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लोग कहते थे बौना, अब परिवार की पहचान बना:क्रिकेटर बनना चाहते थे, लंबाई कम होने की वजह से छोड़ा, पिता की सलाह पर थामा रैकेट; 3 साल में बने वर्ल्ड चैंपियन, VIDEO

जयपुर2 वर्ष पहलेलेखक: स्मित पालीवाल
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टोक्यो पैरालिंपिक में जयपुर के बैडमिंटन खिलाड़ी कृष्णा नागर ने गोल्ड मेडल जीता है। कृष्णा की जीत के बाद जयपुर के प्रतापनगर में उनके घर में खुशी का माहौल है। आम से खास सभी कृष्णा के घर पहुंच रहे हैं और परिजनों को बधाई दे रहे हैं। वहीं कृष्णा के जयपुर आने का इंतजार कर रहे हैं, ताकि गोल्ड मेडलिस्ट कृष्णा का स्वागत सत्कार कर सके।

कृष्णा से फोन पर बात करते परिजन।
कृष्णा से फोन पर बात करते परिजन।

कृष्णा का जयपुर से लेकर टोक्यो तक का सफर इतना आसान नहीं था। महज 2 साल की उम्र में कृष्णा के परिजनों को उनकी लाइलाज बीमारी का पता चला। इसके बाद कृष्णा की उम्र तो बढ़ रही थी, लेकिन लंबाई नहीं बढ़ रही थी। कृष्णा भी निराश होने लगे। कृष्णा की हाइट 4 फीट 2 इंच पर ही थम गई। परिजनों ने कृष्णा का हर पल पर साथ दिया और उन्हें मोटिवेट किया। उसका ही नतीजा है कि कृष्णा बैडमिंटन शॉर्ट हाइट कैटेगरी में भारत के लिए पहला गोल्ड मेडल जीतने वाले खिलाड़ी बने हैं।

मिठाई खिलाकर कृष्णा की जीत की बधाई देते परिजन।
मिठाई खिलाकर कृष्णा की जीत की बधाई देते परिजन।

कृष्णा ने लोगों के ताने सुनकर घर से बाहर निकलना बंद कर दिया था
कृष्णा के पिता सुनील नागर ने बताया कि गोल्ड मेडल जीतने से पहले कृष्णा ने कड़ी मेहनत की है। कृष्णा ने बैडमिंटन के लिए घर-परिवार, यारी-दोस्ती सबकुछ छोड़ दिया और लगातार मेहनत की। उसी का नतीजा है कि आज यह मुकाम हासिल किया है। उन्होंने बताया कि यह सफर इतना आसान नहीं था। लंबाई कम होने की वजह से लोग कृष्णा को ताने देने लगे थे। बौना कहते थे। कृष्णा ने घर से बाहर निकलना भी बंद कर दिया था, लेकिन परिवार के सदस्यों ने उन्हें कभी कमतर महसूस नहीं होने दिया। लगातार खेलने के लिए मोटिवेट करते रहे। ताकि वह खुद को सब बच्चों की तरह ही समझ सके।

बचपन से क्रिकेटर बनना चाहते थे।
बचपन से क्रिकेटर बनना चाहते थे।

क्रिकेटर बनना चाहते थे कृष्णा
कृष्णा के पिता सुनील नागर ने बताया कि कुछ सालों पहले तक कृष्णा क्रिकेटर बनना चाहते थे। लंबाई कम होने की वजह से बैटिंग के दौरान हर बॉल बाउंस होकर कृष्णा के सिर के ऊपर से निकल जाती थी। इसके बाद कृष्णा ने क्रिकेट छोड़ वॉलीबॉल खेलना शुरू किया। इसमें वे काफी अच्छे डिफेंडर बन गए, लेकिन लंबाई की वजह से उसने वॉलीबॉल भी छोड़ दिया। फिर पिता ने बैडमिंटन खेलने की सलाह दी और कृष्णा को सवाई मानसिंह स्टेडियम लेकर गए। जहां साल 2017 से उन्होंने बैडमिंटन खेलना स्टार्ट किया।

कृष्णा के घर पर लगी अवॉर्ड की कतार।
कृष्णा के घर पर लगी अवॉर्ड की कतार।

दोस्त बन पिता ने की कृष्णा की मदद
कृष्णा के पिता हर दिन सुबह कृष्णा को मोटरसाइकिल से 13 किलोमीटर दूर स्टेडियम छोड़ते थे। जहां वह दिनभर प्रैक्टिस करते और शाम होने के बाद बस में बैठ घर आते थे। इस दौरान कृष्णा हर दिन अपने खेल में सुधार करते गए और कई प्रतियोगिताओं में मेडल भी जीते। इसके बाद राजस्थान सरकार ने उन्हें नौकरी से भी नवाजा। अब पैरालिंपिक में कृष्णा ने गोल्ड मेडल जीतकर देश का नाम दुनिया में रोशन कर दिया है।

गोल्ड मेडल जीतने के बाद कृष्णा के घर पर जश्न का माहौल।
गोल्ड मेडल जीतने के बाद कृष्णा के घर पर जश्न का माहौल।

भाई के आने के बाद मनाऊंगी राखी
कृष्णा कि बहन ने बताया कि पैरालिंपिक की तैयारियों के कारण भाई पिछले 6 महीने से जयपुर से बाहर थे। इस वजह से राखी पर कृष्णा को राखी भी नहीं बांध पाई थी, लेकिन अब भाई ने मेडल जीत लिया है। जिस दिन भाई घर आएंगे, उसी दिन राखी का त्योहार मनाऊंगी।

गोल्ड मेडल जीतने के बाद कृष्णा नागर।
गोल्ड मेडल जीतने के बाद कृष्णा नागर।

परिवार की पहचान बना कृष्णा
कृष्णा के चाचा अनिल ने बताया कि उनके भतीजे की सालों की मेहनत का नतीजा अब दुनिया के सामने आ गया है। अब तक जहां लोग कृष्णा को हमारी वजह से जानते थे। वहीं अब पूरे परिवार की पहचान कृष्णा के नाम से होने लगी है। हम सबके लिए गर्व की बात है। मुझे बस अब इंतजार है, अपने भतीजे का। जिस दिन वह जयपुर लौटेगा, उसका ऐसा स्वागत करूंगा कि सब देखते रह जाएंगे।

जयपुर के कृष्णा ने रचा इतिहास

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