7 नवम्बर को दोपहर 3.10 बजे का वक्त। करीब 25 कार्गो शिप को एक अलर्ट मैसेज मिलता है…
वंग ताऊ टाउन के दक्षिण-पूर्व में 258 नॉटिकल माइल्स पर फिशिंग बोट फंसी हुई है, जिसमें 300 से ज्यादा लोग फंसे हुए हैं।
मैसेज पर कार्गों शिप हेलियोस लीडर ने सबसे पहले रिप्लाई दिया। जिसके कैप्टन थे जयपुर के रहने वाले अनिल चौधरी जो जापान से सिंगापुर जा रहे थे।
डेढ़ घंटे में वे लोकेशन पर पहुंचे। खुद के शिप में 30 लोगों को बचाने की कैपिसिटी थी, फिर भी कैप्टन चौधरी हाई रिस्क पर 303 श्रीलंकाई नागरिकों को बचा कर वियतनाम ले गए। कैप्टन अनिल को वियतनाम और सिंगापुर में रेस्क्यू के लिए सम्मानित किया गया।
अनिल चौधरी जयपुर लौट आए हैं। वे जयपुर में रंगोली ग्रीन अपार्टमेंट में रहते हैं। दैनिक भास्कर टीम ने कैप्टन से जाना कि आखिर कैसे उन्होंने 303 श्रीलंकाई नागरिकों को रेस्क्यू किया। इस दौरान क्या चुनौतियां उनके सामने आईं?
पढ़िए कैप्टन अनिल चौधरी की जुबानी…
लंच के बाद आराम कर रहे थे, तब मिला मैसेज
‘दो नवम्बर को हम जापान से कार्गों शिप हेलियोस लीडर पर सिंगापुर के लिए निकले थे। मेरे साथ 25 क्रू मेंबर्स की टीम थी। हमें 9 नवम्बर को सिंगापुर पहुंचना था।’
‘7 नवम्बर काे दोपहर 3.10 बजे मैं लंच के बाद आराम कर रहा था। तभी एक क्रू मेंबर आया और बोला- MRCC (मेरीटाइम रेस्क्यू कॉर्डिनेशन सेंटर) का अलर्ट मैसेज आया है। आसपास एक बोट फंसी हुई है। उसमें 310 लोग हैं। रेस्क्यू करना है।’
‘ये पता चलते ही मैं केबिन में गया और टीम से बात की। इसके बाद MRCC और NYK (जापान मेल शिपिंग लाइन) काे मैसेज भेजा कि हम रेस्क्यू के लिए जा रहे हैं।’
डेढ़ घंटे में बोट के पास पहुंचे
‘क्रू मेंबर को मोटिवेट करने के बाद हम कार्गो शिप को लेकर निकले। बोट की लोकेशन दक्षिण-पूर्व में 258 नॉटिकल माइल्स थी। कार्गो शिप की स्पीड बढ़ाई और डेढ़ घंटे में वहां पहुंच गए। बोट में महिलाओं, बच्चों के साथ 303 लोग फंसे थे। मौसम खराब था, तेज हवाएं चल रही थीं। अंधेरा गहरा रहा था। इतने लोगों को रेस्क्यू करना बड़ी चुनौती थी।’
बोट का इंजन खराब, पानी भरने लगा
‘ये एक फिशिंग बोट थी, जोकि काफी छोटी थी। बोट में ठूंस-ठूंस कर 303 श्रीलंकाई नागरिकों को बिठाया गया था। ये लोग श्रीलंका में आर्थिक हालातों से परेशान होकर चोरी-छिपे कनाडा और ऑस्ट्रेलिया जा रहे थे।’
‘बोट का इंजन खराब हो चुका था। पानी भरने से बोट धीरे-धीरे डूब रही थी। वे 303 लोग दो दिन से बोट में फंसे हुए थे। भूखे-प्यासे थे। कई लोगों की तबीयत बिगड़ गई थी।’
शिप में हो सकता था छेद
‘हम पास पहुंचे तो हवा के दबाव से बोट तेजी से घूम रही थी। रेस्क्यू के लिए बोट के पास जाना भी मुश्किल था। क्योंकि बोट की टक्कर से उनके कार्गो शिप में छेद भी हो सकता था। दो बार बोट के पास जाने की कोशिश की, लेकिन हिम्मत नहीं हारी। हमने दोनों तरफ से शिप के पैरेलल बड़े रस्से से बोट को बांधा और रेस्क्यू शुरू किया।’
लोग पहले जाने की जिद करने लगे
‘शिप पास पहुंची तो डरे हुए लोगों में जिंदगी की उम्मीद जगी। वे पहले जाने के लिए जिद करने लगे। हंगामा करने लगे। हमने उन्हें समझाया कि पहले छोटे बच्चों और महिलाओं को चढ़ाया जाएगा।’
‘बड़ी चुनौती थी कि एक भी बच्चा व महिला समुद्र में गिरी तो रेस्क्यू रोककर पहले उन्हें निकालना होगा। दो क्रू मेंबर को पहले से तैनात कर दिया गया। एक-एक कर 24 महिलाएं व 20 बच्चों को ऊपर लेकर आए। इनमें 10 बच्चे तो काफी छोटे थे, रेस्क्यू में काफी परेशानी हुई।’
शिप में 30 की कैपेसिटी, 303 को बचाया
