प्रदेश की सरकारी बिजली वितरण कंपनियों ने बिजली बिल में विद्युत शुल्क व स्थायी शुल्क की गणना के दोहरे मापदंड बना रखे हैं। विद्युत शुल्क हर माह के बिजली खर्च की रीडिंग से वसूला जाता है, लेकिन स्थायी शुल्क की गणना पिछले वित्तीय साल के औसत उपभोग से तय करते हैं। ऐसे में कम बिजली खर्च के बावजूद हाई स्लैब में ज्यादा स्थायी शुल्क वसूला जा रहा है। इससे कम बिजली खर्च करने वालों को आर्थिक नुकसान हो रहा है। प्रदेश में स्थायी शुल्क की गणना उपभोग रीडिंग के स्लैब के अनुसार होती है।
यह है स्थायी शुल्क व उसकी गणना का तरीका
सरकारी बिजली कंपनियां पावर प्लांट से बिजली खरीदती हैं तो उनको भी स्थायी शुल्क देना पड़ता है। इसके अलावा डिस्कॉम का इंफ्रास्ट्रक्चर व सर्विस पर खर्चा होता है। यह स्थायी शुल्क के तौर पर वसूला जाता है। उपभोक्ता के पिछले वित्तीय साल में कुल बिजली उपभोग को जोड़कर उसमें 12 का भाग देकर एक महीने का औसत उपभोग का स्लैब तय किया जाता है। इसके अनुसार स्थायी शुल्क लगाते है।
लोड बेस्ड स्थायी शुल्क को आयोग ने नकारा
डिस्काॅम्स ने पिछले साल टैरिफ पिटिशन में 10 किलोवॉट से ज्यादा कनेक्ट लोड वाले घरेलू उपभोक्ता से 80 रुपए प्रति किलोवॉट से स्थायी शुल्क की वसूली का प्रस्ताव दिया था। उनका मत था कि सोलर सिस्टम लगाने के लिए कई उपभोक्ताओं ने अपने कनेक्शन का लोड बढ़ा लिया है, जबकि उपभोग कम है। आयोग ने इस याचिका को अस्वीकार कर दिया था।
इसलिए पड़ी लोड बेस फिक्स चार्ज की जरूरत
बड़े शहरों में कई लोग पैसा निवेश के लिए मल्टीस्टोरी बिल्डिंगों में फ्लैट लेते हैं। वहां पर अत्याधुनिक सुविधाओं के लिए बड़े बिजली कनेक्शन ले लेते हैं। इससे सिस्टम पर लोड बढ़ जाता है। ऐसे में अब सिस्टम विकसित करने के लिए बड़े उपभोक्ताओं पर लोड बेस फिक्स चार्ज लगाया जा रहा है।
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