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गैर कानूनी गतिविधियां रोकथाम कानून (यूएपीए) का उपयोग लोकतंत्र को तबाह करने के लिए किया जा रहा है। यह कानून आतंकवाद के नाम पर लड़ने के लिए बनाए गए पोटा और टाडा जैसे कानूनों से भी खतरनाक है। पीपुल्स यूनियन सिविल लिबर्टीज (पीयूसीएल) व देश के अन्य 100 सामाजिक व मानवाधिकार संगठनों की ओर से यूएपीए खत्म करने के लिए आयोजित तीन दिवसीय ऑन लाइन सम्मेलन के पहले दिन ये विचार व्यक्त किए गए। इस सम्मेलन में देश भर के नामचीन वकील, कार्यकर्ता, बुद्धिजीवी, पत्रकार, महिला अधिकार कार्यकर्ता और छात्र-नौजवान भागीदारी कर रहे हैं। सत्र की शुरुआत करते हुए पीयूसीएल की राष्ट्रीय सचिव कविता श्रीवास्तव ने कहा कि देश के 13 राज्यों में यूएपीए के इस्तेमाल से यह साबित होता है कि इस कानून का इस्तेमाल उन लोगों की आवाज बंद करने के लिए किया जा रहा है जो केंद्र व राज्य सरकारों की नीतियों से असहमति रखते हैं।
पीयूसीएल के महासचिव व देश के जाने-माने अधिवक्ता वी. सुरेश ने कहा कि आज यूएपीए के माध्यम से लोकतंत्र की हत्या की जा रही है। उन्होंने बताया कि इस कानून में पुलिस चाहे तो एक साल तक भी चार्जशीट फाइल नहीं कर सकती है। ज़मानत की शर्तें भी बेहद कड़ी हैं।
इस कानून में आरोपी पर ही अपने को बेगुनाह साबित करने का दारोमदार है। पीयूसीएल के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष मिहिर देसाई ने एनआईए एक्ट के बारे में चर्चा करते हुए कहा कि इस कानून के जरिए राज्य की शक्ति छीन ली गई है। तेलंगाना में यूएपीए के इस्तेमाल के बारे में ह्यूमन राइट फोरम के माधव राव ने विस्तार से बताया।
उन्होंने कहा कि इसके तहत गिरफ्तार ज्यादातर लोग भद्रादीकोट्टम जिले के आदिवासी हैं। सिविल लिबर्टीज कमेटी ऑफ आंध्रप्रदेश के. क्रांति चैतन्य ने बताया कि जो व्यक्ति छह साल से जेल में है, उसका नाम भी आरोपितों में आ गया है। सम्मेलन में रघुनाथ वेरोज़, स्वेच्छा प्रभाकर, अपूर्वानंद, अधिवक्ता शाहरुख आलम, नदीम खान, गुनीत कौर सहित कई वक्ताओं ने विचार व्यक्त किए।
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