कुशल सिंह 2009 में राजस्थान की पहली महिला मुख्य सचिव बनीं। 60 साल बाद कोई महिला ब्यूरोक्रेसी के शीर्ष पर पहुंचीं थीं। 1974 बैच की आईएएस कुशल सिंह दबंग अफसर मानी जाती थीं। कुशल सिंह का जन्म हरियाणा में रोहतक जिले के टांडाहेड़ी गांव में 1949 में हुआ। वे पांच बहनों में से एक हैं। उनके पिता रामसिंह दलाल पंजाब में आईपीएस थे। कुशल सिंह 27 फरवरी 2009 से 31 अक्टूबर 2009 तक आठ महीने राजस्थान की मुख्य सचिव रहीं। रिटायरमेंट के बाद आजकल दिल्ली में रह रही हैं।
कुशल सिंह ने भास्कर से बातचीत में कहा- मैंने खुद को एक इंसान के रूप में देखा। महिला-पुरुष के रूप में नहीं। खुद को किसी से कम नहीं समझा। इसीलिए कभी महिला होना चुनौती नहीं लगा। अपने शुरुआती दिनों के बारे में बताते हुए उन्होंने कहा, मैं बहुत भाग्यशाली रही कि मेरे पिता अपने जमाने से भी आगे की सोच रखने वाले प्रगतिशील व्यक्ति थे। उन्होंने हम पांचों बहनों को अच्छी शिक्षा दिलवाई। 1950 में लड़कियों को कौन पढ़ाता था। हम हमारे गांव की पहली शिक्षित बहनें थीं। अपने बच्चों को बेहतर शिक्षा दिलवा देना सबसे बड़ी दौलत है। पेश है कुशल सिंह से बातचीत के प्रमुख अंश...
आप राजस्थान की पहली महिला मुख्य सचिव रहीं, महिला होने के कारण क्या चुनौतियां आईं?
कुशल सिंह: पहले मैं सोचती थी कि महिला होने के कारण मुझे दिक्कत होगी, लेकिन मैं अपने अनुभव से कह सकती हूं कि चुनौती हर इंसान के जीवन में आती है। पूर्वाग्रह हर इंसान के साथ होते हैं। सिर्फ महिला होने के नाते मुझे कोई खास चैलेंज या पूर्वाग्रह का सामना नहीं करना पड़ा। जितनी चुनौतियां और पूर्वाग्रह वंचित तबकों को झेलनी पड़ती है उसके आगे तो कुछ भी नहीं हैं। महिला को तो फिर भी मां और देवी का दर्जा दिया जाता है। वंचित तबकों को तो वह दर्जा भी नहीं होता। मैंने शुरू से ही अपने आपको इंसान के तौर पर देखा है। महिला या पुरुष के तौर पर नहीं। मैंने कभी अपने आपको किसी से कम नहीं माना। दूसरे भेदभाव करते हैं तो यह उनका नुकसान है मेरा नहीं।
परिवार के अंदर या बाहर कभी भेदभाव और चुनौती महसूस की?
कुशल सिंह: मेरा परिवार परंपरागत हरियाणवी परिवार था। मेरे पिता बहुत प्रगतिशील सोच वाले और सहयोगी थे। मेरी मां को फिर भी यह सुनने को मिलता था कि हाय, बेचारी के पांच बेटियां हैं। मुझे लोगों की इस तरह की सोच पर बहुत गुस्सा आता था। इसी सोच के खिलाफ मैंने विद्रोह किया। लोगों की इसी सोच की वजह से मेरे इरादे और मजबूत हुए। मुझे इस बात से दिक्कत थी कि ज्यादा बेटियां होने पर कोई मां कैसे बेचारी हो सकती है। बहुत से लोग कहते थे कि बेटियों को पढ़ाने पर इतना पैसा क्यों खर्च कर रहे हो। यह पैसा इनकी शादी में काम आना चाहिए।
महिलाओं को लेकर समाज का माइंडसेट क्यों नहीं बदल रहा?
कुशल सिंह: मेरा मानना है कि बहुत बार जब परंपराएं रुढ़िया बन जाती हैं तब दिक्कत होती है। कौन सी पंरपरा सही है और कौन सी गलत। यह फर्क करके खुद की सोच विकसित करेंगे तो महिला-पुरुष का भेदभाव नहीं होगा। आप अगर अंधे होकर परंपराओं को मानेंगे तो दिक्कत होगी। समाज अपनी रफ्तार से बदलता है। महिला हो या पुरुष या किसी भी प्रोफेशन से जुड़े लोग हो सब इसके भाग हैं। व्यक्ति अपने आपको प्रोग्रेसिव कर सकता है। मैंने जीवन में तीन मूल्यों को अपनाने का प्रयास किया है, वे समानता, स्वतंत्रता और न्याय हैं। इनके आधार पर चलने की कोशिश की। जाति, धर्म, लिंग के आधार पर किसी तरह के भेदभाव के मैं हमेशा खिलाफ रही हूं।
आपके कभी सरकारी सेवा में महिला होने के नाते असहज महसूस किया?
कुशल सिंह: कई बार अहसज स्थितियां बनती थीं। जो लोग महिलाओं के प्रति सहज नहीं रहते थे, उन्हें दिक्कत होती थी, लेकिन मुझे कभी दिक्कत नहीं हुई। मैंने कभी खुद को कमजोर महसूस नहीं किया।
आपके अनुभव के आधार पर आप आज की महिलाओं को क्या सलाह देंगी?
कुशल सिंह: आपको अपना जीवन अपने हिसाब से जीना है तो आत्मनिर्भर बनना होगा। मेरा अनुभव आज की लड़कियों के काम का नहीं है। क्योंकि हमारी पूरी जिंदगी तो खुद की बराबरी साबित करने में ही चली गई। आप खुद की सोच विकसित करें, रुढ़ियों को नहीं अच्छी परंपराओं को मानें।
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