भास्कर एक्सक्लूसिवमां ने 6 साल की बेटी को बेचा:कहा- अब अंकल के साथ रहना होगा; बेटियों से ऐसी दरिंदगी कि अपनी पहचान तक भूलीं

जयपुर7 महीने पहलेलेखक: विक्रम सिंह सोलंकी/रणवीर चौधरी
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‘बेटियों का नर्क’ सीरीज के पहले पार्ट में हमने खुलासा किया

किस तरह गोद लेने के नाम पर बेटियों को नीलाम कर दिया जाता है।

दूसरे पार्ट में हमने बताया…

किस तरह बेटियों को गुलाम बनाया जाता है

अगर आपने पार्ट-1 और पार्ट-2 नहीं पढ़ा है तो खबर के अंत में दोनों पार्ट के लिंक हैं, आप क्लिक करके पढ़ सकते हैं।

अब पढ़िए- सीरीज का तीसरा और अंतिम पार्ट…

भास्कर की स्पेशल इन्वेस्टिगेशन टीम की पड़ताल में सामने आया कि खेलने-कूदने की उम्र में गुलाम बना दी गई बेटियों के शरीर ही नहीं, दिमाग का भी रेप किया जाता है। आजाद होने के बाद भी ये बच्चियां दिमागी रूप से गुलाम ही रहती हैं।

छुड़ाई गईं मासूम बच्चियों की काउंसलिंग करने वाले एक्सपट्‌र्स से जब हमने बात की तो उन्होंने बताया कि इस तरह ब्रेनवॉश किया जाता है कि असली मां-बाप और नकली मम्मी-पापा को सामने खड़ा कर दिया जाए तो बच्ची नकली मम्मी-पापा को ही पेरेंट्स बताएंगी।

पढ़िए, काउंसलर्स और 14 साल की बच्ची से बातचीत में सामने आई डरा और रूला देने वाली कहानियां…

‘सौतेली मां ने 6 साल की उम्र में बेच दिया’

‘मेरा नाम पूजा(बदला हुआ नाम) है। याद भी नहीं कि किस उम्र में मेरी सौतेली मां ने मुझे बेचा था। बस इतना याद है कि बचपन में मां ने कहा वो एक दिन के लिए बाहर जा रही है और मुझे गुलाब अंकल के साथ रहना होगा। इसके बाद गुलाब अंकल मुझे अपने साथ ले गए।’

‘वो मुझे पंडेर गांव में एक मकान में ले गए, जहां 5 से 12 साल की 8 लड़कियां और थीं। सभी लड़कियां भीलवाड़ा और टोंक जिले की थीं। कई लड़कियों को तो अपने माता-पिता के नाम के अलावा कुछ भी याद नहीं था। हम छोटी उम्र की लड़कियों को अलग मकान में और बड़ी लड़कियों को अलग मकान में रखा। वहां शबो नाम की एक महिला थी, जो हमारा ध्यान रखती थी।’

‘हमें सिखाते हम तुम्हारे मम्मी-पापा’

‘गुलाब अंकल एक दिन आए और मुझे बड़ी लड़कियों के मकान में ले जाने लगे। शबो ने कहा कि यह अभी बहुत छोटी है, इसे मत ले जाओं। इसके बाद मेरी जगह 16 साल की रिया(बदला हुआ नाम) को वो अपने साथ ले गए।’

‘हमें सिखाया जाता था वे ही हमारे मम्मी और पापा हैं और साथ रहने वाली लड़कियां बहनें। ये भी कहते कि कभी पुलिस पकड़कर ले जाए तो हम उन्हें ही अपने मम्मी-पापा बताएं। हम मकान के अंदर ही खेलते थीं, हमें मकान के बाहर जाने की इजाजत नहीं थी।’

‘हाथ टूटने पर हिम्मत नहीं हारी’

एक दिन वहां रहने वाली गीता (बदला हुआ नाम) और वहां रहने वाली 3 लड़कियों ने भागने की कोशिश की, लेकिन पकड़ी गईं। गुलाब अंकल ने उन्हें उल्टा लटका कर बेल्ट और डंडे इतना मारा कि गीता का हाथ टूट गया। इसके बाद दो से तीन दिन तक भूखा रखा गया।

