चंदन की लकड़ी से बनी 1 करोड़ की मूर्ति। सितार में उकेर दी विष्णु दरबार की मूरत। पॉकेट वॉच में ताजमहल के अंदर मकबरा और मकबरे के अंदर मुमताज भी दिखाई। ऐसे ही कुछ प्रोडक्ट इस समय नजर आ रहे हैं,जयपुर के जवाहर कला केंद्र (जेकेके) में। इन सबको तैयार किया है जयपुर के रहने वाले कमलेश जांगिड़ ने।
दरअसल, जेकेके के लोकरंग उत्सव के तहत शिल्पग्राम में राष्ट्रीय हस्तशिल्प मेला लगा है। यहां राजस्थान समेत अन्य राज्यों के भी प्रोडक्ट्स डिसप्ले किए गए हैं। इसमें 35 साल के कमलेश जांगिड़ अपनी नायब चंदन की लकड़ी से बनी कला लेकर आए हैं। जो मिनिएचर कार्विंग के लिए फेमस हैं। इस काम को करने वाली इनकी चौथी पीढ़ी है। अभी तक इनका परिवार 11 प्रेसिडेंट अवॉर्ड जीत चुका है। कमलेश घर के सबसे छोटे सदस्य हैं। जो ये अवॉर्ड हासिल कर पाए हैं।
कमलेश अपनी नायब कला से एक करोड़ की मूर्ति भी बना चुके हैं। साथ ही एक पॉकेट वॉच में उन्होंने ताजमहल के अंदर मकबरा और मकबरे के अंदर मुमताज भी दिखाई।
कमलेश ने बताया- 6 साल की उम्र में पहली बार एक नारियल बनाया था। जिसके अंदर मैंने पंचवटी का सीन बनाया था। इसमें सीता, भगवान राम, लक्ष्मण, पेड़, कुटिया, हनुमान सब कुछ डिटेल में बनाया था। इसके लिए मुझे 9 साल की उम्र में डिस्ट्रिक्ट अवॉर्ड मिला था। उसके बाद तो मुझे इसका ऐसा शौक लगा कि मैं स्कूल से आते ही कार्विंग करने लग जाता था। घंटों कब बीत जाते थे, पता ही नहीं चलता था।
कमलेश ने बताया- 10 साल की उम्र में मुझे स्टेट अवॉर्ड से सम्मानित किया गया। 11 साल की उम्र में उदयपुर में शिल्प सम्मान मिला। मुझे ये अवॉर्ड कम उम्र में स्पेशल अवॉर्ड की तरह दिया गया। वहां मौजूद सभी आर्टिस्ट में मैं सबसे छोटा था। 2010 में नेशनल और स्टेट अवॉर्ड के लिए सिलेक्शन हुआ। इसका अवॉर्ड 2014 में दिया गया। उसी साल उदयपुर का महाराणा सजन सिंह अवॉर्ड से भी नवाजा गया। ये भी एक नेशनल लेवल अवॉर्ड ही है। मैंने बहुत सी एग्जीबिशन लगाई हैं। इसमें दूसरे देशों की एग्जीबिशन भी शामिल है।
कमलेश बताते हैं रोज 18 से 20 घंटे कार्विंग करता हूं। रोज कुछ नया सीखता हूं। आइडिया सोचता हूं। उसे हकीकत में उतारने की कोशिश करता हूं। कई बार तो अर्जेंट ऑर्डर में तो 24 घंटे भी काम करना पड़ता है।
कमलेश बताते हैं कि मेरे परिवार में कार्विंग शुरू से हो रही है, लेकिन वो सभी सिर्फ सिंगल भगवान की मूरत और तानसेन की कहानी पर ही आर्ट बनाते आ रहे हैं। आज भी उसी पर बना रहे हैं। मैंने इसको थोड़ा प्रैक्टिकली होकर जब सोचा तो मुझे दिखा की तानसेन की कहानी सिर्फ संगीत प्रेमी ही ले पाएगा। इसलिए मैंने रामायण की कहानी, जैसी कई कहानियां बनानी शुरू की। इसी सोच ने मुझे परिवार में सबसे अलग नाम दिलवाया। बाजार में कई लोग परफ्यूम छिड़क कर सस्ते दाम में भी चंदन की लकड़ी बेचते हैं। मेरे सभी प्रोडक्ट प्योर चंदन की लकड़ी से बने हैं।
कमलेश कहते हैं कि मैं नहीं चाहता की मेरे परिवार के अलावा ये हुनर कोई और सीखे। क्योंकि लोग पैसा देखकर आ तो जाते हैं, लेकिन सीखने के लिए जो धीरज, समय, तप करना पड़ता है। उसे वो नहीं करना चाहते। लालच में आधा अधूरा सीख कर मेरी कला का अपमान नहीं कराना चाहता। इसीलिए मैं मेरी बेटी को ये आर्ट सिखा रहा हूं। मेरी बेटी भी 3 साल की उम्र से ये काम सीख रही है। अभी वो 6 साल की है। मैं चाहता हूं की वो भी ये हुनर सीखें और मेरा नाम आगे बढ़ाए।
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