मेरा टेसू यहीं खड़ा, खाने को मांगे दही बड़ा....
बचपन में आपने भी ये जिद जरूर की होगी और दही बड़ों का स्वाद भी चखा होगा। ऐसी जिद के साथ जयपुर में एक ठेले पर भीड़ जुटती है, नाम है कलकत्ता चाट भंडार। जिस VVIP इलाके में यह ठेला लगता है, वहां CM से लेकर मंत्री-विधायकों का काफिला गुजरता है। कार की विंडो खोलकर बड़े से बड़ा VIP भी रिस्पेक्ट के साथ ऑर्डर देता है- 'पंडित जी एक प्लेट हमारी भी लगा देना।' बॉलीवुड स्टार आमिर खान, अभिषेक बच्चन से लेकर सोनम कपूर तक पंडित जी के हाथ से बने दही बड़े के जबरा फैन हैं।
ये स्वाद उन हाथों का है, जिन्हें गांव के लोग कभी ताना मारते थे कि कहीं जाकर चपरासी बन जाओ। लेकिन दौसा के पंडित रामजी लाल ने अपनी किस्मत खुद लिखी। आज राजस्थानी जायका की कड़ी में कहानी उस स्वाद की जो कलकत्ता से जयपुर पहुंचा और उसने क्या मजदूर क्या सेलिब्रिटी, सबको अपना दीवाना बनाया...
राजस्थान की सत्ता जहां से ऑपरेट होती है, उसी शासन सचिवालय के गेट नंबर-5 के सामने ही पंडित रामजीलाल का ठेला चलता है। हर वक्त ग्राहकों से घिरा रहता है। एक वक्त था जब रामजीलाल सिर पर टोकरी लादकर राज मंदिर सिनेमा से लेकर पार्क और स्कूलों के बाहर दही बड़ा बेचा करते थे। देखते ही देखते जुबां पर स्वाद ऐसा चढ़ा कि लोग उन्हें ढूंढते हुए आते। तब उन्होंने 1990 में सचिवालय के बाहर ही ठेला लगाकर अपना ठिकाना जमाया। नाम रखा कलकत्ता चाट भंडार।
उनके ठेले पर चाट के तीन ही आइटम मिलते हैं। दही बड़ा, पनीर चीला और कांजी बड़ा। तीनों का स्वाद इतना लाजवाब है कि सुबह 10 बजे दुकान खुलने के साथ ही लोगों की भीड़ लगनी शुरू हो जाती है। यह सिलसिला रात 8 बजे के बाद ही थमता है। दही बड़ों और चीलों की खासियत यही है कि इसमें ऑथेंटिक कोलकाता चाट का टेस्ट मिलता है, वो भी राजस्थानी मसालों के साथ।
81 तरह के मसालों से बनती हैं चटनियां
दही बड़ा हो या चीला इनमें डलने वाले मसाले बाजार से नहीं, बल्कि घर में पिसे होते हैं। इन्हें स्वादिष्ट बनाने के लिए 81 तरह के मसाले डाले जाते हैं। दही बड़े और चीले के साथ खास पंचमेल डाला जाता है, जो इसे दूसरी चाट से अलग बनाता है। ये हैं, दही बड़े में डलने वाली घर पर तैयार दही, पिंड खजूर की मीठी चटनी, पुदीने की चटनी, लाल मिर्ची से तैयार लहसुन चटनी और देसी चने की सब्जी।
3 बातों में अलग हैं रामजीलाल के दही बड़े
रामजीलाल बताते हैं कि वो जो दही बड़े बेचते हैं वो तीन बातों में बाकियों से अलग हैं।
पहला : राजस्थान में जो दही बड़े बनते हैं, वह मूंग की दाल से फीके तैयार होते हैं। लेकिन कोलकाता के दही बड़ों में मूंग के दाल के साथ कई तरह के मसाले पीसे जाते हैं। इनमें अदरक, हरी मिर्च, लौंग, इलायची, सौंफ, धनिया आदि मसाले मिलाए जाते हैं, जिससे इन बड़ों का रंग ब्राउन हो जाता है।
दूसरा : फर्क है साइज का आम बड़े साइज में छोटा और गोल होते हैं। जबकि उनके तैयार बड़ों का साइज काफी बड़ा और चपटा होता है।
तीसरा : बनाने के तरीका काफी अलग है। आम दही बड़ों पर केवल दही, इमली की चटनी और हरी चटनी मिलाई जाती है। लेकिन वे दही बड़ों में पंचामृत (दही, खजूर की चटनी, हरी चटनी, लहसुन की चटनी और चने की सब्जी) डालते हैं।
इसी तरह कलकत्ता चाट का चीला भी ऑर्डीनरी साइज से काफी बड़ा और मेकिंग में डिफरेंट होता है। ये मल्टीग्रेन के साथ-साथ 81 तरह के मसालों के साथ तैयार होता है।
आगे बढ़ने से पहले देते चलिए राजस्थानी जायका से जुड़े एक सवाल का जवाब...
