श्मशान में चिताओं के बीच बजा 'मुन्नी बदनाम हुई' गाना:लोगों ने धार्मिक भावनाएं भड़काने का आरोप लगाया, मंडली ने बताया क्यों बजाए 'अश्लील गीत'

जयपुर3 महीने पहलेलेखक: अनुराग त्रिवेदी
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जिस श्मशान घाट में लोग मौत पर आंसू बहाते हैं, चिता सजाकर अग्नि दी जाती है, वहां तालियों की गड़गड़ाहट में 'मुन्नी बदनाम हुई' जैसे बॉलीवुड गानों पर डांस देखकर हर कोई हैरान है। इसका एक वीडियो भी सामने आया है।

भास्कर ने पड़ताल की तो सामने आया कि यह वीडियो जयपुर के प्रताप नगर मोक्षधाम का है। बीते मंगलवार को यहां कुछ लोगों, महिला दर्शकों की मौजूदगी में थियेटर आर्टिस्टों ने 'श्मशान घाट' नाम के एक नाटक का मंचन किया।

नाटक के बावजूद लोगों को इसमें बजे बॉलीवुड गानों पर आपत्ति है। कई लोगों ने नाटक के निर्देशक और कलाकारों पर धार्मिक भावनाएं भड़काने का आरोप लगाया है। पूरा मामला है क्या और क्यों इस पर बवाल मचा है, यही सच जानने के लिए भास्कर ने नाटक के निर्देशक से बातचीत की और उन सवालों के जवाब लिए जिसे लेकर लोगों में नाराजगी है...

सबसे पहले जान लीजिए इवेंट क्या था?
दरअसल, जयपुर में मंगलवार रात 8 बजे प्रतापनगर के हल्दीघाटी मार्ग स्थित श्मशान घाट में जीतेन्द्र शर्मा निर्देशित नाटक 'श्मशान घाट' का मंचन किया गया। डायरेक्टर ने दावा किया कि इतिहास में श्मशान भूमि पर रात के अंधेरे में पहली बार अनोखे तरीके से नाटक का मंचन हुआ।

दिनभर में जहां अर्थियों को अग्नि देने के बाद जहां अस्थि विसर्जन की मटकियां रखी जाती हैं, उसी के सामने मंच सजाया गया। अंतिम संस्कार के लिए बने शेड के नीचे स्पीकर लगाए गए। मंच के सामने दर्शकों के लिए 150 कुर्सियां भी लगाई गईं। नाटक में जिन गानों पर डांस दिखाया गया, वो आमतौर पर पार्टियों में ही बजते हैं। दोनों ही गाने सलमान खान की फिल्मों से लिए गए, 'मुन्नी बदनाम हुई' और 'दिल दीवाना बिन सजना के'।

नाटक श्मशान घाट के लेखक और निर्देशक जीतेन्द्र शर्मा।
नाटक श्मशान घाट के लेखक और निर्देशक जीतेन्द्र शर्मा।

अब पढ़िए, भास्कर रिपोर्टर की निर्देशक जीतेन्द्र शर्मा से बातचीत...

सवाल: जहां चिताओं को अग्नि दी जाती है, वहीं मंचन करने की क्या सूझी?
जवाब: जैसा की नाम नाटक का नाम 'श्मशान घाट' था। नाटक सत्य घटनाओं से प्रेरित है। हमें नाटक के जरिए एक संदेश देना था कि इंसान की जिंदगी बहुत छोटी होती है और इंसान अपनी जिंदगी को कुविचार और दुर्व्यसन के कारण छोटा कर लेता है। ऐसे में हम चाहते हैं कि लोग शुभ विचार अपनाएं और इंसानियत को आगे रखें।

इसी को ध्यान में रखते हुए नाटक बनाया और कथन के अनुसार ही उसे उसी जगह करने का निर्णय लिया। हमारा संदेश वहीं से अच्छे से जा सकता था। ताकि लोग वहां आकर देखें, समझें और विषय के साथ कनेक्ट हो सकें। स्वामी विवेकानंद ने सिर्फ 40 साल की जिंदगी जी, लेकिन उन्होंने अच्छे विचारों से अपनी जिंदगी को बहुत बड़ा बना दिया। यही हम नाटक से समझाना चाह रहे थे।

