उस रूट के सभी एसपी या थानों को लाइनअप करना पड़ता है। सभी थानों की सहमति पर ही वाहन रवाना करते हैं।
मजन को ग्रीन कॉरिडोर की सुविधा क्यों नहीं मिल पाती?
प्राय: हादसे या गंभीर बीमारी की स्थिति में एसपी मौके पर जाते ही नहीं। थानाधिकारी आदि को ग्रीन कॉरिडोर के अधिकार नहीं हैं। आमजन को भी ग्रीन कॉरिडोर के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं है।

हर साल 11 हजार तक मौतें

  • 21 हजार से अधिक सड़क हादसे होते हैं प्रदेश में प्रति वर्ष।
  • 10,320 से 11,000 तक लोगों की मौत हो जाती है प्रदेश में प्रति वर्ष सड़क हादसों में।
  • 9वां नंबर है देश में सड़क हादसों के मामलों में प्रदेश का, मौतों के मामले में चौथा नंबर।
  • 5 जिलों जयपुर, अलवर, उदयपुर, अजमेर, कोटा में सर्वाधिक मौतें होती हैं।
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