बाड़मेर का सुंदरा, इंडो-पाक बॉर्डर। राजस्थान के रेतीले रण से सटा 1037 किमी लंबा बॉर्डर तो शांत हैं, लेकिन 24x7 घंटे तैनात बीएसएफ के जवानों की 50 डिग्री से ज्यादा दहकती गर्मी से मुठभेड़ हो रही। इन दिन 50 डिग्री तक लावे की तरह तपती बालू रेत पर पेट्रोलिंग करनी पड़ती है। हालांकि जवानों के हौंसलों के साथ बीएसएफ का मिशन ‘छाया प्लान’ राहत दे रहा है।
दरअसल, बीएसएफ 15 से 18 साल से हर मानसून सीजन राजस्थान से सटे बॉर्डर पर 2.50 लाख पौधे रोपती है। जवान खुद इसकी देखभाल करते हैं, इसलिए 60% पौधे बच जाते हैं। यानी करीब 20 लाख से अधिक पौधे जवान होकर बीएसएफ जवानों को राहत दे रहे हैं। गांवों में भी हरियाली छाई है।
वहीं दूसरी ओर दुश्मन देश का बॉर्डर बदहाल व बंजर तो हैं ही, चौकियों में पंखे तक नहीं हैं। गर्मी ऐसी कि रेंजर्स दिनभर चौकी में दुबके रहते हैं। भास्कर टीम ने दो दिन सुंदरा क्षेत्र में बीएसएफ के बीच और गांव में गुजारे।
राजस्थान से पाकिस्तान का 1037 किमी लंबा बॉर्डर लगता है। गृह मंत्रालय हर साल ढाई लाख पौधे यहां लगाने का लक्ष्य देता है। तीन साल पहले तनोट क्षेत्र में सघन पौधे रोपण अभियान चलाया, जिससे लिम्का बुक में रिकार्ड दर्ज हुआ। रेगिस्तान में कम पानी में पनपने वाले खेजड़ी, नीम जैसे पौधे लगाए जा रहे हैं। इनमें तारबंदी के पास, बीओपी (सीमा चौकी) से लेकर कच्चे रास्तों व आसपास के गांव ढाणियों में हर साल टारगेट देकर पौधे लगाए जा रहे है, हालांकि इनकी सरवाइवल रेट 60% से ज्यादा है।
बीएसएफ गुजरात सीमांत के प्रवक्ता डीआईजी एमएल गर्ग का कहना है कि तारबंदी के पास बड़े हुए पौधे छाया दे रहे हैं तो गांवों में मवेशियों व वन्य जीवों की ये आश्रय स्थली बन गए। बीएसएफ इनके लिए पीने के पानी की व उपचार की व्यवस्था कर रही है। 300 से 500 मीटर पर लगे ये पेड़ जवानों को 50 डिग्री में राहत दे रहे हैं।
गश्त के दौरान सबसे मुश्किल हालात सुबह दस बजे बाद शुरू होते है, जब पारा चालीस डिग्री को पार कर जाता हैं। दोपहर बारह बजे बाद तो ये 50 डिग्री से ज्यादा हो जाता हैं। इस दौरान जमीन पर तापमान 55 डिग्री से ज्यादा होने से जंगल बूट में चलना दुश्कर होता हैं।
यहां के कंपनी कमांडर अवधेश कहते हैं कि दिन की दोनों शिफ्ट में ड्यूटी व पेट्रोलिंग करने वाले जवानों के साथ ऊंटों के लिए मुश्किल हालात होते है। ऐसे में पेड़ों की छाया में खड़े होकर निगरानी करते है, इससे थोड़ी राहत तो मिलती ही हैं। ऊंट हेंडलर दरजाराम का कहना है कि कई बार तो ऊंट भी गश्त के लिए तैयार नहीं होता हैं। तीन से चार किमी की गश्त के बाद उसे भी पेड़ का आश्रय देना पड़ता हैं। बीएसएफ व गांव में गुजारे।
गर्मी, गांव और कर्फ्यू सा सन्नाटा
सुंदरा गांव में जब भास्कर टीम पहुंची तब दोपहर 12 बज चुके थे। अंगारे बरसाती गर्मी में लोग अपने घरों, गुड हालत में दुबके हुए थे। भौगोलिक दृष्टि से देश की सबसे बड़ी 60 से 70 किमी के दायरे में फैली इस ग्राम पंचायत मुख्यालय पर कर्फ्यू सा सन्नाटा पसरा था। लेकिन रेत के टीलों पर पेड़ों की छाया में मवेशियों व वन्य जीवों के झुंड बैठे थे।
स्थानीय निवासी कमलसिंह सोढ़ा ने बताया कि पानी तो बीएसएफ से मिल जाता है, खेळियों व टांकों से जवानों को पीने के लिए पानी उपलब्ध हैं। हर साल यहां पौधे लगाता है, जो इस सीजन में खासकर मवेशियों को छाया दे रहे हैं। कई दूर दराज की ढाणियों में चालीस से पचास फीट की बेरियों से खींचकर पानी निकालते हैं। पहले जानवरों को ही पिलाते हैं। इसके चलते पहले के सालों में यहां मवेशियों की मौतें कम हो रही हैं।
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पाकिस्तानी रेंजर्स गर्मी से पस्त, बिजली नहीं
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