सवाल: क्या पहली बार श्मशान में नाटक मंचन किया, मकसद क्या था?
जवाब:
श्मशान घाट पर तो मेरे विचार से पहली बार ही नाटक का मंचन किया गया है, जो पूर्णकालिक नाटक और रात में किया गया है। यदि पहले किसी ने किया होगा तो पूर्णकालिक नहीं होगा या बाहर किया होगा। इसका मकसद इंसान के कुविचारों को दूर करना चाहते थे। जो चीजें मैंने देखी हैं, जो सत्य घटनाएं हैं, उन्हें ही विभिन्न किरदारों के जरिए सामने लाया हूं।

प्रतापनगर के हल्दीघाटी मार्ग स्थित श्मशान घाट में चिता वाले शेड के नीचे लगे स्पीकर।
प्रतापनगर के हल्दीघाटी मार्ग स्थित श्मशान घाट में चिता वाले शेड के नीचे लगे स्पीकर।

श्मशान घाट की मिट्टी को लोग चोरी करते हैं, ट्रैक्टर से लेकर जाते हैं, हरे-भरे पेड़ों को काटकर अपने घर का चूल्हा जलाते हैं। लोग रात को श्मशान घाट पर आकर शराब पार्टी करते हैं। जिस श्मशान घाट पर मैंने यह नाटक किया है, उसका इतिहास भी ऐसा ही रहा है। पहले वहां लोग शराब पार्टी और अनैतिक कार्य करते थे। नेताजी का एक किरदार इस नाटक में दिखाया है, उसके जरिए बताया गया है कि लोग कैसे श्मशान की जमीनों पर अतिक्रमण कर लेते हैं और उन्हें बेच भी देते हैं।

यह असलीयत में कई जगहों की पीड़ा है। गांवों की स्थितियां देखें तो वहां के लिए आने वाले फंड को सरपंच खा जाते हैं। इन्हीं घटनाओं को नाटक में दिखाया गया है। श्मशान से जुड़े कई मामलों में सरपंचों और अधिकारियों को सजा भी हुई है। ऐसे में हमारा मकसद यही था कि लोग कुविचार त्याग कर शुभ कार्य करें।

सवाल: अगर नाटक का सब्जेक्ट अच्छा था, लोगों को कोई मैसेज देना था तो नुक्कड़ नाटक भी कर सकते थे।
जवाब:
नुक्कड़ नाटक पूर्ण संदेश देने में कभी सफल नहीं होते। नुक्कड़ के जरिए विषय को रखा जा सकता है, लेकिन जो पूर्णकालिक नाटक होते हैं, वे ऑडियंस के बीच ज्यादा असरदार होते हैं। मुझे नहीं लगता कि नुक्कड़ से कोई प्रभावित होगा। इसमें ड्रेस भी नहीं होती है, ऑडियंस भी कनेक्ट नहीं हो पाती है। मुद्दे पर प्रभाव एक पूर्ण नाटक ही डाल सकता है। हमारे नाटक के बाद दो कलाकारों ने पूरी तरह से नशा छोड़ने की सबके सामने शपथ ली।

श्मशान घाट नाटक के मंचन के दौरान टीम के कलाकार।
श्मशान घाट नाटक के मंचन के दौरान टीम के कलाकार।

सवाल : श्मशान घाट पर बॉलीवुड गाने बजाए गए, सवाल उठ रहे हैं कि उससे लोगों की भावनाएं आहत हुई हैं?
जवाब:
बॉलीवुड गाने हमने शौकिया तौर पर नहीं बजाए। नाटक का एक किरदार 30 वर्ष का युवक है, कॉलेज के बाद घर आता है। आते ही वह घर की सारी लाइट जला देता है, पानी व्यर्थ में बहा देता है। भोजन करने के बाद बहुत जूठन छोड़ देता है। वह सलमान खान का फैन होता है और सलमान के गाने तेज आवाज में बजाकर नाचने लग जाता है। सलमान का सीन दिखाना था तो हमें उनके पॉपुलर सॉन्ग बजाने पड़े। किरदार थोड़ा वैसा होता है, इसलिए गानों का चयन भी उसके हिसाब से ही किया गया।

