चिंताजनक; दहेज के लिए हर माह 40 बेटियों की हत्या की जा रही है
राजस्थान के टोंक जिले में मालपुरा कस्बे के मुख्य बाजार का नजारा यहां आने वाले किसी भी बाहरी व्यक्ति को चौंका सकता है। इसकी वजह है यहां मौजूद दुकानों के बाहर लगे बोर्ड। ग्राहकों का ध्यान आकर्षित करने के लिए इन बोर्ड पर जो कुछ लिखा है, उसका लब्बोलुआब है कि- ‘यहां डायजा का सामान मिलता है।’
राजस्थान के कुछ इलाकों में डायजा का पारंपरिक अर्थ शादी में दिए जाने वाले पांच आवश्यक सामान होता था, लेकिन वर्तमान सामाजिक चेतना में इसका एक ही अर्थ है, ‘दहेज’। राजस्थान में दहेज लेन-देन का काला सच किसी से नहीं छिपा है। लेकिन इस कुप्रथा का खुला प्रमोशन शायद ही कहीं और देखने को मिले। थाने से कुछ दूर इन डायजा हाउस में बर्तनों, बेडशीट और कंबल जैसी बुनियादी चीजों से लेकर सोफा, डबल बेड और फ्रिज, वॉशिंग मशीन एवं एलीईडी टीवी जैसे महंगे एवं इलेक्ट्रॉनिक आइटम तक मिलते हैं।
इसीलिए... राजस्थान बन रहा है दहेज घर दहेज हत्या के मामले में राजस्थान पांचवें स्थान पर है। पहले स्थान पर उप्र, दूसरे पर बिहार, तीसरे पर मप्र और चौथे पर पश्चिम बंगाल है। 2021 में दहेज हत्या के 452 मामले दर्ज हुए। पति या उसके रिश्तेदारों द्वारा क्रूरता के मामले में राजस्थान तीसरे पायदान पर है। 2021 में 16,949 केस दर्ज हुए। अक्टूबर 2022 तक दहेज हत्या के 381 मामले आ चुके हैं। यानी दहेज की वजह से हर महीने लगभग 40 बेटियां मौत के घाट उतारी जा रही हैं। इनसे सीखें- मेघालय, मिजोरम, नागालैंड, अरुणाचल प्रदेश, सिक्किम और गोवा में 2021 में दहेज हत्या के जीरो मामले दर्ज किए गए।
फिर भी डायजा हाउस यानी दहेज की दुकानें, समाज और प्रशासन की स्वीकृति से बेखौफ चल रही हैं
दुकानों पर दहेज के विज्ञापन लगाना दहेज निषेध अिधनियम 1961 का उल्लंघन है। प्रावधान लागू कराने की जिम्मेदारी SDM की है। यह प्रशासनिक नाकामी है। - कविता श्रीवास्तव, राष्ट्रीय अध्यक्ष, पीयूसीएल
मामला हमारे ध्यान में नहीं है। आप के जरिए जानकारी मिली है। पुलिस की नजर इन दुकानों पर पड़ी होगी, पर इस पर गौर नहीं हुआ। हम इसे गंभीरता से लेंगे। -राजकुमार वर्मा, एसडीएम, मालपुरा, जिला टोंक
डायजा हाउस वाले कहते हैं...
दशकों से हमारी दुकानें ऐसे ही चल रही हैं। यहां डायजा प्रचलित है। लाड़ली को उपहार देना गलत नहीं, उपहार के लिए तंग करना गलत है।
दहेज कानूनन अपराध है, लेकिन सामाजिक तौर पर ऐसा नहीं है। वर-वधू दोनों पक्ष इसको बढ़ाते हैं। मितव्ययी शादी ही दहेज से मुक्ति दिला सकती है। -राजीव गुप्ता, वरिष्ठ समाजशास्त्री
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