SOG की सस्पेंड ASP दिव्या मित्तल ने राजस्थान में नशीली गोलियां-इंजेक्शन बेचने वाले सरगनाओं को जेल जाने से कैसे बचाया? भास्कर ने इसके एक-एक कनेक्शन की पड़ताल की।
2 साल पहले अजमेर और जयपुर में जो 16 करोड़ रुपए की नशीली दवाइयां पकड़ी गईं, वो अब तक की सबसे बड़ी कार्रवाई थी।
राजस्थान पुलिस और SOG के कुछ अफसरों ने नशीली दवाइयों के सबसे बड़े माफिया और फैक्ट्री मालिकों पर शिकंजा कसना शुरू कर दिया था। जब दिव्या ने ये फाइलें अपने हाथ में लीं तो करोड़ों के मुनाफे वाले कारोबार को देख उसकी नीयत खराब हो गई।
दिव्या ने अपनी जांच में टेक्निकल तरीके से गेम खेला। तीनों FIR की जांच कर दो तरीके की रिपोर्ट बनाई। एक रिपोर्ट में तो सारे सबूत रखे, जिसके चलते दवाइयां सप्लाई करने वाले ड्राइवर, मेडिकल दुकान संचालक और कर्मचारियों को बड़ा आरोपी बताकर गिरफ्तार किया। ताकि जमानत भी न हो सके, जबकि दूसरी रिपोर्ट में हलके सबूत डालकर बड़े गुनहगार फैक्ट्री मालिकों को बचाने का रास्ता निकाल लिया।
केस में कमियां छोड़ी, ताकि गिरफ्तार भी हो तो जमानत हो जाए। जिन फैक्ट्री मालिकों की कोई डायरेक्ट भूमिका नहीं थी। उन्हें भी पूछताछ में नाम सामने आने की बात कहकर गिरफ्तारी का डर दिखाया और करोड़ों की डिमांड की।
दिव्या कैसे अपने कारनामों को अंजाम देती रही, पढ़िए- इस स्पेशल रिपोर्ट में…
अफसरों ने शुरू कर दिया था शिकंजा कसना
जयपुर और अजमेर में मई 2021 में 16 करोड़ की नशीली दवाइयां मिलने के तीन मामलों की जांच सबसे पहले राजस्थान पुलिस के अजमेर में तैनात इंस्पेक्टर दिनेश कुमावत और डीएसपी मुकेश सोनी ने की थी।
पुलिस मुख्यालय से आदेश के बाद जांच एसओजी को ट्रांसफर हो गई। सबसे पहले SOG के इंस्पेक्टर भूराराम खिलेरी ने ड्रग माफिया के पूरे नेटवर्क की पड़ताल की तो एक के बाद एक चौंकाने वाले स्कैम सामने आने लगे।
27 मुकदमों में एक ही शख्स का नाम
इंस्पेक्टर भूराराम खिलेरी ने राजस्थान के सभी थानों में दर्ज नशीली दवाइयों के मामलों की पड़ताल की। जनवरी 2021 से मई 2021 तक पांच महीनों में ऐसे 27 मामले दर्ज हुए थे।
हर कार्रवाई में मेडिकल स्टोर तक दवाइयां सप्लाई करने वाली फर्मों की जांच की तो रमैया एंटरप्राइजेज, मोन्टेक्स जैसी फर्मों के नाम सामने आए।
जिनके मालिकों की जांच की तो पता लगा कि ये सभी ड्राइवर, मजदूरों के नाम से बनाई गई फर्जी कंपनियां हैं। इनका सरगना है सुशील करनानी और इन फर्मों को देहरादून की हिमालय मेडिकेट नाम की कंपनी ही दवाई सप्लाई करती है।
नागालैंड की मजदूर निकली मालिक
एसओजी की जांच में HUMANITIES GENICS नागालैंड और बायो मेक्चर फार्मास्यूटिकल्स का नाम सामने आया। जो बड़े लेवल पर राजस्थान में मेडिकल नशा सप्लाई कर रही थी।
टीम दोनों फर्म के एड्रेस पर नागालैंड पहुंची तो पता लगा कि बायो मेक्चर फार्मास्युटिकल्स फर्म की मालिक लिथु पुत्री वारहेल लिथु नाम की कोई महिला है ही नहीं।
वहां एक अन्य महिला रहती है जो मजदूरी करती थी। ऐसे ही HUMANITIES GENICS फर्म भी फर्जी नाम और एड्रेस पर बनाई गई थी। दोनों फर्जी फर्म ड्रग माफिया सुशील करनानी ने मजदूरों के नाम पर बनाई थी।