नाटक में जैसे ही गाना खत्म होता है, पिता की एंट्री होती है और पिता यही कहते हैं कि मैं कितनी मेहनत से पैसे कमाता हूं और तुम लाइट, पानी और खाने की वेस्ट कर रहे हो। पढ़ाई के लिए बहाने बनाते हो और अभी बॉलीवुड गानों पर डांस कर अपना समय खराब कर रहे हो। बेटा इस बात से गुस्सा होकर बाप को घर से बाहर निकाल देता है और उसे वृद्धाश्रम छोड़ आता है।

वृद्धाश्रम की घटना भी सच्ची है, मैं एक वृद्ध से मिला था, उन्होंने जो कहानी बताई उसे मैंने सीन में शामिल किया। जो गाना उन्होंने बताया उसे ही मैंने नाटक में लिया। मुझे किसी को आहत नहीं करना था, मैंने श्मशान घाट पर यह गाना नहीं बजाया है, यह श्मशान घाट पर बनाए गए रंगमंच पर नाटक के सीन का हिस्सा था। इसे दूसरे अर्थ में नहीं लेना चाहिए।

सवाल : लोगों का सवाल है कि बॉलीवुड गाने ही क्यों स्क्रिप्ट का हिस्सा रखे गए, श्मशान भूमि में भजन भी बजा सकते थे?
जवाब:
जैसा मैंने पहले पहले बताया कि यह सीन भी सच्ची घटना पर आधारित था। यदि वह बच्चा भजन सुन रहा होता तो उसका अर्थ होता कि वह संस्कारी, आज्ञावान और पारिवारिक है, जो मेरी कहानी से मेल नहीं हो सकता था। भजन चलाते अगर वहां जरूरत होती तो।

प्रतापनगर स्थित सार्वजनिक श्मशान घाट पर नाटक श्मशान घाट का मंचन हुआ।
प्रतापनगर स्थित सार्वजनिक श्मशान घाट पर नाटक श्मशान घाट का मंचन हुआ।

सवाल : क्या नाटक के लिए कोई परमिशन ली गई थी?
जवाब:
मैंने सभी तरह की परमिशन ली थी। बात करें अपनी मान्यताओं के हिसाब से तो मैं भी हिंदू हूं और सनातनी हूं। मेरे घर में पूजा पाठ होती है। कहीं जाते भी हैं तो देवता की परमिशन लेते हैं। मैंने सबसे पहले श्मशान देवता की पूजा की, पूरी कास्ट ने दंडवत प्रणाम किया था। श्मशान के राजा भगवान शंकर की पूजा अर्चना की।

इसके बाद श्मशान घाट के पुजारी और प्रमुख प्रेमजी से लिखित परमिशन ली। उन्होंने भी हमारा सहयोग किया। उन्होंने वहां स्टेज से लेकर कुर्सियां और कलाकारों के लिए चाय-पानी की व्यवस्था की। उनका यह मानना था कि नाटक करना है तो अच्छी तैयारी के साथ ही करें, मेरे पास अकाउंट में उस वक्त 8 हजार रुपए ही थे, तो उन्होंने हमारी पूरी मदद की।

सवाल: ऑडियंस के रूप में किस तरह के लोग मौजूद थे?
जवाब: दर्शक दीर्घा में सरकारी कर्मचारी, अधिकारी, राजनीतिक पार्टियों के नेता, कार्यकर्ता, महिलाएं और धर्म संगठनों से जुड़े लोग मौजूद थे। सभी ने खूब सराहा। हमने किसी को जबरदस्ती नहीं बुलाया। मोबाइल और अखबारों के जरिए सूचना भेजी थी। 150 कुर्सी लगाई गई थी और उससे ज्यादा लोग वहां मौजूद थे।

मंचन के बाद वहां पहुंचे मुख्य अतिथियों के साथ पूरी नाटक मंडली।
मंचन के बाद वहां पहुंचे मुख्य अतिथियों के साथ पूरी नाटक मंडली।

आइए, बताते हैं नाटक श्मशान घाट की कहानी क्या है?

