जयपुर स्थित एसएमएस मेडिकल कॉलेज। कॉलेज में प्रदेश की इकलौती जिनोम सीक्वेंसिंग लैब है। लैब में स्टाफ पर एक ही दबाव है, जल्द से जल्द कोरोना संक्रमितों के नमूनों का विश्लेषण कर पता लगाएं कि वायरस का कौन व्यक्ति वायरस के किस वैरिएंट से संक्रमित है। यहां पॉजिटिव आने वालों में से महज 38% की ही जिनोम सीक्वेंसिंग हो पा रही है। क्योंकि लोड अधिक है। मशीन में अधिकतम 14 सैंपल लगाए जा सकते हैं।
एक बार सैंपल लगाने के बाद रिपोर्ट आने में छह दिन तक लगते हैं। यदि केस बढ़ते गए तो रिपोर्ट आने का समय भी बढ़ेगा। अभी 1400 से अधिक रिपोर्ट पेंडिंग हैं। दबाव कम करने के लिए जोधपुर में भी करीब 12 करोड़ रुपए की लागत से एक और सीक्वेसिंग मशीन लगाने की तैयारी की जा रही है। दरअसल, सीक्वेंसिंग की प्रक्रिया जटिल है। इसमें सबसे पहले मरीज के सैंपल के आरएनए से डीएनए बनाते हैं। फिर इसके 200 टुकड़े किए जाते हैं। इसकी भी बार कोडिंग होती ह, तब जाकर सीक्वेसिंग की जाती है। इसके बाद इसे साफ्टवेयर में डालते हैं और ब्लास्ट करते हैं।शेष|पेज 14
इससे वायरस का ए, टी, सी, और जी स्ट्रक्चर बनता है। इस स्ट्रक्चर का विभिन्न देशों से डाली गई सीक्वेसिंग से मिलान होता है, साथ ही पता लगते हैं कि यह किस वायरस के समान है। इससे सीक्वेसिंग और लीनेज का पता चलता है। वायरस जिस वैरिएंट का होता है उसका ऑटोमेटिकली ग्राफ से सामने आता है। उदाहरण के तौर पर सबसे पहले ओ म्यूटेशन था और फिर एस, एल, जी, जीएच, जीआर और जीवी और ऑमिक्रॉन तक हो गया है। यदि अब आगे भी म्यूटेट होगा तो पता चल सकेगा।
डॉक्टर्स का कहना है कि अभी भी बड़ी संख्या में लोग कोविड टेस्ट नहीं करा रहे। यदि सभी के टेस्ट हाें तो संक्रमण का आंकड़ा बहुत अधिक होगा। बड़ी बात यह भी है कि जो लोग कोविड निगेटिव थे और जुकाम-खांसी-बुखार के बाद उनमें कोविड एंटीबॉडी टेस्ट किया गया, तो उनमें काफी बेहतर एंटीबॉडी मिलीं, यानि वे सभी कोविड पॉजिटिव हुए थे। लेकिन अब जिस तेजी से केस बढ़ रहे हैं उसमें सभी की जिनोम सिक्वेसिंग संभव नहीं, इसलिए सिक्वेसिंग के लिए चिन्हित करने की प्रक्रिया अपनानी चाहिए।
ओपीडी में बढ़े वायरल के मरीज, राहत- 98% में गंभीर लक्षण नहीं
डॉक्टर्स के अनुसार ऑमिक्रॉन के लक्षणों में भी जुकाम, खांसी, बुखार आदि शामिल हैं। ओपीडी में आने वालों का यदि टेस्टिंग हो तो लगभग सभी ऑमिक्रॉन पॉजिटिव आएंगे। राहत की बात यह है कि 98% मरीजों में सांस लेने में तकलीफ, सीने में दर्द, जकड़न या फेफड़ों में इंफेक्शन सामने नहीं आया है।
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