इतना सब होने के बाद भी गीता की हिम्मत नहीं टूटी। उसने एक दिन एक ग्राहक के फोन से पुलिस और बाल कल्याण समिति को कॉल करके रैकेट के बारे में बता दिया। इसके बाद पुलिस ने पंडेर गांव में अलग-अलग जगह दबिश देकर करीब 20 लड़कियों को वहां से छुडवाया। उसी के कारण मैं और मेरे साथ वाली सभी लड़कियां वहां से आजाद हो पाईं।

लड़की जिसे देखकर सब चौंक गए

भीलवाड़ा के बाल कल्याण समिति की पूर्व चेयरपर्सन और स्थाई लोक अदालत की ज्यूडिशियल मेंबर डॉ. सुमन त्रिवेदी ने बताया कि लड़कियों की काउंसलिंग के दौरान सामने आया कि जल्दी जवान करने के लिए बच्चियों को हर दिन कैप्सूल दिए जाते थे। ऑक्सीटोक्सिन के इंजेक्शन भी देते थे।

आजाद होकर भी घर नहीं लौट पातीं

पुलिस के छुड़वाने के बाद भी ज्यादातर लड़कियां अपने घर नहीं जा पातीं। इनमें सबसे ज्यादा दिक्कत उन लड़कियों को होती है, जिन्हें बचपन में ही या तो घरवाले बेच देते हैं या जिन्हें किडनैप करके लाया जाता है।

बचपन में ही इन लड़कियों का ब्रेनवॉश होने के कारण उन्हें अपने माता-पिता और गांव के नाम याद नहीं रहते है। पूछने पर वे शोषण करने वालों को ही अपने माता-पिता बताती हैं। ऐसे में इन लड़कियों को काउंसलिंग के बाद बाल सुधार गृह या नारी निकेतन भिजवाना पड़ता है।

काउंसलिंग: अपनी बेटी की तरह बात करने पर ही चुप्पी टूटती है

डॉ. त्रिवेदी ने बताया कि जब लड़कियां हमारे यहां आती हैं तो कई दिनों तक वे कुछ बोलती ही नहीं हैं। शुरुआत के दिनों में वे हम पर विश्वास ही नहीं करती हैं। उन्हें लगता है कि बात करने पर पुलिस उन्हें जेल में डाल देगी या वापस खरीदार के पास भेज देगी। ऐसे में हम उन्हें अपनी बेटी की तरह प्यार से बात करते हैं। स्टाफ में अलग-अलग काउंसलर से बात करने के बाद वो किसी एक के साथ कम्फर्टेबल होने पर बात करने लगती हैं।

बार-बार बदलते बयान

नाबालिग लड़कियों की काउंसलिंग में सबसे ज्यादा दिक्कत आती है। वे हर बार अपने बयान बदलती हैं। उन्हें ज्यादा याद नहीं रहने के कारण वे अधिकतर पुरानी बातें भूल जाती हैं, उनके साथ क्या-क्या हुआ। उनके हर बयान को नोट करके, बार-बार बात करनी पड़ती है। इन्हें हर बात टुकड़ों में याद होती है, इन सभी यादों को जोड़ना पड़ता है।

कई बार महीनों तक काउंसलिंग होती है

लड़कियों से हर दिन में थोड़ी-थोड़ी बात करनी पड़ती है। शुरुआत में वे कम बोलती है। जैसे-जैसे उनका विश्ववास बढ़ता है, वे ज्यादा बात करने लगती हैं। इस दौरान हम उनके साथ हुई घटनाओं के बारे में पूछते हैं।

कई बार लड़कियों को सिर्फ इतना याद होता है कि मेले में खो गई थीं। गांव और एड्रेस याद नहीं रहता है। ऐसे में कौन सा मेला था, वहां माहौल कैसा था, रास्ता कैसा था, मंदिर किसका था, इन छोटी-छोटी कड़ियों को जोड़कर पता लगाने का प्रयास करते हैं। इन सब में कई बार महीनों का समय लग जाता है।

