महाभारत के वनपर्व अध्याय में वर्णित यवक्री की कथा पर आधारित नाटक ‘अग्नि और बरखा’ का मंचन रविंद्रमंच में हुआ। पौराणिक पृष्ठभूमि वाले नाटक में ऐसे कई नीतिगत सिद्धांतों का वर्णन किया गया है जो आज भी रेलिवेंट है। नाटक को गिरिश कर्नाड़ ने लिखा है। इसका हिन्दी अनुवाद रामगोपाल बजाज ने किया।नाटक दिखाता है स्वार्थ, ईर्ष्या, क्रोध और प्रतिशोध की अग्नि जीवन को किस तरह तबाह करती है। वहीं नाटक का डायरेक्शन ज़फ़र खान ने किया है। नाटक की कहानी रैभ्य के दो पुत्रों परावसु, अरवसु और भतीजे यवक्री के इर्द-गिर्द घूमती है।
इसमें दिखाया गया कि स्वार्थ, ईर्ष्या, क्रोध और प्रतिशोध के चलते किए जाने वाले प्रपंचों से पैदा हुई अग्नि जीवन को किस तरह तबाह करती है। इन सबके बीच भी प्रेम रूपी बरखा की बौछार से मनुष्य जीवन निखर उठता है। नाटक में अरवसु और नितिलाई नामक पात्र त्याग, प्रेमभाव से परिपूर्ण हैं। वह दूसरों के लिए त्याग कर संतुष्ट रहते हैं। इस निश्छल, निर्मल, त्यागमयी प्रेम से ही संसार का अस्तित्व है और यही समस्त जीवों को एकता के सूत्र में बांधे रखता है।
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