'मेरे सामने पेड़ों की कटाई हो रही थी। जंगल के जंगल खत्म हो रहे थे। ऐसा लगता था जैसे मेरी जान निकली जा रही हो। तय किया हर हाल में जंगलों को बचाना है। जब जंगल बचाने की लड़ाई शुरू की तो पता था कि ये इतना आसान नहीं होगा।'
ये कहना है लेडी टार्जन जमुना का। 42 साल की जमुना टूडू ने झारखंड के जंगलों को बचाने की मुहिम शुरू की थी। इस काम के लिए उन्हें पद्मश्री अवार्ड से भी सम्मानित किया गया थाा। उनके इसी काम की वजह से उन्हें लेडी टार्जन के नाम से जाना जाता है।
जमुना ने बताया- शादी के दो साल बाद ही इसकी मुहिम शुरू कर दी। डकैतों से लेकर माफियाओं तक ने धमकी दी, क्योंकि वे जंगल से लकड़ियां नहीं ले पा रहे थे। जंगल से माफियाओं का प्रभाव खत्म होने लगा था। मैंने इलाके के एक-एक घर में जाकर बताया कि पेड़ों को क्यों बचाना है और ये हमारे लिए क्यों जरूरी है।
एक लंबी लड़ाई जंगलों और पेड़ों को बचाने के लिए लड़ी गई और ये अब भी जारी है। 10 हजार महिलाओं की टीम बनाई। आज भी जब हमारी टीम जंगलों को बचाने के लिए निकलती है तो हाथ में तीर-कमान होते हैं।
जमुना दो दिन से जोधपुर दौरे पर हैं। यहां विभिन्न कार्यक्रम में हिस्सा ले रहीं है। जोधपुर प्रवास के दौरान जब भास्कर ने उनसे बातचीत की तो उन्हें अपने संघर्ष के बारे में बताया
...पढ़िए एक साधारण परिवार की महिला कैसे बनी 10 हजार महिलाओं की लीडर
दिसंबर 1980 को मेरा जन्म हुआ था। 1998 में झारखंड के सिंहभूम जिले के बेड़ाड़ीह टोला गांव में शादी हुई थी। ससुराल आई तो देखा कि आस-पास के जंगलों में अवैध तरीके से पेड़ों की कटाई की जा रही है। जंगल माफिया लगातार जंगलों को खत्म कर रहे हैं। पेड़ों की कटाई से परेशान होने लगी तो जंगल बचाने का फैसला लिया।
साल 2000 में जंगल और पेड़ों को बचाने की मुहिम शुरू की। मेरे जैसी विचारधारा वाली महिलाओं को मुहिम से जोड़ना शुरू किया। 2004 में एक वन रक्षक समिति बनाई, जिसमें महिलाएं ही थीं। हम लोग हाथ में तीर-कमान और डंडे लेकर जंगल में निकलते और जहां भी अवैध कटाई दिखती इसका विरोध करते।
जंगल माफिया छटपटाने लगे। कई बार धमकी दी लेकिन मैंने मेरा काम जारी रखा। वे गांव वालों को धमकाते कि यदि ऐसा हुआ तो काम-धंधा बंद हो जाएगा। मैं और मेरी टीम लगातार जंगल बचाने की मुहिम से जुड़ी रही।
3 मार्च 2009 की रात करीब डेढ़ बजे चार से पांच डकैतों ने मेरे घर पर हमला कर दिया। हथियार लेकर मेरे घर में घूसूे और घर का सारा सामान लूटकर ले गए। बर्तन से लेकर खाने-पीने और सोने के जेवरात तक साथ ले गए। धमकी दी कि यदि वो इस तरह से राजनीति करती रही तो जिंदा नहीं बच पाएगी।
घर पर हमला होने के अगले ही दिन थाने पहुंची और डकैतों के खिलाफ मामला दर्ज करवाया। पुलिस ने सभी डकैतों को अरेस्ट किया। मैंने 12 साल तक केस लड़ा। इस केस में झारखंड के जज आलोक दुबे ने साथ दिया। मेरे वकील को मदद करने काे कहा साथ ही बोले- इनसे पैसा नहीं लेना है।
वकील ने मेरे से एक रुपए तक की फीस नहीं ली। 12 साल की लंबी लड़ाई लड़ने के बाद उन्हें 7 साल की सजा सुनाई गई।
60 महिलाओं से शुरू हुआ सफर, आज 10 हजार महिलाओं की टीम