पुलिस एक्शन: नाबालिग लड़कियों को रेस्क्यू करने के बाद पुलिस को 24 घंटों के अंतराल में लड़कियों को बाल कल्याण समिति को सुपुर्द करना होता है। इसके बाद बाल कल्याण समिति बच्चियों की काउंसलिंग के बाद नाबालिग को चिल्ड्रन होम और बालिग लड़कियों को नारी निकेतन भिजवाते हैं।

बेचने वाले पेरेंट्स को बच्चे नहीं सौंपते हैं: बाल कल्याण समिति नाबालिग लड़कियों की काउंसलिंग करके उनके पेरेंट्स का पता लगाती है। इसके बाद नाबालिग लड़की का बेस्ट इंटरेस्ट जहां होता है, उसे वहीं भेजा जाता है। कई नाबालिग लड़कियों के माता-पिता के बारे में पता करने के बाद जानकारी मिलती है कि उनके पेरेंट्स ने ही उन्हें बेचा था। ऐसे में बाल कल्याण समिति उन पेरेंट्स को लड़की को नहीं सौंपते हैं। ऐसी लड़कियों को चिल्ड्रन होम भेज दिया जाता है, जहां उन्हें पढ़ाया जाता है। इसके बाद बालिग होने पर नारी निकेतन भिजवा दिया जाता है।

स्किल डेवलपमेंट कोर्स: बाल अधिकारिता विभाग कई लड़कियों को सरकार की ओर से स्किल डेवलपमेंट के कोर्स भी करवाता है। ताकि लड़कियां अपने पैरों पर खड़ी हो सकें। इसके लिए विभाग की ओर से लोन भी दिया जाता है।

दोस्त के साथ भागती हैं: अधिकतर लड़कियां अपने ग्राहकों में ही किसी लड़के से दोस्ती कर लेती हैं। फिर उस लड़के के साथ वहां से मौका मिलने पर भाग जाती हैं, लेकिन कुछ समय बाद ये लड़के इन्हें धोखा देकर छोड़ देते हैं। ऐसे में इन लड़कियों को वापस उसी जिंदगी में लौटना पड़ता है।

नौकरी नहीं मिलती: बालिग लड़की को नारी निकेतन में रखा जाता है, हालांकि बालिग होने के कारण लड़की चाहे तो वहां से निकल सकती है। कई लड़कियों के पास पहचान पत्र नहीं होते हैं, होते भी हैं तो वो फर्जी होते हैं। ऐसे में इन्हें कहीं काम नहीं मिलता है। ऐसे में कई लड़कियां नारी निकेतन से वापस उसी जिंदगी में लौट जाती है।

500 से ज्यादा दलाल सक्रिय

लड़कियों की खरीद फरोख्त का पूरा रैकेट दलालों के दम पर चलता है। अकेले भीलवाड़ा जिले में 500 से ज्यादा दलाल सक्रिय हैं। लड़कियों को बिकवाने में इनकी अहम भूमिका होती हैं। यही सौदे के समय जमानतदार बनते हैं। शुरुआत में सिर्फ पंच ही दलाली का काम करते थे, लेकिन लाखों रुपए की कमाई को देखकर कई बेरोजगार युवक इस काम में लग गए। गरीब परिवारों के सम्पर्क में रहकर यह उनके पहले हमदर्द बनते हैं। फिर कर्जा दिलाकर उनकी बहन-बेटियां बिकवा देते हैं।

घरों में मार्बल का फर्श, लग्जरी गाड़ियां

कभी कच्चे मकानों में रहने वाले दलालों ने आलीशान कोठियां बनवा ली हैं। सरपंच प्रतिनिधि मुकेश जाट ने बताया कि इन गांवों में रातोंरात अमीर बनने के लिए अब हर कोई लड़कियों की खरीद फरोख्त के काम में लग गया है।

किसी भी लड़की के सौदे में सबसे ज्यादा कमाई दलालों की होती है। यह लोग सौदे की आधी रकम कमीशन के तौर पर हड़प लेते है। पंडेर, जहाजपुर गांव में सबसे ज्यादा दलालों ने आलीशान मकान बना रखे हैं। घरों में मार्बल का फर्श और घर के बाहर लग्जरी कारें खड़ी मिल जाएंगी।