‘हमारे कार्गों शिप में नियमों के तहत केवल 30 लोगों को रखने की कैपेसिटी थी। क्रू मेंबर ने भी 30 लोगों को ही लाने के लिए बोला। पहले हम 30 महिलाओं और बच्चों को लेकर आए। फिर क्रू मेंबर को मोटिवेट कर 100 लोगों को लाए। क्रू मेंबर मना करने लगे, लेकिन हमने रिस्क लिया, क्योंकि उसके अलावा कोई रास्ता नहीं था। ऐसा नहीं हो सकता था कि हम 30 लोगों को बचाएं और बाकी को किस्मत के भरोसे छोड़ दें।’
3 कुक ने 303 लोगों का खाना बनाया
‘शिप में लाने के बाद सबसे बड़ा चैलेंज उन 303 लोगों को इलाज करना और उनके लिए खाना बनाना था, क्योंकि वो 2 दिन से भूखे थे। मेडिकल टीम ने पहले सभी का इलाज शुरू किया। शिप में 3 ही कुक थे, न ही ज्यादा राशन था। तीनों कुक ने जो भी शिप में राशन था, उसी से खाना तैयार किया। इसके बाद लंगर की तरह बैठाकर सभी को खाना खिलाया।’
रेस्क्यू के 15 घंटे बाद वियतनाम पहुंचे
‘कार्गों शिप में चेन्नई के रहने वाले चीफ इंजीनियर दिनेश खन्ना भी थे। इसके अलावा 19 फिलीपिंस, 4 वियतनाम व 1 सिंगापुर का स्टाफ था। वे सभी काफी घबराए हुए थे। क्योंकि 303 लोगों को संभाल कर रखना काफी मुश्किल था। उन पर वे लोग हमला भी कर सकते थे। रेस्क्यू करने के बाद वे तेजी से शिप को लेकर 15 घंटे बाद वियतनाम पहुंच गए। क्योंकि सिंगापुर से उन्हें वियतनाम जाने के लिए मैसेज भेजा गया था।’
वियतनाम पोर्ट पर श्रीलंकाई करने लगे विरोध-प्रदर्शन
‘हम 8 नवम्बर की सुबह 10.30 बजे वियतनाम में गुमताउ पोर्ट पर पहुंच चुके थे। वहां पर अथॉरिटी, पुलिस व श्रीलंका एंबेसी से भी आफिसर पहुंचे। अब उन लोगों को पोर्ट से आगे ले जाना था। इसके लिए दो बड़े शिप मंगवाए गए। जिनमें 150-150 लोगों को ले जाना था।’
‘श्रीलंका के लोग विरोध-प्रदर्शन करने लगे। उन्होंने जाने से मना कर दिया। वे किसी की बात काे सुनने के लिए तैयार नहीं थे। मैंने उन्हें समझाया कि उनके साथ कोई दिक्कत नहीं होगी। दोपहर करीब दो बजे वे जाने के लिए तैयार हुए।‘
‘शाम को हम एक्स्ट्रा फ्यूल व क्रू मेंबर्स के लिए खाना लेकर रवाना हुए। पोर्ट अथॉरिअी व पोर्ट मास्टर ने पूरी टीम को रेस्क्यू मिशन के लिए सम्मानित किया। हम 11 नवम्बर को वापस सिंगापुर पहुंचे। वहां पर भी Nyk line और अथॉरिटी की ओर से सम्मानित किया गया।’
पत्नी बोली : रेस्क्यू का मैसेज मिला तो पूरी रात सो नहीं सकी
कैप्टन अनिल चौधरी की पत्नी राजेश्वरी ने बताया कि उनके पास दोपहर में मैसेज आया कि रेस्क्यू मिशन पर जा रहे हैं। इसके बाद मोबाइल पर कोई संपर्क नहीं हो सका। वे देर रात तक बार-बार कॉल करती रही, लेकिन कनेक्ट नहीं हुआ।
राजेश्वरी ने बताया कि पूरी रात सो नहीं सकी। मन में सवाल उठते रहे कि पता नहीं क्या हो रहा है। सुबह होते ही हालात जानने के लिए सीधे उनके डिपार्टमेंट में मेल कर दिया। वहां से मैसेज मिला कि रेस्क्यू चल रहा है, लेकिन सब कुछ ठीक है। तब जाकर सुकून मिला। एक दिन बाद पति अनिल चौधरी से बात हो सकी। रेस्क्यू की बात सुनकर वे भी कांप उठी।
पिता आर्मी में थे, परिवार से ही मिली प्रेरणा
कैप्टन अनिल चौधरी बताते है कि उनका जन्म नागौर के परबतसर में हुआ था। वह लंबे समय से जयपुर की रंगोली ग्रीन अपार्टमेंट में परिवार के साथ रहते हैं। उनके पिता सूरजमल चौधरी भी आर्मी में थे। मेजर के पद से रिटायर हुए थे।
आर्मी के कई बड़े ऑपरेशन में पिता शामिल रहे थे। वे खुद हिमाचल में आर्मी स्कूल में पढ़े थे। साल 1994 में उन्होंने मर्चेंट नेवी जॉइन की। इसके बाद 2004 में उन्होंने एनवाईके लाइन को जॉइन किया था। चौधरी को साल 2010 में प्रमोट कर कैप्टन बनाया गया। वे कार्गो ऑपरेशन करते हैं। उनके भाई राजेश चौधरी बिजनेसमैन हैं।
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