लोग बोले- चपरासी बन जा, लेकिन मैंने....
जायका टीम जब रामजीलाल के ठेले पर पहुंची तो उन्होंने अपने स्वाद के सफर की शुरुआत की पूरी कहानी बताई। 10वीं पास पंडित रामजीलाल का ये बिजनेस मजबूरी में शुरू हुआ। पिता की मौत के बाद पूरे परिवार की जिम्मेदारी उनके कंधों पर थी। बेशुमार कर्ज के बोझ ने उन्हें पढ़ाई छोड़ने पर मजबूर कर दिया। गांव में रोजगार नहीं था तो पैसा मांगने वालों ने ताना मारना शुरू कर दिया। कहने लगे कि कहीं चपरासी की नौकरी कर लो। पर रामजीलाल की किस्मत उनसे कुछ और ही करवाना चाहती थी।
यूनिक हैं यहां की चटनी भी
बड़े शहर जाकर पैसे कमाने के लिए मां को मनाया
उन्होंने अपनी मां को मनाया और बड़े शहर जा कर पैसे कमाने के लिए राजी किया। वे दिन याद करते हुए बताते हैं कि 12 अप्रैल 1980 को मैं जेब में 53 रुपए 15 पैसे लेकर घर से निकला था। बांदीकुई से हावड़ा की ट्रेन पकड़ी और वहां जाकर एक सेठ की दुकान पर नौकरी की। इसी दौरान दही बड़े बनाने का तरीका सीखा। कुछ ही महीनों बाद खुद का ठेला लगाया और 10 साल तक खुद का चाट सेंटर चलाया।
उस जमाने में मुझे वहां 100 रुपए से ज्यादा कमाई नहीं होती थी। जिस दिन 100 रुपए से थोड़ा भी ज्यादा कमाता, खुशी से झूम उठता था। इसी दही बड़े की बदौलत मैंने धीरे-धीरे सारा कर्ज उतार दिया। वहां काम तो अच्छा चल रहा था, मगर शादी के बाद बच्चे और बीवी कोई भी कोलकाता नहीं जाना चाहते थे। ऐसे में 1990 में जयपुर आया और यहां सिर पर टोकरी लादकर घूम-घूम के दही बड़े बेचना शुरू किया। पंडित जी बताते हैं तब पहले ही दिन 200 रुपए की बिक्री हुई। इसके बाद कभी पीछे मुड़ कर नहीं देखा।
आज रोज पंडितजी और उनके बेटे मिल कर एक दुकान से 300 से ज्यादा ऑर्डर तो दही बड़े के हो जाते हैं। दही बड़ा, पनीर चीला और कांजी बड़ा, तीनों की कीमत 120 रुपए है। पंडित बताते हैं कि बच्चों को मैंने एमए बीएड करवा रखी है, लेकिन नौकरी नहीं लगी तो वो भी मेरे ही काम में जुड़ गए। तीनों बेटे पवन, विष्णू और सूर्यप्रकाश इसी बिजनेस में हाथ बंटाते हैं।
पंडित जी के इस चाट को खाने के लोग बेंगलुरु, सूरत से भी लोग आते हैं। पूर्व उपराष्ट्रपति भैरोंसिंह जी के जन्मदिन पर मुझे हर साल स्पेशल उनके घर बुलाया जाता था। जब वे सीएम थे तब से उनके दही भल्ले का स्वाद चखते रहे। इसके अलावा आमिर खान, अभिषेक बच्चन भी मेरी चाट के फैन हैं। आमिर खान जब राजा हिन्दूस्तानी की शूटिंग कर रहे थे, तब मुझे स्पेशल मुबंई बुलाया था। चाट खाने के साथ-साथ घंटों मुझसे बातें की। वहीं जयपुर में अभिषेक बच्चन की पार्टी में भी मुझे बुलाया था वहां सभी फिल्म स्टार्स ने मेरी चाट चखी। सोनम कपूर को तो मेरी चाट इतनी पसंद आई की वो सभी को मेरी स्टाल पर ले कर आ रही थी कि इस चाट का कोई जवाब नहीं।