30 वर्षीय युवा फूलचंद प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहा है, जो दिन भर घर में पंखा बिजली के बल्ब ट्यूबलाइट, नल-पानी चलता छोड़कर सब का व्यर्थ उपयोग करता है। पढ़ने के बजाय सारे दिन तेज आवाज में फिल्मी संगीत सुनता है।

भोजन की जूठन थाली में छोड़ उसे वाशबेसिन में बहा देता है, गरीब बाप इन सब से दुखी होकर बेटे को ऐसा करने से तो मना करता है, तो बेटा नाराज होकर बुजुर्ग बाप से लड़कर उस पर हाथ उठा देता है और पिता को वृद्धाआश्रम की ओर धकेल देता है। यह करने के बाद वह अपने फूफा नेताजी के पास सफाई देने चला जाता है।

यहां पर युवा कलाकारों ने अभिनय किया, जिसमें युवा अभिनेत्रियां भी शामिल थी।
यहां पर युवा कलाकारों ने अभिनय किया, जिसमें युवा अभिनेत्रियां भी शामिल थी।

नेताजी फूलचंद को लेकर अपने 2 साथी (ठेकेदार और चुल्या) के साथ अपनी पत्नि से चोरी चुपके श्मशान घाट में रात को शराब पार्टी करने चले जाते है। शराब के नशे में सभी एक दूसरे के कुविचारों और दुर्वव्यसनों को बता कर एक दूसरे को अपमानित करते हुए बतलाते है कि ठेकेदार की पत्नी श्मशान घाट के पूरे पेड़ काट कर घर ले जाती और स्वयं भी यहां की मिट्टी ट्रॉली से उठाकर घर ले जाता है।

चुल्या दिन के 500 रुपए कमाकर पूरे पैसों की शराब पी जाता है और घर पर पत्नी 40 रुपए की सब्जी के लिए कहती है तो उस को मारता है। वहीं फूलचंद पानी और बिजली के व्यर्थ उपयोग पर समझाने पर अपने बुजुर्ग बाप को घर से बाहर निकाल देता है। इसी तरह नेताजी भी श्मशान घाट की जमीन पर अतिक्रमण कर के बैठा है।

(जैसा कि नाटक के लेखक और निर्देशक जीतेन्द्र शर्मा ने बताया)

शुभ विचार संस्था जयपुर की रेपटरी शाखा की ओर से प्रस्तुत इस नाटक की परिकल्पना और निर्देशन शास्त्रीय संगीत और नाट्य के शोधार्थी रंगकर्मी जीतेंद्र शर्मा ने किया।
शुभ विचार संस्था जयपुर की रेपटरी शाखा की ओर से प्रस्तुत इस नाटक की परिकल्पना और निर्देशन शास्त्रीय संगीत और नाट्य के शोधार्थी रंगकर्मी जीतेंद्र शर्मा ने किया।

ये आर्टिस्ट शामिल रहे नाटक में, निभाए किरदार
नाटक में मुकेश कुमार मीना (ठेकेदार), राहुल चौधरी (चूल्या), मनीषा शेखावत (नेताजी की पत्नी), अंकित प्रजापत (कलेक्टर), ललित कुमार जग्रवाल (फिल्मनिर्माता-निर्देशक), जगदीश खटीक ( थानेदार), गौतम मीणा (समाज सेवी), मनीष जाट (कलेक्टर सहायक), जीतेन्द्र शर्मा (श्मशान-घाट देवता) ने अभिनय किया।