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जोधपुर शहर के जलाशय तखत सागर पर भारतीय सेना के कमांडो की तरफ से किए जा रहे अभ्यास के दौरान बड़ा हादसा हो गया। सेना की कमांडो यूनिट-10 पैरा स्पेशल फोर्स (एसएफ) के कुछ जवान गुरुवार को हेलिकॉप्टर से नीचे उतर अभ्यास कर रहे थे। इस दौरान 4 जवान हेलिकॉप्टर से पानी में कूदे। 3 जवान तो बाहर निकल आए, लेकिन चौथा कमांडो कैप्टन अंकित गुप्ता पानी के भीतर ही रह गया। उसकी तलाश के लिए सेना ने तखत सागर से सटे पूरे क्षेत्र को सील कर वृहद खोज अभियान शुरू किया है। देर शाम तक उनका पता नहीं चल पाया।
सैन्य सूत्रों का कहना है कि 10 पैरा के कुछ कमांडो अपने नियमित अभ्यास के रूप में तखत सागर जलाशय में अभ्यास कर रहे थे। इस दौरान उन्हें पानी में कूद हमला बोलने का अभ्यास कराया जा रहा था। इसके तहत आज एक हेलिकॉप्टर से एक साथ 4 जवान पानी के भीतर कूदे। उनमें से 3 जवान थोड़ी देर में तैरकर बाहर निकल आए। लेकिन, चौथा जवान कैप्टन अंकित गुप्ता बाहर नहीं आया। उसके बाहर नहीं आने से हड़कंप मच गया। भारतीय सेना में स्पेशल फोर्स के कमांडो सबसे मुश्किल से तैयार हो पाते हैं। एक हजार चयनित में से 80 या 100 ही कमांडो बन पाते हैं। ऐसे एक कमांडो के मिसिंग होने से सेना में चिंता बढ़ गई।
वहां अभ्यास करा रहे जवानों ने अपने मुख्यालय को सूचित किया। इस पर सेना की कई टीम मौके पर पहुंच गई और खोज अभियान शुरू किया। मौके पर बड़ी संख्या में सैनिक नजर आ रहे हैं। सेना ने पूरे क्षेत्र को सील कर रखा है। यहां तक कि पुलिस को भी बाहर ही रोक दिया गया। सेना अपने स्तर पर ही जवान को तखत सागर में तलाश कर रही है। फिलहाल जवान के बारे में कुछ भी पता नहीं चल पाया है।
तखत सागर जलाशय से जोधुपर में पानी की सप्लाई की जाती है। यह लिफ्ट नहर से जुड़ा हुआ है। 61 फीट गहरे इस जलाशय में वर्तमान में 46 फीट तक पानी भरा हुआ है। फिलहाल, लापता कैप्टन के बारे में कोई जानकारी नहीं मिल पा रही है।
बहुत मुश्किल है सेना की स्पेशल फोर्स में कमांडो बनना
भारतीय सेना में स्पेशल फोर्स के पैरा कमांडो का चयन भी बहुत मुश्किल से होता है। यह दुनिया की सबसे कठिन चयन प्रतियोगिताओं में से एक है। इसी से अंदाजा लगाया जा सकता है कि सेना में करीब तीन हजार स्पेशल पैरा कमांडो ही है। स्पेशल कमांडों के लिए पैरा जंपिंग कोर्स अनिवार्य होता है। यह तीन माह का होता है। इसके बाद स्पेशल कमांडो के चयन की प्रक्रिया शुरू होती है। इसमें छह माह तक विशेष ट्रेनिंग चलती है। इस दौरान कई जवानों की हिम्मत जवाब देती जाती है और वे स्वेच्छा से बाहर निकलते जाते हैं। छह माह पूरे होने तक 10 फीसदी से कम जवान ही अंतिम चरण में बच पाते हैं।
इसमें चयनित जवानों को बाद में अलग-अलग यूनिट में भेजा जाता है। 1 पैरा स्पेशल फोर्स (एसएफ) माउंटेन वारफेयर, 9 पैरा एसएफ को जंगल वारफेयर व 10 पैरा एसएफ को डेजर्ट वारफेयर की विशेष ट्रेनिंग दी जाती है। इनमें पहले चरण में तीन माह की ट्रेनिंग होती है। इसमें कई लोग बाहर हो जाते हैं। बचे हुए कमांडो की अगले चरण की ट्रेनिंग शुरू होती है। यह चरण पूरा होने पर पैरा विंग व मैरुन ब्रेट प्रदान किया जाता है। इसे धारण करना किसी भी सैनिक या अधिकारी के लिए गर्व भरा पल होता है। क्योकि सेना में मैरुन ब्रेट केवल चुनीन्दा लोगों के पास ही है।
ऐसे होती है ट्रेनिंग
इसमें न केवल शारीरिक दमखम बल्कि दिमाग का भी पूरा टेस्ट लिया जाता है। सबसे पहले 23 किलोग्राम भार लाद करीब 73 किलोमीटर लंबी दौड़ होती है। इसके तहत प्रतिभागी को दुनिया की सबसे कठिन माने जाने वाली बाधाओं को पार करना पड़ता है। तीन माह के शुरुआती प्रशिक्षण में 80 फीसदी जवान हिम्मत हार स्वयं ही बाहर हो जाते है। इसके बाद शुरू होता है पांच सप्ताह का हैल्स वीक। इसमें सबसे कठिन शारीरिक क्षमताओं वाला ही अगले चरण में पहुंच पाता है। जैसे पच्चीस मीटर दूर खड़े दुश्मन को मारना, लेकिन उसके बगल में आपका सबसे खास रिश्तेदार खड़ा हो।
वहीं जंगल या रेगिस्तान में ऐसे स्थान पर उतार दिया जाता है जहां खाने-पीने को कुछ न हो। इनके बीच प्रकृति की तरफ से उपलब्ध संसाधन का प्रयोग कर अपना जीवन बचाना होता है। स्पेशल फोर्सेज की ट्रेनिंग करीब साढ़े तीन वर्ष तक चलती है। यह लगातार चलने वाली प्रक्रिया है। यही कारण है कि ये कमांडो सिर्फ 0.27 सेकंड के रिएक्शन टाइम में जवाबी हमला बोलने में सक्षम होते हैं। ये किसी भी परिस्थिति में फायर कर सकते हैं। इस तरह के कमांडो का उपयोग सर्जिकल स्ट्राइक जैसे हमले बोलने में किया जाता है।
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