देश में गणतंत्र के गौरवमयी 73 साल। इन 73 साल में देश ने दुनिया में अपनी अलग पहचान बनाई और आज ताकतवर देशों में शामिल है। देश की इसी समृद्धि और शौर्य की एक झलक हमें कर्तव्य पथ पर होने वाली नेशनल परेड में देखने को मिलेगी। इसे देख पूरा देश गौरवान्वित हो उठता है। इसी परेड में शामिल राजस्थान के एक छोटे से कस्बे की छात्राओं का स्कूली बैंड आपको रोमांचित कर देगा। पिछले 63 साल से यह बैंड नेशनल परेड का हिस्सा है आज तक एक बार भी रिजेक्ट नहीं हुआ। इस उपलब्धि को हासिल करने वाला यह देश का एकमात्र स्कूली बैंड है
रोजाना दस घंटे प्रैक्टिस के बाद इनका चयन नेशनल परेड के लिए होता है और यह प्रैक्टिस करने के लिए इन्हें -1 डिग्री से भी कम तापमान में सवेरे पांच बजे उठना होता है।
खास बात यह है कि देश के पहले राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री से लेकर अब तक सभी राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री इस बैंड के मुरीद रहे हैं…तो आइए, देखते हैं कि स्कूल कैंपस में कड़ी मेहनत से लेकर कर्तव्य पथ तक इन बालिकाओं के हौसलों से भरे कदमों का सफर।
बैंड में 51 कैडेट्स, स्कूल में चयन बहुत हार्ड
देश का प्रमुख औद्योगिक घराना बिरला परिवार मूलत: राजस्थान के झुंझुनूं जिले में पिलानी का रहने वाला है। बिरला ने पिलानी को शिक्षा नगरी बनाया और यहां स्कूलों से लेकर बिट्स तक की स्थापना की। बालिका शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए यहां 1941 में बिरला बालिका विद्यापीठ की स्थापना की गई। 40 छात्राओं से शुरू हुए इस स्कूल में आज करीब 900 छात्राएं पढ़ रही हैं।
देश की आजादी के साथ ही इस स्कूल में छात्राओं के लिए एक बैंड की शुरुआत हुई। आज यह बैंड अपनी अलग पहचान बना चुका है और पिछले 63 साल से गणतंत्र दिवस की नेशनल परेड का हिस्सा बन रहा है। बैंड में कुल 51 छात्राएं होती हैं, इसमें क्लास 8 से 11 तक की एनसीसी कैडेट्स का ही चयन किया जाता है, लेकिन यह चयन भी कड़े मापदंडों पर होता है। सबसे पहले तो यही देखा जाता है कि क्या छात्रा कड़े अभ्यास से गुजर सकती हैं। रोजाना दस से बारह घंटे अभ्यास करने की क्षमता होने पर ही कैडेट को चुना जाता है। इसके बाद एकेडमिक रिकॉर्ड, लंबाई और अन्य शारीरिक मापदंड भी देखे जाते हैं। चयनित छात्राओं को रोजाना स्कूल में प्रैक्टिस करनी होती है।
ऐसे हुई राजपथ पर परेड के लिए शुरुआत
बात 1959 की है... तब जवाहर लाल नेहरु देश के प्रधानमंत्री थे और वे पिलानी में स्कूल के एक कार्यक्रम में बतौर चीफ गेस्ट आए। तब स्कूल की एनसीसी कैडेट्स ने उनके सामने बैंड की प्रस्तुति दी, जिसे देखकर वह बहुत प्रभावित हुए। उन्हें आश्चर्य हुआ कि देश के छोटे से कस्बे में छात्राओं का ऐसा भी बैंड है। उसी प्रोग्राम में उन्होंने कहा कि अगले साल के गणतंत्र दिवस पर यह बैंड नेशनल परेड में शामिल किया जाएगा। बस, फिर क्या था, स्कूल की छात्राएं कड़े अभ्यास में जुट गईं। 1960 में यह बैंड पहली बार नेशनल परेड का हिस्सा बना। उस वक्त बैंड की टीम का नेतृत्व छात्रा आशा लता झा ने किया था। तब से आज तक यह परंपरा केवल दो बार कोरोनाकाल के दौरान टूटी।
सिलेक्शन के लिए आज भी होता है कंपीटिशन
नेशनल परेड का हिस्सा बनते हुए इस बैंड को 62 साल हो गए और पूरे देश में इसकी पहचान बन चुकी है, लेकिन यह मुकाम इतना भी आसान नहीं है। परेड का हिस्सा बनने के लिए आज भी इस बैंड को कड़े कंपीटिशन से गुजरना पड़ता है। दरअसल, नेशनल परेड के लिए देशभर से इच्छुक स्कूलों की ओर से अपने बैंड का वीडियो भेजा जाता है। इसके बाद रक्षा मंत्रालय की टीम चार बेस्ट बैंड का चुनाव करती है। अंतिम रूप से इन चार बैंड में से केवल दो बैंड का चयन होता है। इनमें से पिलानी का यह बैंड हर साल परेड का हिस्सा बनता है।
दिसंबर में ही जाना होता है दिल्ली
नेशनल परेड का हिस्सा बनने के लिए इन छात्राओं को हर साल 6 महीने पहले प्रैक्टिस शुरू करनी पड़ती है और 30 दिसंबर को ही दिल्ली जाना होता है। इसके बाद ये 30 जनवरी तक दिल्ली में रहती हैं। यह वक्त दिल्ली में कड़ाके की सर्दी का होता है। सवेरे घना कोहरा होता है और धरती पर सूरज की किरण तक दिखाई नहीं देती, लेकिन इसके बावजूद ये वहां रोजाना दस से बारह घंटे तक प्रैक्टिस करती हैं। इनमें कर्तव्य पथ पर केवल छह बार प्रैक्टिस होती है, जबकि बाकी दिन प्रैक्टिस करियप्पा परेड ग्राउंड में होती है।
प्रैक्टिस के दौरान ही आर्मी चीफ से लेकर कई अधिकारी परेड का निरीक्षण करते हैं। बाद में देश के राष्ट्रपति से लेकर प्रधानमंत्री, रक्षामंत्री, गृहमंत्री और सैन्य अधिकारी इनसे मुलाकात करते हैं। दिल्ली से लौटने के बाद जयपुर में राजभवन में राज्यपाल भी इनसे मुलाकात कर सम्मानित करते हैं।
बजा सकती हैं 60 से अधिक धुनें
बैंड की ये छात्राएं कर्तव्य पथ पर जब कदम से कदम मिलाकर आगे बढ़ती हैं तो हर कोई देखते रह जाता है। इनके हौंसले को जैसे सुमधुर धुनों में तब्दील कर चारों ओर बिखेर देता है। बिरला बालिका विद्या पीठ में देश के कई राज्यों की छात्राएं पढ़ती हैं। इस बैंड में भी अलग अलग राज्यों की छात्राएं शामिल होती हैं। कठोर अनुशासन के साथ आगे बढ़तीं ये छात्राएं 60 तरह की धुन बजा सकती हैं। इनके बैंड में तीन सेरेमोनियल छड़ी, 2 सॉसफोन, 4 यूफोनियम, 2 ट्रॉम्बोन, 4 सैक्सोफोन, 28 क्लैरिनेट, 2 सिंबल, 2 बास ड्रम और 4 साइड ड्रम शामिल हैं।
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