सबसे चौंकाने वाली बात : फर्म बनी ही नहीं, उसके नाम पर 3 महीने पहले ही दवाइयां सप्लाई
कार्रवाई में पकड़ी गई सभी दवाइयों पर बैच नंबर- CDV121001 एक ही था। ये सभी दवाइयां हिमालय मेडिकेट ने बायो मेक्चर फार्मास्युटिकल्स फर्म को बनाकर दी थी।
इसमें चौंकाने वाली बात ये थी कि हिमालय मेडिकेट कंपनी ने जिस बायो मेक्चर फार्मास्युटिकल्स कंपनी को मार्च में ऑर्डर दिया, तब तक वह कंपनी बनी ही नहीं थी।
सुशील करनानी की बायो मेक्सचर फार्मास्युटिकल्स फर्म 1 मई 2021 को रजिस्टर्ड हुई थी। जबकि हिमालय मेडिकेट ने सुशील करनानी की इस फर्म के बनने से पहले 1 जनवरी 2021 को उसे दवाइयां बनाकर सप्लाई कर दी।
अब सवाल ये उठता है कि जो कंपनी अस्तित्व में ही नहीं है। उसके नाम पर तीन महीने पहले ही प्रतिबंधित दवाइयों की खेप बनाकर भेज दी। इस तरह की हेराफेरी की पड़ताल में सामने आया कि ड्रग माफिया ऐसे ही कंपनियों से सांठगांठ करके फर्जी फर्मों के नाम पर दवाइयां मंगवाकर राजस्थान और यूपी में सप्लाई करता था।
ईमानदार अफसरों ने जिस फैक्ट्री मालिक को आरोपी बनाया, उसे दिव्या ने ऐसे बचाया
एसओजी इंस्पेक्टर ने हिमालय मेडिकेट कंपनी के मालिक सुनील नंदवानी को फर्म बनने से पहले ही प्रतिबंधित दवाइयां सप्लाई करने का आरोपी बनाते हुए मुकदमा दर्ज किया।
इसमें ड्रग माफिया सुशील करनानी भी आरोपी था। जिसको लेकर बाद में गिरफ्तारी वारंट भी जारी हुआ। दिव्या मित्तल ने मामले की जांच नए सिरे से शुरू कर दी। यहां दिव्या ने जांच करने में अपना तरीका अपनाया।
रिपोर्ट में फेरबदल किए और फैक्ट्री मालिकों को गिरफ्तारी का खौफ दिखाया, ताकि डील हो सके। इसमें फैक्ट्री मालिक सुनील नंदवानी की केस फाइल हल्की कर दी, जिससे उसकी 15 दिन में ही कोर्ट से जमानत हो गई।
इसी तरह ड्रग सप्लाई करने वाली एक और फैक्ट्री के मालिक विकास अग्रवाल को गिरफ्तारी से बचने के लिए 2 करोड़ की मांग करने लगी। इसी केस में ही राजस्थान ACB ने दिव्या को ट्रैप किया है।
सजा दिलाने के लिए अलग, बचाने की रिपोर्ट अलग
अजमेर में 16 करोड़ की नशीली दवाइयों से जुड़े तीन मामलों में तीन अलग-अलग एफआईआर 183, 139 और 197 दर्ज हुई थी।
इन तीनों मामलों में पुलिस पूरे सबूत जुटा चुकी थी। एएसपी दिव्या मित्तल ने नशीली दवाइयों को लेकर इकट्ठे किए गए सभी सबूतों को अपनी रिपोर्ट में दो भागों में बांट दिया।
एफआईआर नंबर 183 और 139 में करीब 10 करोड़ की नशीली दवाइयां पकड़ी गई थीं। इन दोनों FIR में जिसे भी गिरफ्तार किया जाता था, उसकी आसानी से जमानत नहीं होती।
वहीं, एफआईआर नंबर 197 में सबूत कम रखकर केस हलका बनाया गया। जिसको भी बचाना होता था, उसकी गिरफ्तारी 197 वाली FIR में की जाती।
केस क्लब नहीं करके फैक्ट्री मालिक को बचाया
दिव्या ने हिमालय मेडिकेट फैक्ट्री मालिक सुनिल नंदवानी को बचाने के लिए उसे FIR-197 में गिरफ्तार किया। इस एफआईआर में सबसे कम कीमत की करीब 2 करोड़ की नशीली दवाई पकड़ी गई थी।
तीनों केस में सरगना सेम थे, लेकिन दिव्या ने तीनों FIR को क्लब करके कोर्ट में रिपोर्ट पेश नहीं की। जबकि तीनों केस में हिमालय मेडिकेट ने ही दवाइयां सप्लाई की थी। एक्सपर्ट की मानें तो इसी वजह से सुनील नंदवानी की महज 15 दिन में ही जमानत हो गई।
