कृष्ण जन्माष्टमी पर पंजीरी, पंचामृत और केलों का प्रसाद तो हर मंदिर में चढ़ता है, लेकिन राजसमंद जिले के नाथद्वारा में श्रीनाथजी मंदिर एकमात्र ऐसा है, जहां दाे दिनी जन्म और नंदोत्सव के दौरान 100 से ज्यादा तरह का भोग अर्पित किया जाएगा। यहां सालभर रोज 35 से 40 तरह का भोग चढ़ता है। भगवान श्रीकृष्ण 7 साल के बालरूप में विराजित हैं। इसी कारण यहां राग-भाेग, शृंगार सेवा अलग है। यह इकलौता कृष्ण मंदिर है, जहां जन्माष्टमी पर आधी रात दो तोपों से 21 बार सलामी देकर जन्म की खुशियां मनाई जाती हैं।
नाथद्वारा में 7 साल के बालस्वरूप
अगले दिन नंदोत्सव पर श्रद्धालुओं संग होली खेली जाती है। इसमें कई क्विंटल केसर मिश्रित दूध-दही छिड़का जाता है। दो दिन के महोत्सव में गुजरात, महाराष्ट्र सहित देशभर के हजारों श्रद्धालु आते हैं। जन्माष्टमी-नंदाेत्सव पर भाेग में केसर मिली रबड़ी-घेवर, मलाई की बासोंदी, केसरी-सफेद मावे की गुज्जियां, पांच तरह के भात, मीठी सेव, केसरी पेठा, जलेबी, मेवाबाटी, विभिन्न फलों के मीठे रस, दाख का रायता, श्रीखंड चढ़ता है।
यहां भगवान को कभी अंकुरित मूंग तो कभी अचार-मुरब्बे, फीकी-मीठी रोटी-सब्जी, कई तरह के भात, पकौड़ी, किशमिश का रायता, श्रीखंड, विभिन्न फल और जूस, मेवे-दूध की मिठाइयां, रबड़ी, घी में तली पूड़ी, जीरा भात, जीरा दही, दाल-भात, घी में तले सूखे मेवे, बादाम-किशमिश से बनी मिठाइयाें का भोग चढ़ता है।
रजिस्टर्ड प्रसादिया सुनील भाटिया बताते हैं कि महाप्रभु की आज्ञा से गुसाईंजी ने बरसों पहले मंदिर में राग, भोग, सेवा की पद्धति तय की थी, जो आज भी वैसी ही है। ऋतु के अनुसार भाेग सेवा बदलती है। सर्दी की बल, पौष्टिकता बढ़ाने वाली भोग सामग्री जैसे 22 मसालों से तैयार सौभाग्य साैंठ, केसर, शिलाजीत, मेवों की अधिकता वाली मिठाइयां, मूंग दाल का हलवा, घी में तला सुरण, बादाम का हलवा चढ़ता है, तो गर्मी में शीतलता बढ़ाने वाली खाद्य और पेय सामग्री जैसे ठंडी रबड़ी, श्रीखंड, आम रस शामिल होता है।
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