पर्यावरण को हो रहे नुकसान से बचाने के लिए जोधपुर के एमबीएम यूनिवर्सिटी (मगनीराम बांगड़ मैमोरियल अभियांत्रिकी विश्वविद्यालय) ने नया इनोवेशन किया है। यह इनोवेशन न सिर्फ पर्यावरण के लिए फायदेमंद रहेगा, बल्कि इससे हानिकारक रेडिएशन से भी बचा जा सकेगा।
दरअसल एमबीएम यूनिवर्सिटी के आर्किटेक्चर डिपार्टमेंट ने एक ऐसी ईंट तैयार की है जो गर्मी में भी बिन ऐसी के कमरे में ठंडक का अहसास कराएगी। इतना ही नहीं ये ईंट रेडिएशन के हानिकारक प्रभाव को भी कम करेगी।
इस ईंट को गोबर और लाइम से बनाया गया है। जो आम ईंट के मुकाबले सस्ती भी रहेगी। इसे वेस्ट प्रोडक्ट से बनाया गया है। आमतौर पर लोग गोबर को वेस्ट समझते हैं, लेकिन यही वेस्ट अब घरों के लिए बेस्ट बनने वाला है। आने वाले समय में ग्रीन सिटी के तहत इसका प्रचलन बढ़ने वाला है।
कम जगह में अधिक उत्पादन
आमतौर पर मिट्टी की ईंट 5 से 6 रूपए तक की होती है। इसे चिकनी मिट्टी से बनाया जाता है। इसके लिए खेती के लिए उपयोगी मानी जाने वाली मिट्टी काम में ली जाती है। इसके बाद इसे भट्टी में पकाया जाता है। उस दौरान कोयले के धूएं में इसे पकाया जाता है। जो पर्यावरण को भी नुकसान पहुंचाता है।
इससे पाॅल्यूशन भी हो रहा है। ये ईंट वजन में भारी होने के साथ ही आग पकड़ने का भी खतरा रहता है। इसके अलावा इसे बनाने का तरीका प्रदूषण को बढ़ावा देता है। जबकि ये ग्रीन बिल्डिंग मैटेरियल भी नहीं है। खेती को भी इससे नुकसान होता है, लेकिन गोबर से बनी ईंट इको फ्रेंडली भी रहेगी।
कई सारी बीमारियों का इलाज
आमतौर पर अधिक रेडिएशन की वजह से कैंसर का भी खतरा बढ़ जाता है। इसके अलावा लम्बे समय तक सम्पर्क में रहने से प्रजनन क्षमता में कमी, कैंसर, ब्रेन ट्यूमर और मिस कैरेज जैसी समस्याएं भी हो सकती है। जबकि गाय के गोबर से बनी ईंट से रेडिएशन जैसी समस्याएं नहीं होगी।
सूर्य की किरणों से होगी तैयार
यह ईंट बनने से पर्यावरण के लिए बहुत ज्यादा फायदेंमद रहेगा। क्योंकि इसे बनाने में किसी तरह का धुआं नहीं निकलता। इसे सूर्य की किरणों में पकाई जाता है। इसमें किसी भी तरह का कोई कोयला नहीं जलाया जाता है जिससे धूंआ भी नहीं होता।
यूनिवर्सिटी के एक्सपर्ट का कहना है कि इसे बड़ी क्वांटिटी में बनाई जाएगी तो आने वाले समय में आम ईंट के मुकाबले इसकी कीमत कम रहेगी। इस ईंट के लिए गाय या बैल का गोबर कारगर होता है।
दिल्ली की टेरी लैब से प्रमाणित किया
दो साल स्टडी के बाद तैयार किया गया। आर्किटेक्चर विभाग की अध्यक्ष प्रियंका मेहता ने बताया एमबीएम में एक रिसर्च के तहत इसे बनाया गया है। यूनिवर्सिटी ने साल 2020 में इस पर रिसर्च करना शुरू किया। इसके बाद इसे बनाने के मैटर पर रिसर्च किया गया।
गोबर और ईंट के प्रयोग से इसे बनाया गया। बाद में रेडिएशन मापने और टैम्परेचर कंट्रोल कम करने के लिए इस पर रिसर्च किए गए। इसमें टैम्परेचर सेंसर लगाए गए। जिससे ईंट में टैम्परेचर का नाप लिया गया। इसके बाद प्राप्त हुए रिकाॅर्ड से ये पता लगा कि इससे बिल्डिंग में हो रही हीट को काफी हद तक कम किया जा सकता है। दिल्ली की टेरी लैब से इसे प्रमाणित भी किया गया है।
ईंट की खासियत
प्रति दस किलो मैटेरियल में 8 किलो गोबर और दो किलो लाइम यूज किया गया है।
तीन दिवसीय एक्सपो में हो रहा प्रदर्शन
गोबर से बनी ईंट का शनिवार से जोधपुर के होटल श्रीराम इंटरनेशनल में शुरू हुए आर्किटेक्चर एक्सपो में भी प्रदर्शन किया गया है। इसमें स्टूडेंट उन्हें इस ईंट के बनाने के प्रोसेस और इससे होने वाले फायदों के बारे में शहरवासियों को बता रहे हैं।
स्टूडेंट के अनुसार दिनों दिन बढ़ती गर्मी और पर्यावरण को हो रहे नुकसान से बचाने के लिए यह ईंट घरों के लिए काफी फायदेमंद रहेगी। इसमें प्रतीक सिंह, अर्सलान बेलिम, मुस्कान भाटी, नेहल शर्मा, पुल्किता डागा, मीनल प्रजापत, कुलदीप पटेल ,
अंजलि कल्ला , मेहुल , यशवी , पलक , अमन , सुनील , किंशुक , सौरभ , संकल्प , शशांक लोगों को गोबर की ईंट के बारे में जागरूक कर रहे हैं।
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