पूछताछ नोट में नाम आने की धमकी देकर डील की
SOG का एक्शन भी दिखाई दे और डील भी हो सके, इसी थीम पर दिव्या मित्तल ने काम किया। ड्रग माफिया सुशील करनानी को पकड़ने की बजाय फैक्ट्री मालिकों को डील के लिए धमकाना शुरू कर दिया।
एक्शन दिखाने के लिए केस से जुड़े छोटे-मोटे आरोपी जैसे- ड्राइवर, मेडिकल स्टोर संचालक की गिरफ्तारियां दिखाईं।
फैक्ट्री मालिकों की मिलीभगत जानते हुए भी मामले में ढील बरती। हरिद्वार के जिस फैक्ट्री मालिक विकास अग्रवाल को दिव्या ने 2 करोड़ की डील के लिए उदयपुर बुलाया था, उसे भी ऐसे ही धमकाया गया था।
जैन के मुताबिक सुनील नंदवानी को सिर्फ एक केस में गिरफ्तार कर हाईकोर्ट में पेश किया। उसका यह पहला जुर्म होने से उसकी महज 15 दिन में जमानत हो गई।
दिव्या मित्तल अगर कोर्ट में तीनों मामलों को क्लब करके उसे पेश करती तो सुनील नंदवानी आदतन अपराधी की श्रेणी में आता। इससे उसकी जमानत में काफी दिक्कत आती।
भास्कर टीम ने नशीली दवाइयों का कारोबार कैसे ऑपरेट होता है, कौन-से रूल्स को ब्रेक कर नेटवर्क बिछाया जाता है, इसकी भी पड़ताल की…
नशीली दवाइयों के इस सिंडिकेट में चार लोग काम करते हैं
1. नशे के एडिक्ट लोग जो केवल ग्राहक होते हैं।
2. मेडिकल स्टोर के संचालक, जहां से लोग नशीली दवाइयां खरीदते हैं।
3. ड्रग सप्लाई फर्म या मार्केटिंग फर्म- जो लाइसेंस लेकर दवाइयों के स्टॉकिस्ट बनते हैं।
4. नशीली दवाइयां बनाने वाली फैक्ट्री।
नशे के एडिक्ट युवा लेते हैं दवाइयां
स्मैक, अफीम और हेरोइन नशे के एडिक्ट युवकों के पास जब नशा खरीदने का पैसा नहीं होता हैं तो वे मेडिकल दुकानों से पेन किलर और नींद की दवाइयां खरीदकर इनका नशा करता है। ये दवाइयां मॉर्फीन से बनती हैं। इनमें ट्रामाडोल, एलप्राजोलम, नाईटोजियम, कोडीन फॉस्फेट साल्ट होता है। इन दवाइयों को ज्यादा मात्रा में लेने पर नशा होता है।
यह शेड्यूल एच ड्रग की प्रतिबंधित दवाइयां हैं, जिन्हें बिना डॉक्टर की पर्ची के मेडिकल स्टोर वाले बेच नहीं सकते। इसीलिए ये पूरा कारोबार अवैध तरीके से चलता है और ड्रग माफिया करोड़ों का मुनाफा कमाते हैं। अजमेर केस से समझते हैं इस पूरे नेटवर्क को।
फैक्ट्री मालिक : हिमालय मेडिकेट का सुनील नंदवानी
फर्म मालिक : सुशील करनानी जिसने ड्राइवर, मजदूरों के नाम से सात फर्जी फर्में बनाई
नेटवर्क के सहयोगी : सुशील के साथी कुलदीप मौर्य, धीरज खंडेलवाल
मेडिकल और हॉल सेलर: श्याम सुंदर मुंदड़ा
नियम -1 : हर दवाई बेचने का रिकॉर्ड रखना पड़ता है।
नियम-2 : हर दवाई की बिक्री का देना पड़ता है सबूत।
नियम ब्रेक कर ऐसे नेटवर्क बनाया
- सुशील करनानी ने पूरे राजस्थान में अपने गिरोह के एजेंट बनाए।
- जहां सबसे ज्यादा नशीली दवाइयां बिकती हैं, ऐसे मेडिकल स्टोर संचालकों से संपर्क किया।
- एजेंट बनाकर बिना रिकॉर्ड रखे दवाइयां सप्लाई करने का भरोसा दिलाया।
- सुशील ने अपने ड्राइवर, दुकान के नौकर और मजदूरी करने वालों के नाम पर ड्रग लाइसेंस लेकर 6 फर्म बनाई।
- इन सभी फर्म के एड्रेस फर्जी रखे गए। ताकि पूरे रैकेट का खुलासा होने पर पुलिस उस तक नहीं पहुंच पाए।
