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पश्चिमी राजस्थान में इन दिनों आंधियों का दौर चल रहा है। कई जगह रेतीले बवंडर उठ रहे हैं। रेतीले बवंडर के कारण सूरज के तेवर ढ़ीले पड़ जाते हैं। वहीं बवंडर के साथ ऊपर चढ़ी धूल के कारण आसमान से धूल की बारिश शुरू हो जाती है। हर तरफ धूल का साम्राज्य हो जाता है। कुछ दूरी तक भी साफ देख पाना मुश्किल हो जाता है। इस मौसम में धूल भरे बवंडर उठना सामान्य बात है, लेकिन इस बार जैसलमेर का रामगढ़ इनका हॉट स्पॉट बना हुआ है। महज दस दिन में तीन पर रेतीले बवंडर रामगढ़ से उठ चुके हैं। आइये जानते हैं कि रेगिस्तान में धूल भरे बवंडर कैसे उठते हैं...
इस कारण आते हैं बवंडर
ज्यादातर रेगिस्तान भूमध्य रेखा के इर्द गिर्द हैं। इस क्षेत्र में वायुमंडलीय दबाव बहुत अधिक होता है। यह दबाव ऊंचाई पर मौजूद ठंडी शुष्क हवा को जमीन तक लाता है। इस दौरान सूरज की सीधी किरणें इस हवा की नमी समाप्त कर देती है। नमी समाप्त होने से यह हवा बहुत गर्म हो जाती है। इस कारण बारिश नहीं हो पाती है और जमीन शुष्क व गर्म हो जाती है।
जमीन गर्म होने के कारण नमी के अभाव में धूल के कणों की आपस में पकड़ नहीं रह पाती है। ऐसे में ये हवा के साथ बहुत आसानी से ऊपर उठना शुरू कर देते हैं। हवा की गति 40 किलोमीटर से अधिक होने पर ये धूल कण एक बवंडर का रूप धारण कर लेते हैं। बवंडर के साथ धूल कण 10 से 50 फीट की ऊंचाई तक उठते हैं। कई बार ये इससे भी अधिक ऊंचाई तक पहुंच जाते हैं।
ऐसा है थार का रेगिस्तान
थार के रेगिस्तान से प्रसिद्ध ग्रेट इंडियन डेजर्ट भारत के उत्तर-पश्चिम क्षेत्र में स्थित है। यह प्राकृतिक रूप से भारत-पाकिस्तान के बीच सीमा का काम करता है। थार रेगिस्तान 3 लाख 20 हजार वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैला हुआ है। इसका 85 फीसदी हिस्सा भारत में व शेष पाकिस्तान में हैं। देश में रेगिस्तान के कुल हिस्से का 60 फीसदी राजस्थान में फैला हुआ है।
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