कुछ साल के लिए: इस डील में लड़की को 5 से 10 साल के लिए बेचा जाता है। स्टाम्प पेपर पर खरीदार लड़की को गोद लेने के बहाने डील करते हैं। इसमें लड़की को साल में एक बार राखी के त्योहार पर घर आने की अनुमति मिलती है। खरीदार लड़कियों से सालों तक काम करवाते हैं, इस दौरान ग्राहक जो टिप देता है वो पैसे लड़कियां अपने घर भिजवाती हैं। इस डील में दलालों को कमीशन कम मिलता है। अगर किसी लड़की को सौदा 8 लाख रुपए में होता है तो दलाल को 2 लाख रुपए मिलते हैं।

हमेशा के लिए: इस डील में लड़की को जिंदगी भर के लिए बेचा जाता है। लड़की वापस कभी अपने घर नहीं आ सकती है। वो जिंदगी भर अपने परिवार से सम्पर्क नहीं कर सकती है। इस डील को करवाने के लिए खरीदार दलाल को ज्यादा कमीशन देते हैं। अगर किसी लड़की को 8 लाख रुपए में बेचते हैं तो दलाल को 3 से 4 लाख रुपए कमीशन मिलता है। दलाल बच्चियों के मां-बाप को अतिरिक्त पैसा दिलाने का झांसा देकर यह डील करवाते हैं।

यहां पढ़िए- 'बेटियां का नर्क' सीरीज की पहली और दूसरी खबर

पार्ट-1: लड़कियों की खुलेआम नीलामी; जितनी खूबसूरत, उतनी ऊंची बोली:12 साल की बच्ची को 3 बार बेच दिया, 4 अबॉर्शन

भास्कर टीम जयपुर से करीब 340 किलोमीटर का सफर करके भीलवाड़ा के पंडेर गांव पहुंची। यहां कई बस्तियों में गरीब परिवारों की लड़कियों को दलाल स्टाम्प पेपर पर खरीदकर बेच देते हैं। हम बस्तियों में जाकर लोगों से बात करने की कोशिश की, लेकिन दलालों के डर से कोई तैयार नहीं हुआ। इसके बाद हम गांव में पानी की समस्या को हल करने के लिए सर्वे वाले बनकर गए। लोगों ने हमें अपनी समस्याएं बताईं। कुछ लोगों को विश्वास में लेकर हमने लड़कियों की खरीद फरोख्त के बारे में पूछताछ की। इलाके के लोगों ने जो कुछ बताया, वो हैरान करने वाला था। -पूरी खबर पढ़ने के लिए क्लिक करें...

पार्ट-2: बच्चियों को जल्दी जवान करने के लिए इंजेक्शन:स्टाइलिश कपड़े, इंग्लिश बोलने की ट्रेनिंग; कई दिन भूखा भी रखते हैं​​​​​​

सीरीज के दूसरे पार्ट में हम आपको बता रहे हैं कि नीलामी में खरीदने के बाद बेटियों को किस तरह गुलाम बनाया जाता है। किस तरह हर रात डरावनी बन जाती है। ये सच सामने लाने के लिए भास्कर की स्पेशल इन्वेस्टिगेशन टीम लड़कियों को बेचने वाले दलालों और जहाजपुर रेडलाइट एरिया तक पहुंची।

भास्कर इन्वेस्टिगेशन में हैरान कर देने वाले खुलासे…

  • 4 जिलों से लड़कियों को स्टाम्प पेपर पर खरीद कर देशभर में भेजा जाता है।
  • उम्र के हिसाब से लड़कियों की कीमत तय होती है।
  • खरीदने के बाद तब तक भूखा रखा जाता है, जब तक कि लड़की दलाल का हर हुकुम मानने के लिए राजी न हो जाए।
  • ग्राहकों को लुभाने के लिए स्पेशल ट्रेनिंग दी जाती है।
  • ऑक्सीटोसिन के इंजेक्शन दिए जाते हैं, जिनसे शरीर जल्दी विकसित हो जाता है।
  • पुलिस की रेड में इन लड़कियों को पकड़ लिया जाता है तो दलाल चालाकी से उनके परिजन बनकर वापस ले जाते हैं।
  • कई इलाकों में रेड लाइट एरिया बने हुए हैं, जहां शाम ढलते ही ये घिनौना कारोबार शुरू हो जाता है। -पूरी खबर पढ़ने के लिए क्लिक करें...