60% लोगों ने इसका उत्तर गलत बताया। केवल 20% रीडर ही इसका सही उत्तर दे पाए। यह है जोधपुर के मंडोर में बनने वाली देसी घी की चुंटिया चक्की। बेसन से तैयार होने वाली यह चक्की पिछले 82 वर्षों से यहां आज भी लकड़ी की भट्टी पर तैयार हो रही है। इसे मंडोर की चूरमा चक्की भी कहते हैं। इसे बनाने में इसमें कोई भी फूड कलर इस्तेमाल नहीं होता। न ही चांदी के वर्क से कोई सजावट की जाती है। परंपरागत रेसिपी से ही इसे तैयार किया जा रहा है।
आखिर कैसे पड़ा नाम चुंटिया
अब आप सोचेंगे की दाल, बादाम, बेसन और किटी यानी मावा चक्की तो खाई है, लेकिन यह चुंटिया चक्की है क्या? तो आपको बता देते हैं कि यह चक्की बनती तो बेसन से ही है, लेकिन हर चक्की के पीस में से घी रिसता है। घी के इस रिसाव से हाथ में चिकनाई लग जाती है। चिकनाई को ठेठ मारवाड़ी में चिंगट कहते हैं। इसलिए इसे चिंगटी चक्की भी कहा जाता है।
लेकिन मारवाड़ में नाम बिगाड़ने की बड़ी पुरानी परंपरा रही है। लोगों ने इसका भी नाम बिगाड़ा और चिंगटी से चुंटिया चक्की रख दिया। अब इसका नाम बदल कर चूरमा चक्की हो गया है। चक्की के दीवाने इसे 'दिल खुशाल' चक्की भी कहते हैं, क्योंकि कहते है ना कुछ स्वादिष्ट खा लिया जाए तो दिल खुश हो जाता है। इस चक्की को खाने वाले वालों का भी यही मानना है।
लोग पूछते हैं बैंक है या मिठाई की दुकान
दुकान के खुलने और बंद होने का टाइम भी बैंक की तरह है। जो पहली बार यहां आता है वो पूछता है...भाई बैंक है या मिठाई की दुकान। क्योंकि दुकान सीमित समय के लिए सुबह 10 बजे खुलती है और शाम 5 बजते ही मंगल कर दी जाती है।
जायका के बाकी ऐपिसोड यहां देखें...
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ऐसा हो सकता है कि देश की कोई फेमस खाने-पीने की आइटम हो और उसका राजस्थानी वर्जन न आए। करीब 2100 साल पहले यूनान से आया पिज्जा, जब राजस्थान पहुंचा तो कुल्हड़ पिज्जा बन गया। ऐसी ही फेमस साउथ इंडियन डिश है डोसा, जो 5वीं सदी से चली आ रही है। दुनिया की टॉप-10 सबसे लजीज डिशेज में शुमार डोसा जोधपुर में बड़े ही अनूठे और देसी अंदाज में तैयार हो रहा है....(यहां क्लिक कर पढ़ें पूरी खबर)
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चाट यानी वो आइटम जिसे चखने वाला अंगुलियां चाटता रह जाए। हर शहर में चटोरों का कोई न कोई ऐसा अड्डा तो मिल ही जाएगा, जहां भीड़ टूटकर पड़ती है। वहां से गुजरने वाले भी हैरान होते हैं। इतनी भीड़ क्यों है? राजस्थानी जायका की टीम इस बार जयपुर और जोधपुर में चटोरों के ऐसे ठिकानों पर पहुंची....(यहां क्लिक कर पढ़ें पूरी खबर)
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