घरों से निकलने वाले कचरे से ड्राई फ्यूल या कोल बनाने की बात की जाए तो आपका हैरान होना लाजिमी है। जोधपुर में ऐसा हो रहा है। जोधपुर में नगर निगम के एक प्रोजेक्ट के तहत हर महीने 900 टन आरडीएफ यानि रियूज ड्राई फ्यूल बनाया जा रहा है। यह आरडीएफ सीधा सीमेंट फैक्ट्रियों को बेचा जा रहा है। इससे नगर निगम को रोजाना डेढ़ लाख रुपए तक की इनकम हो रही है। जोधपुर में ऐसे तीन प्लांट लगे हैं।
500 टन निकलता है कचरा
जोधपुर नगर निगम के हेल्थ ऑफिसर सचिन मौर्या ने बताया कि जोधपुर शहर में प्रतिदिन 500 टन कचरा निकलता है। इसमें से 250 टन कचरा प्लास्टिक समेत ड्राई वेस्ट (गत्ते, कागज, कांच की बोतल और पेपर आदि) होते हैं। ड्राई वेस्ट का यूज कर ड्राई फ्यूल बनाया जाता है। यूनाइटेड नेशन डेवलपमेंट (यूएनडी) प्रोग्राम के तहत रिकार्ड इनोवेशन एंड टेक्नोलॉजी इस प्रोजेक्ट को रन कर रही है। दरअसल, इस प्रोजेक्ट के तहत देश के 30 शहरों को शामिल किया गया था, जिसमें जोधपुर भी था। नगर निगम जोधपुर की ओर से केरू डंपिंग यार्ड, आर्मी कैंट एरिया और रातानाड़ा सेंट्रल जेल के पास 3 प्लांट लगाए गए हैं। इन तीनों प्लांट पर लगी मशीनों का खर्च 75 लाख रुपए है।
300 परिवारों को मिला रोजगार
बकौल हेल्थ ऑफिसर, केरू में स्थित प्लांट का खर्च यूएनडी उठा रहा है। इन तीनों प्लांट से रोजाना डेढ़ लाख रुपए की इनकम हो रही है। इस प्रोजेक्ट को लेकर सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट दिल्ली से टीम ने मार्च में सर्वे किया था। खास बात यह है कि यह प्रोजेक्ट शुरू होने के बाद जोधपुर शहर में कचरा उठाने वाले ऐसे 300 लोगों को भी रोजगार मिला है।
कोल के साथ बन सकते हैं प्लास्टिक आइटम
एक्सपर्ट ने बताया कि इस आरडीफ से कोल के अलावा प्लास्टिक आइटम भी बन सकते हैं। हालांकि जोधपुर नगर निगम की ओर से अभी यह प्रोजेक्ट शुरू नहीं हुआ है, लेकिन इस आरडीएफ से पीवीसी आइटम के साथ् ही प्लास्टिक पॉट, बकेट तो बना ही सकते हैं। इसका उपयोग सड़क निर्माण में भी हो सकता है।
ऐसे काम करता है यह प्लांट
कचरे में आए लकड़ी, आयरन, प्लास्टिक, बोतल, कांच, रद्दी आदि को अलग-अलग बॉक्स में रखा जाता है । यहां लगी तीन मशीनें जिसमें एक मशीन प्लास्टिक व अन्य कचरे को साफ करती है। बेलन मशीन कम्प्रेस करने का काम करती है। एग्लो गट्टा मशीन प्लास्टिक वेस्ट को गरम कर कच्चा माल बनाती है, जो फ्यूल के काम आता है।
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