राजस्थान फोरम की डेजर्ट सोल सीरीज में इस बार संगीत प्रेमियों से देश के जाने-माने गजल गायक जयपुर के पद्मश्री उस्ताद अहमद हुसैन और उस्ताद मोहम्मद हुसैन रूबरू हुए। गजल गायकी के क्षेत्र में अपनी गायन की अलग शैली के जरिए खासी पहचान कायम करने वाले हुसैन बंधु जब वहां मौजूद श्रोताओं से रूबरू हुए तो उनकी शख्सियत के कई छुए और अनछुए पहलु उजागर हुए जिनका लोगों ने तहे दिल से इस्तकबाल किया। राजस्थान फोरम की सदस्या डॉ. सालेहा गाजी़ ने बहुत ही रूमानी अंदाज में हुसैन बंधुओं की सीरत से दर्शकों को रूबरू करवाया।
दो जिस्म एक आत्मा की तरह अपनी गायकी से लोगों का दिल जीतने वाले हुसैन बंधुओं ने कहा कि बचपन से लेकर पचपन तक सिर्फ संगीत के लिए जीते आए हैं। कभी यह सोचकर काम नहीं किया कि हमारी कला को किसी अवॉर्ड से नवाजा जाएगा
उन्होंने कहा संगीत के लिए अवॉर्ड बने हैं, अवार्ड के लिए संगीत नहीं। उन्होंने बताया कि उनके वालिद ही उनके गुरु रहें। वो हमेशा कहते थे कि मेरे इल्म को अपनाओ, मेरी टोन नहीं। हुसैन बंधुओं ने कहा एक कलाकार कभी भी मुकम्मल नहीं होता वो ताउम्र एक शिष्य ही बना रहता है। गजल के साथ-साथ भजन में भी अपना नाम करने वाले हुसैन बंधु कहते हैं कि बचपन में स्कूल में प्रार्थना सुनते आए हैं, भजनों से रिश्ता वहीं से हो गया और उसके बाद गुलशन कुमार के साथ यह रिश्ता और पुख्ता हो गया। दोनों ने प्रोग्राम में गणेश वंदना और अपनी चर्चित गजल ‘मैं हवा हूं कहां है वतन मेरा’ सुना कर दर्शकों को अभिभूत कर दिया।
पाश्चात्य संगीत पर हिलते हैं पैर
पाश्चात्य संगीत पर बात करते हुए उन्होंने कहा की भारतीय संगीत सुनकर सर झूमने लगता है जबकि पाश्चात्य संगीत पर पांव थिरकने लगते हैं। कला कोई भी बुरी नहीं है, बशर्ते वो बेसुरी ना हो। कलाकार को अपनी कला का प्रदर्शन पूरी आत्मा से करना चाहिए। इस अवसर पर राजस्थान फोरम के सदस्य इकराम राजस्थानी, पद्मश्री शाकिर अली, रामकिशोर छीपा, मुन्ना मास्टर, डॉ. मधु भट्ट तैलंग, नंद भारद्वाज और संजय कौशिक सहित कई गणमान्य अतिथि उपस्थित रहे। अंत में फोरम के सभापति पद्मभूषण पंडित विश्वमोहन और राजस्थान फोरम के वरिष्ठ सदस्य इकराम राजस्थानी ने हुसैन बंधुओं को स्मृति चिन्ह भेंट कर उनका अभिनंदन किया।
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