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यह घोटालाजीवी आयुर्वेद विभाग है। विभाग के अधिकारियों ने पहले बाजार से 10 गुना अधिक कीमत पर दवाएं खरीदीं फिर एक ऐसी लैब से जांच कराई जिसके पास आयुर्वेदिक दवाओं की जांच के लिए न तो उपकरण थे और ना ही माइक्रोबायलॉजिस्ट। हद तो यह कि लैब ने अपनी जांच रिपोर्ट भी सरकार को दे दी और सरकार ने उन दवाओं को आयुर्वेदिक अस्पतालों मे भेज भी दिया।
यह मामला है कोरोना काल में खरीदी गई 25.52 करोड़ रुपए की दवाइयों का। इसमें 21.58 करोड़ रुपए की सामान्य आयुर्वेद दवाइयां और 3.94 करोड़ रुपए की कोरोना की दवाइयां शामिल हैं। विभाग ने कोरोना के दौरान ये दवाइयां बाजार मूल्य से 10 गुना अधिक कीमतों पर खरीदी थीं। इन दवाइयों की जांच का जिम्मा जयपुर की एक निजी लैब को दिया गया था।
शर्त थी, कंपनी किसी और दूसरे लैब से जांच नहीं कराएगी
आयुर्वेद विभाग की क्रय समिति की 18 जून 2020 को बैठक में पेश किए गए तकनीकी मूल्यांकन में सामने आया कि कंपनी के पास जांच के उपकरण ही नहीं हैं। कंपनी के पास दवाइयों की जांच करने वाले माइक्रोबायोलोजिस्ट भी नहीं हैं। समिति ने माना कंपनी द्वारा दवाइयों की जांच के लिए जो उपकरणों की लिस्ट दी गई है, उनमें कोई भी उपकरण आयुर्वेद औषधियों की जांच के नहीं हैंं।
नियमानुसार, दवाइयों की जांच वही कंपनी कर सकती है जिसकी लैब में औषधियों की जांच के काम आने वाली प्रमुख 6 मशीनें हो। टेंडर में शर्त थी कि जांच के लिए अधिकृत फर्म किसी अन्य फर्म से जांच नहीं कराएगी। ऐसे में सवाल है बिना उपकरणों के जांच कैसे हुई और अगर किसी दूसरी कंपनी ने जांच की है तो विभाग ने कार्रवाई क्यों नहीं की?
दवाइयों की जांच के लिए ये मशीनें जरूरी
एटोमेटिक एर्ब्जोप्शन स्पेक्ट्रोमीटर, फोरियर ट्रांसफार्म इंफ्रा रेड स्पेक्ट्रोफोटोमीटर, डिजोल्यूशन रेट टेस्ट ऐपरेटस, डीटी मशीन, एचपीटीएलसी मशीन, डबल डिस्टिलेशन प्लांट।
परीक्षण करके ही दवाइयों की जांच का काम सौंपा गया था, गड़बड़ी नहीं
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