गिद्ध को एयरलिफ्ट कर कन्याकुमारी से जोधपुर लाए:2600 KM के सफर में 12 घंटे भूखा रहा; 2017 में स्पेन से आया था

जोधपुर5 महीने पहले
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स्पेन से आए एक गिद्ध को उसके परिवार से मिलवाने के लिए एयरलिफ्ट किया गया। सिनेरियस प्रजाति का यह गिद्ध कन्याकुमारी में आए साइक्लोन की वजह से साढ़े पांच साल पहले अपने परिवार से बिछड़ गया था। वन विभाग की टीम ने प्लान बनाकर इसे पहले कन्याकुमारी से चेन्नई, फिर वहां से जोधपुर के माचिया सफारी पार्क में पहुंचाया।

गुरुवार दोपहर 2 बजे गिद्ध को जोधपुर लाया गया। करीब 12 घंटे के सफर में इसे भूखा रखा गया था। पहले इस गिद्ध को कन्याकुमारी से जोधपुर (करीब 2600 किलोमीटर) शिफ्ट करने के लिए सड़क मार्ग की प्लानिंग बनाई गई थी, लेकिन एक महीने पहले हुए ट्रायल में उसके लिए खतरा महसूस किया गया। ऐसे में एयरलिफ्ट करने का प्लान बनाया। जोधपुर में भी इसे इनकी प्रजाति के बीच छोड़ने से पहले सर्वे किया जाएगा।

पढ़िए- एक गिद्ध को परिवार से मिलाने के लिए कैसे चली मुहिम
2017 में स्पेन से आया सिनेरियस प्रजाति के गिद्धों का झुंड कन्याकुमारी पहुंचा तो साइक्लोन की वजह से यह गिद्ध उड़ नहीं पाया। इसके बाद इसे उदयगिरी पार्क में रखा गया। इस बीच रिसर्च किया गया कि देश में इसके अनुकूल कौन सी जगह है। पता चला कि जोधपुर इसके लिए सबसे बेहतर है। इतना ही नहीं जोधपुर में सिनेरियस प्रजाति के कई गिद्ध यहां आते हैं, इसके बाद इसे यहां लाने की प्लानिंग बनाई गई।

जोधपुर इसलिए चुना, क्योंकि यहां आसानी से भर सकता है उड़ान
एक्सपर्ट के अनुसार वल्चर को उड़ान भरने के लिए हीट वेव की जरूरत होती है। साउथ का इलाका ठंडा होने की वजह से वहां गर्म हवाओं का असर न के बराबर होता है। ऐसे में वल्चर उड़ान नहीं भर पा रहा था। वाइल्ड लाइफ इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया देहरादून से इकोलॉजिस्ट की टीम ने जब रिसर्च किया तो पता चला ऐसा एरिया पश्चिमी राजस्थान या गुजरात में मिल सकता है, जहां सर्दियों में भी ये आसानी से उड़ान भर सकता है।

पहले सड़क मार्ग से आना था, फिर फ्लाइट से लाए
इस गिद्ध की देखभाल उदयगिरी पार्क टीम की ओर से की गई। प्लान बनाया गया कि सड़क मार्ग से इसे जोधपुर पहुंचाया जाएगा। इसके लिए कन्याकुमारी से इसे सबसे पहले चेन्नई तक 707 किलोमीटर का सफर कर गाड़ी में लाया गया, लेकिन टीम को पता चला कि गिद्ध को ट्रैवलिंग स्ट्रेस होने लगी।

चेन्नई तक गाड़ी में सफर के दौरान रिसर्च किया तो सामने आया कि बंद बॉक्स में 4 दिन तक रहना मुश्किल हो जाएगा। इसके साथ इतने दिन इसे भूखा रखना भी संभव नहीं है। इसके अलावा गिद्ध के लिए खतरा भी बढ़ गया था। इसलिए ऐन वक्त पर प्लान बदला और चेन्नई से एयरलिफ्ट कर जोधपुर लाने का प्लान बनाया गया।

