यदि आप ‘एप्रोच’ रखते हैं तो एसएमएस अस्पताल में नियमों को ताक पर रख इलाज कराना संभव है। ऐसा ही हुआ है कार्डियोलॉजी विभाग में। पहचान और एप्रोच रखने वाले इस “मरीज” को न केवल भर्ती कर लिया, बल्कि उसी दिन एंजियोप्लास्टी कर अगले ही दिन छुट्टी भी दे दी गई।
रोचक बात यह है कि जिस मरीज का इलाज किया गया, उन्हें गरीब की श्रेणी में रख दिया गया और एक फाॅर्म में यह भी भराया गया कि उनकी वार्षिक आय दो लाख से कम है। जबकि हकीकत में ये एप्रोच वाले मरीज ठेकेदार हैं और एक आईपीएस के खासे जानकार भी हैं। यहां तक कि अस्पताल में उन्हें भर्ती कराने और किन्हीं भी मदद के लिए पुलिसकर्मी भी साथ आए थे। वहीं दूसरी ओर कई मरीजों को चिरंजीवी योजना में नहीं जुड़े होने के कारण तीन से चार दिन तक इंतजार करना पड़ता है।
मामले के अनुसार 23 जनवरी को भरतपुर के रमेश चंद को कार्डियोलॉजी विभाग में भर्ती किया गया। अब जबकि उनका चिरंजीवी कार्ड की आईडी जनरेट नहीं हो रही थी और वह एक फरवरी से शुरू होता। अब मरीज का इलाज शुरू करना था तो उन्हें एक फाॅर्म दिया गया। गवर्नमेंट के इस फाॅर्म में लिखा था कि सम्बन्धित व्यक्ति की वार्षिक आय दो लाख रुपए से कम है। जब रमेश चंद काे इस फाॅर्म पर हस्ताक्षर करने के लिए कहा गया।
रमेश ने पूछा कि किसी तरह की परेशानी तो नहीं होगी तो उन्हें कहा गया कि यह गुप्त रूप से जाता है और आपको किसी से भी इस फाॅर्म का जिक्र नहीं करना है। इसके बाद रमेश ने इस पर हस्ताक्षर कर दिए और उसी दिन एंजियोप्लास्टी भी कर दी गई और 24 जनवरी को उसे छुटटी भी दे दी गई।
कलेक्टर करेंगे एप्रुव, इसमें जांच का कोई नियम नहीं
नियमों के तहत ऐसे फाॅर्म कलेक्टर के पास जाते हैं और वे एप्रुवल देते हैं। इसके बाद पैसा कंपनी देती हैं। लेकिन ऐसा कोई नियम और जांच नहीं होती कि किस व्यक्ति की वार्षिक आय दो लाख रुपए से कम है। चिरंजीवी के तहत एंजियोप्लास्टी के लिए आईडी जनरेट और एप्रुवल के बाद ही प्रोसेस हो पाता है। इनमें 2 से 3 दिन लगते हैं। रमेश की उसी दिन एंजियोप्लास्टी और 24 घंटे से पहले छुटटी भी दे दी गई।
बेहद चौंकाने वाली बात है। इस मामले में जांच कराई जाएगी और इसके बाद उच्च स्तर पर रिपोर्ट भेजी जाएगी। -डॉ. अचल शर्मा, अधीक्षक, एसएमएस अस्पताल
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