बीजेपी बोर्ड वाले ग्रेटर नगर निगम में आयुक्त से कथित हाथापाई के मामले में बर्खास्त मेयर डॉ. सौम्या गुर्जर को जिस न्यायिक जांच रिपोर्ट के आधार पर 6 साल तक चुनाव लड़ने पर रोक लगाई है, उसमें महापौर के खिलाफ षड्यंत्र के प्रत्यक्ष साक्ष्य नहीं मिले। परिस्थितिजन्य साक्ष्यों से महत्वपूर्ण निष्कर्ष निकाला गया कि महापौर और पार्षदों के बीच मस्तिष्कों का पूर्वमिलन था यानी यह सब करने की प्लानिंग थी। दैनिक भास्कर ने 40 पेज की न्यायिक जांच रिपोर्ट खंगाली। बता दें कि 4 जून 2021 को तत्कालीन कमिश्नर यज्ञ मित्र सिंह देव ने मेयर सौम्या गुर्जर और अन्य पार्षदों पर एक बैठक में मारपीट और धक्का-मुक्की का आरोप लगाया। इस पर 6 जून 2021 को सरकार की जांच रिपोर्ट में दोषी मानकर मेयर और तीनों पार्षदों को निलंबित कर दिया गया। हाईकोर्ट से खारिज होने के बाद 1 फरवरी 2022 को सुप्रीम कोर्ट ने निलंबन ऑर्डर पर स्टे दे दिया। 11 अगस्त को सौम्या और 3 अन्य पार्षदों के खिलाफ न्यायिक जांच की रिपोर्ट आई और इन्हें बर्खास्त कर दिया गया।
एक्ट के आधार पर इन बिंदुओं पर की जांच और रिपोर्ट में ये निष्कर्ष निकाले
जांच कर्ता : मुदिता भार्गव, विशिष्ठ शासन सचिव (विधि) एवं संयुक्त विधि परामर्श न्यायिक जांच अधिकारी
वह किसी निकृष्ट आचरण (डिसग्रेसफुल कंडक्ट) की दोषी रही हैं।
जांच में इस तर्क को माना गया कि ‘बहुत कम ऐसे अवसर होते हैं, जब इसकी प्रत्यक्ष साक्ष्य मौजूद हों। निष्कर्ष परिस्थितिजन्य साक्ष्य के आधार पर ही निकाला जा सकता है।’ जैसे- घटना घटित होने से एक घंटे पहले महापौर और पार्षद महापौर के कक्ष में एकत्रित हुए। पार्षदों के कहने पर मेयर ने 10-15 मिनट में ही दो बार सूचना देकर आयुक्त को बुलवाया। आयुक्त के आते ही मेयर और उसके पार्षदगणों ने आयुक्त के साथ अभद्रतापूर्ण व्यवहार किया।
क्या अपचारी (सौम्या गुर्जर) अपने कर्तव्यों के निर्वहन में अवचार (मिसकंडक्ट) का दोषी रहा है?
परिवादी आयुक्त ‘भारतीय प्रशासनिक सेवा’ के अधिकारी हैं। पत्रावलियों पर प्रस्ताव और स्वीकृति आयुक्त और महापौर के बीच का मामला है। इसमें पार्षदों का रोल नहीं होता। पार्षदों की शिकायत पर महापौर से एक सुशिक्षित डॉ. महिला होने के नाते अपेक्षा है कि वह आयुक्त से चर्चा पार्षदों से अलग कक्ष में ले जाकर करतीं।’ यदि पार्षदों की उपस्थिति में ही बात करनी थी तो शालीन भाषा में वार्ता की जानी चाहिए थी, जबकि मेयर ने इसके विपरीत आचरण किया।
क्या उसने सदस्य के रूप में अपनी स्थिति का दुरुपयोग किया है?
पार्षदों के कृत्य पर मेयर ने आपत्ति नहीं की, हस्तक्षेप नहीं किया, ऐसी घटना को रोकने का जो मेयर का कर्तव्य था, उसका निर्वहन नहीं किया। यह अपचारी की विवक्षित सहमति दर्शित करता है। इसलिए महापौर जिम्मेदार है।
पूरा घटनाक्रम पूर्व सुनोयोजित तरीके से षड्यंत्र के तहत किया गया?
समितियों पर आयुक्त की प्रतिकूल टिप्पणी सरकार को भेजने, समितियां भंग पर परिवादी आयुक्त को सबक सिखाने के लिए पूर्वनियोजित व षड्यंत्रपूर्वक घटनाक्रम को अंजाम दिया।
सफाई की वैकल्पिक व्यवस्था पर मचा बवाल, कचरा अब तक बिखरा
पूरा बवाल बीवीजी कंपनी की ओर से सफाई व्यवस्था से हाथ पीछे खींचने को लेकर हुआ। शहर में हौ-हल्ला मचा तो मेयर-पार्षद इसका वैकल्पिक समाधान चाह रहे थे, लेकिन आज दिन तक यह कचरा फैला हुआ है। विवाद के स्तंभ कमिश्नर-मेयर दोनों निगम में नहीं हैं। जो पार्षद दोषी पाए गए, वो कोई पार्षद छह सदस्यीय सफाई समस्या निराकरण समिति के सदस्य नहीं थे।
209 दिन बाद शील धाभाई रिटर्न्स कहा-पूरा फोक्स सफाई पर रहेगा
209 दिन बाद आखिरकार शील धाभाई को फिर से मेयर की कुर्सी मिल ही गई। धाभाई ने सबसे पहले कुर्सी को प्रणाम भी किया और आठ माह बाद फिर से ग्रेटर मेयर का पदभार संभाल लिया है। इस दौरान सिर्फ भाजपा विधायक कालीचरण सराफ और 22 पार्षद ही शीलधाभाई को बधाई देने पहुंचे। इसके अलावा उनके परिजन तथा वार्ड के कार्यकर्ता ही नजर आए। धाभाई ग्रेटर निगम में 239 दिनों तक कार्यवाहक मेयर रही और गत 2 फरवरी को सौम्या गुर्जर के पक्ष में फैसला आने पर पद छोड़ा था। भाजपा ने भले ही शील धाभाई को मेयर बनाने में रुचि नहीं ली हो, लेकिन कांग्रेस सरकार ने दूसरी बार धाभाई को मेयर की कमान दी।
जमीन में टेका माथा, कुर्सी को प्रणाम कर संभाली जिम्मेदारी
शील धाभाई ने मीडिया से बात करते हुए कहा कि उनका फोकस निगम की व्यवस्थाओं को सुधारने और पहले से ज्यादा अच्छा काम करने पर रहेगा। धाभाई ने मौजूदा कार्य व्यवस्था पर भी सवाल उठाते हुए कहा कि अभी शहर में सफाई व्यवस्था सबसे ज्यादा खराब है, जिसे ठीक करना मेरी पहली प्राथमिकता है। इधर, डॉ.सौम्या गुर्जर के बर्खास्त करने के मामले में डिप्टी महापौर ने कहा की लोकतांत्रिक प्रकिया से चुनी गई मेयर को जिस आदेश से हटाया गया वो अंतिम नहीं है। उस आदेश को न्यायिक फोरम पर चुनौती दी जाएगी।
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