दो दिन तक टीम करेगी रिसर्च, इसके बाद छोड़ेगी
इस गिद्ध के साथ तमिलनाडु फॉरेस्ट डिपार्टमेंट की टीम भी आई है। इसमें तमिलनाडु फॉरेस्ट डिमार्टमेंट से DFO, वेटरनरी ऑफिसर और केयर टेकर भी शामिल हैं। माचिया के वेटरनिरी डॉक्टर ज्ञान प्रकाश ने बताया कि यह टीम शुक्रवार को जोधपुर के पास केरु में बने डंपिग यार्ड का सर्वे करेगी। पता लगाया जाएगा कि इस प्रजाति के गिद्ध यहां आ रहे हैं या नहीं। इसके बाद यही टीम दो दिनों तक इस पूरे एरिया का रिसर्च करेगी।

बताया जा रहा है कि यदि 25 से 30 वल्चर इस प्रजाति के मिलेंगे तो इसे भी वहां छोड़ा जाएगा, नहीं तो इसके लिए दूसरी जगह ढूढेंगे या फिर कई दिनों तक इंतजार करेंगे। जोधपुर के माचिया पार्क में इसे कुछ दिन एक्सपर्ट टीम की निगरानी में रखा जाएगा। ताकि यह जोधपुर की आबोहवा के अनुकूल स्वयं को ढाल सके।

हर साल आते हैं प्रवासी गिद्ध
बीकानेर की महाराजा गंगासिंह यूनिवर्सिटी के पर्यावरण विज्ञान विभाग के हेड प्रो. अनिल छंगाणी का कहना है कि सिनेरियस, हिमालयन ग्रिफन व यूरोशियन प्रजाति के गिद्ध सर्दी के मौसम में लंबी दूरी तय कर भारत आते हैं। ये गिद्ध अमूमन मंगोलिया, कजाकिस्तान, स्पेन सहित कुछ अन्य देशों से उड़ान भरकर यहां पहुंचते हैं।

कई बार इनकी उपस्थिति श्रीलंका व थाईलैंड तक में दर्ज की जा चुकी है। ऐसे में कोई बड़ी बात नहीं है कि सिनेरियस प्रजाति का यह गिद्ध कन्याकुमारी तक जा पहुंचा। आमतौर पर ये गिद्ध समूह में ही उड़ान भरते हैं, हो सकता है कि घायल होने के कारण यह गिद्ध पीछे रह गया। समय रहते लोगों की मदद से सही स्थान पर पहुंच गया और इसका इलाज हो सका।

लगातार कम हो रही है संख्या
प्रोफेसर अनिल छंगाणी ने बताया कि इनकी संख्या तेजी से कम हो रही है। देश में आज तक गिद्धों की सही तरीके से कभी गणना ही नहीं की गई। ऐसे में सारे दावे अनुमान पर आधारित हैं। बेशक पूरे देश में ही गिद्धों के प्राकृतिक आवास धीरे-धीरे कम होते जा रहे हैं। इसका असर गिद्ध की आबादी पर पड़ना ही है।

राजस्थान में गिद्धों की स्थिति ज्यादा अच्छी नहीं कही जा सकती। प्रो. छंगाणी का कहना है कि गिद्धों के प्राकृतिक आवास तेजी से नष्ट हो रहे है। सबसे अधिक नुकसान खनन से हुआ है। पहाड़ के पहाड़ खनन की भेंट चढ़ गए। इन पहाड़ों में ही गिद्ध प्रजनन करते थे। फिर भी यहां पर्याप्त संख्या में गिद्ध नजर आते रहते हैं।

उन्होंने बताया कि राजस्थान में गिद्ध संरक्षण का वर्तमान में कोई प्रोजेक्ट नहीं चल रहा है। इसके लिए प्रो. छंगाणी ने राज्य व केन्द्र सरकार को प्रस्ताव भेज रखे हैं, लेकिन अभी तक कोई जवाब नहीं मिला। राजस्थान में मुख्य रूप से इजिप्शन, लॉग बिल्ड, सफेद पीठ वाले व राज गिद्ध पाए जाते हैं। इसके अलावा प्रवासी गिद्ध यहां आते रहते हैं।