जमुना टूडो ने 2004 में जब समिति बनाई तब गांव की 60 महिलाएं जुड़ी। अब समिति की 300 से ज्यादा शाखाएं बन चुकी है। जहां अलग-अलग जगहों पर 10 हजार से अधिक महिलाएं वन और पर्यावरण बचाने के लिए काम कर रही है। 20 वर्षों के इस सफर में उनकी टीम ने झारखंड के 300 गावों में 50 एकड़ से अधिक जंगल बचा चुकी है। आज भी इनके साथ महिलाएं अपने हाथों में डंडे और तीर कमान लेकर चलती हैं।
पीएम मोदी कर चुके हैं तारीफ
जमुना ने बताया कि उन्हें लेडी टार्जन नाम पीएम नरेंद्र मोदी ने दिया था। उनके काम से प्रभावित होकर ही पीएम ने उन्हें 22 जुलाई 2022 को राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के फेयरवेल डिनर में भी इनवाइट किया था। इससे पहले 24 फरवरी 2019 को मन की बात में भी पीएम नरेंद्र मोदी ने लेडी टार्जन की तारीफ की थी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 'मन की बात' के 53 वें एपिसोड में लेडी टार्जन की चर्चा की। उन्होंने वन संरक्षण के लिए लेडी टार्जन के संघर्ष को विस्तार से बताया और नई पीढ़ी को उनसे सीख लेने की अपील की थी। प्रधानमंत्री ने कहा था कि झारखंड में लेडी टार्जन के नाम से विख्यात जमुना टुडू ने टिम्बर माफिया और नक्सलियों से लोहा लेने का साहसिक काम किया। जमुना ने केवल 50 हेक्टेयर जंगल को उजड़ने से बचाया बल्कि दस हज़ार महिलाओं को एकजुट कर पेड़ों और वन्यजीवों की सुरक्षा के लिए प्रेरित किया।
8 साल पहले राष्ट्रपति ने की थी पद्मश्री की सिफारिश
जमुना टूडू ने अपने और राष्ट्रपति द्रोपदी मूर्मू के रिश्ते को लेकर भी खुलासा किया। जमुना ने बताया कि प्रेसिडेंट मेरे गांव की है। भले ही वो मेरी सगी बहन नहीं है, लेकिन मुझे सगी बहन से भी ज्यादा मानते हैं। मैंने एक बार 8 साल पहले प्रोग्राम में द्रोपदी मुर्मू दीदी को बुलाया था। उन्होंने हमारी टीम का काम देखकर उसी कार्यक्रम में कह दिया कि जमुना को पदमश्री मिलना चाहिए। इसके बाद 2019 को पद्मश्री से सम्मानित किया गया।
बोलीं: मेरे पेड़ ही मेरी संतान, ये ही मेरे भाई
लेडी टार्जन के नाम से मशहूर जमुना टूडू के कोई संतान नहीं है। उन्होंने बताया कि पेड़ को भाई मानती है। इसलिए उन्हें राखी भी बांधती है। जिस प्रकार एक भाई बहन की रक्षा करता है उसी तरह से पेड़ भी मेरी रक्षा करते हैं। मेरा जीवन जंगल और पेड़ पौधों के लिए ही है। भगवान ने मुझे पेड़-पौधे बचाने के लिए ही जीवन दिया है। इसलिए मेरे कोई संतान नहीं है। लाखों पेड़ पौधे ही मेरी संतान है। मेरी इच्छा है जितने दिन मेरे शरीर में सांस रहेगी। पर्यावरण के लिए काम करती रहूंगी।
दो दिन से जोधपुर दौरे पर
जमुना टुडे पिछले 2 दिन से जोधपुर में है। वे मंगलवार को जोधपुर पहुंचीं थी। जहां विभिन्न सामाजिक संगठनों की ओर से उनका स्वागत किया गया था। जोधपुर में उन्होंने स्टील भवन में एक संस्था के कार्यक्रम में हिस्सा लिया। इसके के बाद वे खेजडली शहीद स्थल पर पहुंचीं। जहां पेड़ों के लिए बलिदान देने वाले 363 शहीदों को नमन किया। उन्होंने बताया कि वे यहां से कुछ सीखकर जा रही है। इसके साथ ही जोधपुर हाईकोर्ट एडवोकेट एसोसिएशन में एडवोकेट्स से भी मुलाकात कर अपने अनुभवों को साझा किया।
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