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मंडोर के ऐतिहासिक किले का रख-रखाव और संरक्षण करने के साथ वहां सुविधाएं विकसित करने की जिम्मेदारी मेहरानगढ़ ट्रस्ट की होगी। सरकार की अडॉप्ट अ हेरिटेज-योजना के तहत जोधपुर में भारतीय पुरातत्व विभाग के अधीन मंडोर किले को मेहरानगढ़ दुर्ग को गोद दिया गया है। दिल्ली में गुरुवार को ट्रस्ट के निदेशक करणी सिंह जसोल और भारत सरकार के पर्यटन मंत्रालय की ओर से संयुक्त निदेशक मीनाक्षी मेहता ने संयुक्त रूप से अनुबंध पर हस्ताक्षर किए।
रियासत काल में मंडोर दुर्ग जोधपुर की राजधानी हुआ करती थी, इस दुर्ग पर अनेक शासकों का राज रहा। किवदंती है कि एक ऋषि के श्राप से दुर्ग तहस-नहस हो गया था। वर्तमान में दुर्ग पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग (एएसआई) के अधीन है। यहां पर एएसआई पुरातत्व अवशेषों की खोज करने के साथ रख-रखाव का कार्य किया जा रहा है।
ट्रस्ट के निदेशक करणीसिंह जसोल ने बताया कि ट्रस्ट द्वारा यहां पर सैलानियों के लिए सुविधा विकसित की जाएगी। जिसमें संपूर्ण किला परिसर की साफ-सफाई, सुरक्षा व्यवस्था, स्थान-स्थान पर साइनेज बोर्ड लगवाने के साथ ही मोबाइल एप लांच किया जाएगा ताकि जोधपुर आने वाले पर्यटकों के लिए यह किला महत्त्वपूर्ण दर्शनीय स्थल बन सकें।
ट्रस्ट द्वारा मंडोर स्थित छतरियों को भी राजस्थान सरकार के संस्कृति विभाग के साथ हुए एक अनुबंध के तहत संरक्षण हेतु गोद लिया हुआ है, जिसके तहत प्राचीन छतरियों एवं देवलों को संरक्षित एवं सुरक्षित किया जा रहा है।
47 स्मारकों में गोद ले सकते हैं ग्रुप या कंपनियां
धरोहरों के संरक्षण में जन भागीदारी बढ़ाने के लिए 2017 में केंद्रीय पर्यटन और संस्कृति मंत्रालय ने पुरातत्व विभाग के साथ मिलकर “अडॉप्ट अ हेरिटेज-अपनी धरोहर अपनी पहचान’ योजना शुरू की। इस योजना के तहत इन धरोहरों और स्मारकों को तीन विभिन्न रंग में बांटते हुए उसी के अनुरूप सूचीबद्ध किया गया है।
इस वर्ष सरकार ने विभिन्न श्रेणियों में करीब 47 स्मारकों की सूची दी है। कोई भी ग्रुप या कंपनी इनमें से स्मारक या धरोहर चुनकर गोद ले सकता है। इस परियोजना को अन्य इंफ्रास्ट्रक्चर विकास योजनाओं के साथ जोड़ने का प्रयास किया गया है ताकि विदेशी पर्यटकों के साथ-साथ घरेलू पर्यटकों की संख्या बढ़ सके।
धरोहर गोद लेने वाली संस्था बनेगी ‘स्मारक मित्र’
दरअसल, धरोहर गोद देने के पीछे सरकार का मकसद न केवल इनका रख-रखाव करना बल्कि रोजगार के नए विकल्प देना भी है। इसीलिए गोद लेने वाली संस्था, कंपनी या ग्रुप को सरकार ने स्मारक मित्र नाम दिया है। गोद लेने वाली कंपनियों को धरोहरों की साफ-सफाई, सार्वजनिक सुविधाएं और वाई-फाई की व्यवस्था करनी होगी। पहले चरण में पांच साल की अवधि के लिए गोद दिए जाएंगे। इसके बाद योजना एवं उनके कार्यों की समीक्षा के बाद भविष्य की समयावधि तय की जाएगी।
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