राजस्थान में पिछले कई सालों से एनकाउंटर बढ़ रहे हैं। जोधपुर में हुए गैंगस्टर लवली कंडारा एनकाउंटर से राजस्थान पुलिस पर कई सवाल उठ रहे हैं। ऐसा पहली बार नहीं है, जब पुलिस पर फर्जी एनकाउंटर के आरोप लगे हों।
कुख्यात गैंगस्टर आनंदपाल का 24 जून 2017 को एनकाउंटर हुआ था। वह 2015 में पेशी पर ले जाने के दौरान पुलिसकर्मियों को नशीली मिठाई खिला कर भाग गया था। मौलासर में रात को मकान पर पुलिस तलाश करते पहुंची तो आनंदपाल ने AK-47 से ताबड़तोड़ गोली बरसा दी। एक कमांडो भी गोली लगने पर घायल हुआ था। आनंदपाल एनकाउंटर के बाद पूरी गैंग बिखर गई। अपराध पर भी अंकुश लग गया था। आनंदपाल के साथ कई गैंग पूरी तरह से टूट गई, लेकिन इसके बावजूद राजस्थान में क्राइम बढ़ता गया।
राजस्थान में अन्य राज्यों की तुलना में तेजी से अपराध बढ़े हैं। कई बड़े गैंग सक्रिय हुए हैं। ये गैंग अपना वर्चस्व बनाने के लिए एक-दूसरे के गुर्गों पर हमला करते हैं। बडे़ व्यापारियों से फिरौती मांगते हैं। इन गैंग के गुर्गों के उत्तरप्रदेश, मध्यप्रदेश, पंजाब और हरियाणा के बदमाशों से भी संपर्क रहते हैं। इसी कारण से इनको उत्तरप्रदेश और मध्यप्रदेश से बड़ी आसानी से हथियार भी मिल जाते हैं। हाईटेक हथियार मिलने से पुलिस का डर भी खत्म हो जाता है।
हत्या या फिर फिरौती जैसे मामलों में पुलिस बदमाशों को पकड़ती है तो ये बचने के लिए पुलिस पर फायरिंग करके भागते हैं। ऐसे में पुलिस भी अपराधी को पकड़ने के लिए क्रॉस फायरिंग करती है। कई बार पुलिसकर्मी भी बदमाशों की गोली के शिकार हो जाते हैं। कई बार बदमाशों का एनकाउंटर हो जाता है। सीकर और भीलवाड़ा में बदमाशों से मुठभेड़ में पुलिसकर्मियों की भी मौत हो चुकी है।
हर पुलिस अधिकारी कोशिश करता है कि बदमाश उसके इलाके में अपराध नहीं करें। वह गुंडा एक्ट में पाबंद करके बदमाश को इलाके से खदेड़ देते हैं। अक्सर बडे़-बडे़ बदमाशों की सूचना लेने के लिए पुलिस छुटभैया बदमाशों से मुखबिरी कराती है। कड़वा सच है कि ऐसे बदमाशों का पुलिस कुछ हद तक सपोर्ट करती है। मुख्य गैंग से भी पुलिस की साठगांठ रहती है। बड़ा क्राइम होने पर ऐसे छुटभैया बदमाशों से मुखबिरी कराई जाती है। राजनेता से संरक्षण प्राप्त बदमाशों से भी पुलिस दबाव में रहती है।
पहले भी लगे हैं फर्जी एनकाउंटर के आरोप
राजस्थान में पुलिस पर पहले भी फेक एनकाउंटर के कई बार आरोप लगे हैं। साल 2000 से लेकर अब तक पिछले 20 सालों में 50 से ज्यादा एनकाउंटर हो चुके हैं। राजनेता से लेकर कई आईपीएस भी फेक एनकाउंटर में फंस चुके हैं। राजस्थान में दारा सिंह, आनंदपाल सिंह, चतुर सिंह, कमलेश प्रजापति के एनकाउंटर में पुलिस पर गंभीर आरोप लग चुके हैं।
दारा सिंह एनकाउंटर में भाजपा नेता राजेंद्र राठौड़, आईपीएस पून्नू चामी सहित 14 पुलिसकर्मियों पर आरोप लगे। जेल भी जाना पड़ा था। बाद में कोर्ट ने बरी कर दिया था। सोहराबुद्धीन एनकाउंटर में आईपीएस दिनेश एमएन को जेल जाना पड़ा था। तत्कालीन गुलाबचंद कटारिया पर भी आरोप लगे थे।
पॉलिटिकल प्रेशर में पुलिस का काम करना मुश्किल
रिटायर्ड पुलिस अधिकारी उम्मेद सिंह उदावत का कहना है कि पॉलिटिकल प्रेशर बहुत बढ़ गया है। पुलिस के लिए काम करना चैलेंजिंग हो गया है। नेताओं का सपोर्ट मिलने से बदमाशों काे श्रेय मिल रहा है। पुलिस पर सीधे फायरिंग करते हैं। बचाव में पुलिस को फायरिंग करनी पड़ती है। किसी भी एनकाउंटर का 24 घंटों के अंदर पता लग जाता है। रिपोर्ट मिल जाती है। वीडियो तक सामने आ जाते हैं। अगर एनकाउंटर पर संदेह है तो उसकी उच्च जांच कराई जा सकती है। बिना जांच के किसी को पॉलिटिकल प्रेशर में हटाना गलत है। पब्लिक प्रेशर में दबाव बनाना गलत है। ऐसे में पुलिस का मनोबल गिरता है। पहले भी एनकाउंटर हुए हैं, उनमें सीबीआई जांच करवाई गई है।
संदेह होने पर जांच हो
आरटीआई कार्यकर्ता एडवोकेट गोवर्धन सिंह का कहना है कि एनकाउंटर होने के बाद परिजनों की मांग पर जांच करानी चाहिए। एनकाउंटर फर्जी है या फिर सही है, उसकी जांच होने में कहीं कोई बुराई नहीं है। अनुसंधान से पहले किसी पुलिसकर्मी को सस्पेंड किया जाना गलत है। एनकाउंटर होने पर बिना न्यायालय से तय होने पर 25 लाख रुपए देने की परम्परा गलत है। इससे गलत मैसेज जाएगा।
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