- इन मेडिकल दुकान संचालकों को सुशील अपनी फर्जी फर्मों से दवाइयां सप्लाई करने लगा।
- सुशील ने जयपुर, जोधपुर जैसे शहरों में खुद की मेडिकल शॉप भी खोली।
- जयपुर, जोधपुर, अजमेर, कोटा, उदयपुर, श्रीगंगानगर जैसे बड़े शहरों में फर्म से दवाइयां सप्लाई करने लगा।
1 साल का रिश्ता, लिव-इन, लव मैरिज और तलाक
दिव्या की पर्सनल लाइफ भी उतार-चढ़ाव भरी रही है। जून 2014 में दिव्या की मुलाकात सोशल मीडिया पर हिसार के CA प्रतीक से हुई। तीन महीने बाद दोनों उदयपुर में मिले। दिव्या के घरवाले शादी के लिए राजी थे। प्रतीक ने दिव्या से कहा कि गुड़गांव में उसकी मां की रजामंदी के बाद ही शादी करेंगे।
दिव्या और उसके पिता विनोद मित्तल दिल्ली गए थे। वे कई दिनों तक वहीं रुके, लेकिन प्रतीक की मां से मुलाकात नहीं हुई। इसके बाद प्रतीक और दिव्या ने गुपचुप मंदिर में शादी कर ली थी। तय किया कि कुछ दिनों के बाद प्रोग्राम में शादी कर लेंगे। इसके बाद दोनों पति-पत्नी के रूप में किराए के मकान में साथ रहने लगे। दोनों भरतपुर, उदयपुर, मथुरा में भी साथ रहे थे।
दिव्या के पिता विनोद मित्तल ने 2015 में हिसार पुलिस को दहेज प्रताड़ना की शिकायत दी थी। विवाद होने के बाद दोनों के बीच में तलाक हो चुका है।
हर साल खरीदती है प्रॉपर्टी
जांच में सामने आया कि दिव्या हर साल प्रॉपर्टी में निवेश करती रही। परिवार के लोगों के नाम से भी अलग-अलग जगह पर प्रॉपर्टी खरीद रखी है। दिव्या के नजदीकियों ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि उसने रिश्वत की रकम से हर साल 10 से 12 बीघा जमीन खरीदने का टारगेट बना रहा था।
दिव्या अजमेर में एआरजी सोसायटी स्थित फ्लैट में अकेली रहती है। यह फ्लैट दिव्या के भाई विशाल के नाम से है। एसीबी ने अजमेर, जयपुर में फ्लैट, उदयपुर के चिकलवास में रिसॉर्ट और चिड़ावा में पैतृक गांव स्थित मकान पर भी सर्च किया था। जांच में पता लगा कि भाई के नाम से चिड़ावा में भी कुछ जमीनें खरीदी थीं। भाई विशाल को माइनिंग के काम में दिव्या ने ही लगाया है।
लग्जरी लाइफ की शौकीन
दिव्या से जुड़े लोगों ने बताया कि उसे हमेशा से लग्जरी लाइफ का शौक है। उदयपुर में एक रिसॉर्ट नेचर हिल पैलेस के बारे में तो ज्यादातर लोगों को पता है, लेकिन इसके अलावा भी कई प्रॉपर्टी हैं, जो दिव्या ने अपने रिश्तेदारों के नाम से खरीदी है। दिव्या के नजदीकियों का कहना है कि वो हर साल प्रॉपर्टी में इंवेस्ट करती है।
प्रभाव इतना कि तीन अधिकारियों के कराए तबादले
दिव्या मित्तल ने 11 करोड़ रुपए की नशीली दवाओं के मामले की जांच में तीन अधिकारियों के तबादले करवा दिए थे। साथ ही, तीन अन्य फैक्ट्री मालिकों को भी बुलाकर पूछताछ की थी। हालांकि पूछताछ के बाद उन्हें रिपोर्ट में आरोपी नहीं बनाया गया। एसीबी अब तीनों फैक्ट्री मालिकों से भी पूछताछ करेगी।
शक है कि इनसे भी रुपए लिए गए थे। नशीली दवाओं की ये खेप मई 2021 में पकड़ी गई थी। एफआईआर दर्ज होने के बाद जांच पहले क्लॉक टावर थाना प्रभारी दिनेश कुमावत को दी गई। ठीक दो दिन के अंदर फाइल लेकर डीएसपी मुकेश सोनी को दी गई।
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