हाई प्रोफाइल पार्टियों का स्टेटस सिंबल बना एमडी, एमडीएमए (मिथाइलीनडाइऑक्सी मेथाम्फेटामाइन) ड्रग और स्मैक कई लोगों की जिंदगी निगल गया। ये इतना खतरनाक है कि इसकी लत में कई बड़े अधिकारियों और स्टूडेंट तक ने सुसाइड का प्रयास कर लिया। इसकी लत इंसान को मरने पर मजबूर कर देती है। दैनिक भास्कर इसकी पड़ताल करने के लिए पैडलर तक पहुंचा।
पैडलर ने ही बताया कि वो ड्रग्स बेचने के लिए युवाओं को निशाना बनाते हैं। इन्हीं से वे अपना नेटवर्क बना इसे पूरे राजस्थान में सप्लाई करते हैं। टीम ने जब इसकी हकीकत जुटाई तो चौंकाने वाले किस्से सामने आए। शौक-मौज में शुरू हुआ ये ड्रग्स कई परिवार की जिंदगी खराब कर चुका है। कई युवा सामने आए। उन्होंने बताया कि उनके इस नशे की सजा पूरा परिवार भुगत रहा है। यहां तक कि एक पुलिस अधिकारी की भी इसके ओवर डोज से मौत हो गई।
ये उन परिवार के किस्से, जिन्हें ड्रग्स ने बर्बाद कर दिया...
ड्रग पैडलर को पकड़ते-पकड़ते खुद पुलिस अधिकारी नशे का ऐडिक्ट हुआ
आकाश (बदला हुआ नाम) पुलिस अधिकारी थे। अधिकारी रहते कई ड्रग पैडलर को पकड़ जेल भेजा। इसी दौरान उन्हें एमडी ड्रग के बारे में भी पता चला। धीरे-धीरे वे इसके एडिक्ट हो गए। पहले अफीम और स्मैक के बाद ड्रग्स की लत लग गई। ड्यूटी के दौरान नशे की शिकायत के बाद पुलिस विभाग उन्हें सस्पेंड भी कर चुका था। नौकरी से निकाले जाने के बाद कई बार नशा छोड़ने का भी प्रयास किया। एक दिन ड्रग के नशे की लत ने उनकी जान ले ली।
नशे की लत के कारण हॉस्पिटल से कूदे, पत्नी और बच्चों ने भी छोड़ दिया
रमेश (बदला हुआ नाम) ने बताया कि जैतारण में गारमेंट का बिजनेस है। पढ़ाई के बाद पिता का काम संभाला और 4 नई दुकान खोल ली। इस दौरान दोस्त ने ड्रग पार्टी और मैंने भी पहली बार स्मैक का नशा किया। इसके बाद मुझे लत लग गई। हर दिन मेरा तीन हजार खर्चा होता। नशे के लिए अपनी ही दुकान में चोरी करने की कहानी बनाई। मुझे मेरी पत्नी और बच्चों ने छोड़ दिया। मेरी लत से दुकानें बिक गईं। परेशान होकर पिता ने मुझे जयपुर के एक अस्पताल में भर्ती करवाया। यहां नशा नहीं मिलने पर मैं 30 घंटे बेहोशी की हालत में रहा।
होश आया तो ऐसी तड़प हुई कि नशे के लिए हॉस्पिटल के फर्स्ट फ्लोर पर खिड़की से कूद गया। मेरा पैर टूट गया। मेरी हालत देख मेरे पिता एक दिन खुद मेरे लिए ड्रग लेकर आए और पांव पकड़ कर कहा कि इस नशे को छोड़ दे। अब नशामुक्ति केंद्र में करीब एक साल तक रहने के बाद नशे की लत को छोड़ा। अब मैं पिछले 6 सालों से व्यापार को संभालने और पत्नी को बच्चों के साथ वापस घर लाने का प्रयास कर रहा हूं।
पिता डॉक्टर थे, अपने आखिरी समय तक इलाज करवाते रहे
मोहन (बदला हुआ नाम) ने बताया कि मैं BCA का स्टूडेंट था। मुझे सॉफ्टवेयर प्रोग्रामर बनना था। मेरे दोस्त ने मुझे पहली बार इसका नशा करवाया और इसके बाद मुझे इसकी लत लग गई। नशे की लत में कॉलेज बंक करने लगा और फर्स्ट ईयर में फेल हो गया। मेरी पढ़ाई छूट गई। नशे की लत से परेशान होकर पिता ने मेरा कई बार इलाज करवाया। मां मंदिर में नशा छुड़वाने के लिए मन्नत मांगती। मेरी शादी हुई तो पत्नी छोड़ कर चली गई। मुझे सुसाइड करने की इच्छा होती। एक बार हाथ की नस काट सुसाइड का प्रयास भी किया। सही समय पर अस्पताल पहुंचने पर बच गया। आखिर में परेशान होकर पिता ने मुझे नशा मुक्ति केंद्र में भर्ती करवाया। यहां मेरे इलाज चलने तक मेरे पिता की बीमारी से मौत हो गई। नशा छोड़कर नशा मुक्ति केंद्र से बाहर आया तो अब पढ़ाई छूटने के कारण मुझे कहीं नौकरी भी नहीं मिली। आखिर में मैंने मेरे जैसे युवाओं को नशा छुड़वाने के लिए नशा मुक्ति केंद्र में काम कर रहा हूं।
डिप्रेशन से खुदकुशी के ख्याल आते हैं
एमडी (मिथाइलीनडाईऑक्सी मैथाम्फेटामाइन यानी एक्सटैसी) और स्मैक से बॉडी में एनर्जी, हार्ट रेट बढ़ना, मसल्स टाइट हो जाते हैं। दूसरे नशे की तुलना में यह हमारे शरीर में डोपामाइन
सेरोटोनिन, नॉर एपिनेफ्रीन को इफेक्ट करता है। नशा करने वाला धीरे-धीरे डिप्रेशन में चला जाता है। इसके बाद सुसाइड का करने का ख्याल आता है। जीवन में नेगेटिविटी आने लगती है। इसका सही इलाज लेकर छोड़ सकते हैं। करीब 1 साल का समय लगता है इसके इलाज में। कई बार मरीज को रिहेब सेंटर में रखना पड़ता है।
डॉक्टर अखिलेश जैन, सीनियर सायकायट्रिस्ट, जयपुर
एमडी ड्रग स्मैक से कई गुना खतरनाक
एमडी ड्रग स्मैक से कई गुना ज्यादा खतरनाक है। पंजाब की युवा पीढ़ी इसी से बर्बाद हुई। अब ड्रग पैडलर राजस्थान में इसका जाल फैला रहे हैं। प्रशासन के साथ पेरेंट्स को विशेष सतर्कता बरतनी होगी कि उनके बच्चे कहां जा रहा है, किस के साथ उठ बैठ रहे हैं। बच्चों को दोस्त बनाकर उनके साथ हर बात शेयर करें ताकि वे अपने मन की बात आपको बता सके।
हिमांशु वैष्णव, निदेशक मन्नत सेवा संस्थान, नशा मुक्ति व पुनर्वास केंद्र जोधपुर
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