बर्ड फ्लू के सिर पर मंडराते खतरे के बीच इन दिनों जोधपुर जिले का खींचन कस्बा प्रवासी परिन्दों कुरजां से आबाद है। तीस हजार से अधिक कुरजां के कलरव से खींचन गुंजायमान हो रखा है। बड़ी संख्या में पर्यटक रोजाना इस खूबसूरत पक्षी को देखने के लिए पहुंच रहे है। बर्ड फ्लू की रोकथाम के लिए सभी पक्षियों पर चौकसी बढ़ा दी गई। गांव के लोग सहित विभाग के कर्मचारी लगातार सभी पक्षियों पर नजर रखे हुए है।
हजारों किलोमीटर का सफर
सर्दियों के आगमन के साथ ही पांच से सात हजार किलोमीटर का सफर तय हजारों परिन्दें मारवाड़ की धरा पर उतरते है। मारवाड़ में इन दिनों पचास से अधिक तालाब के निकट कुरजां ने डेरा जमा रखा है। इनमें से सबसे अधिक कुरजां खीचन पहुंचती है। खींचन की आबोहवा व सुरक्षा के साथ ही यहां के लोगों की मेजबानी कुरजां को इतनी अधिक रास आई हुई है कि सालों से उनके यहां आने का क्रम बरकरार है।
इस बार आए अधिक पक्षी
बरसों से खींचन में कुरजां की सेवा में जुटे सेवाराम का कहना है कि इस बार गत वर्ष की अपेक्षा कुछ अधिक पक्षी आए हुए है। रोजाना करीब पंद्रह क्विंटल दाना कुरजां को खिलाया जा रहा है। कुरजां खींचन की मिट्टी में उपलब्ध छोटे-छोटे कंकर खाती है। साथ ही मक्की व ज्वार दाना भी खाती है। गांव में बरसों से यह क्रम बना हुआ है कि जैन समाज इन प्रवासी परिन्दों के लिए दाने-पानी की व्यवस्था करता है। गांव के अन्य लोग भी मेहमानों की इस सेवा में अपना अहम योगदान देते रहे है।
बरती जा रही है अतिरिक्त सतर्कता
सेवाराम का कहना है कि इस बार बर्ड फ्लू का खतरा मंडरा रहा है। हालांकि वन विभाग के अधिकारियों का कहना है कि फिलहाल खतरे के बादल टलते नजर आ रहे है। गत कुछ दिन से नया मामला सामने नहीं आया है। इसके बावजूद अतिरिक्त सतर्कता बरती जा रही है। खींचन व आसपास जहां तक कुरजां जाती है वहां तक लगातार निगरानी रखी जा रही है। ताकि किसी पक्षी के बीमार पड़ते ही उसे अन्य पक्षियों से अलग किया जा सके।
रात खेतों में गुजारती है कुरजां
कुरजां पक्षियों के झुंड रात में खींचन से दूर खेतों में सोने के लिए चले जाते है। फिर सुबह तड़के ये पहले खींचन के मैदानों में उतरते हैं, फिर धीरे धीरे चुग्गाघर की ओर उड़ते या चलते हुए आते हैं और कुछ ही देर में पूरा चुग्गाघर इन पक्षियों से भर जाता है।
ऐसे आती है कुरजां
कुरजां एक खूबसूरत पक्षी है जो सर्दियों में साइबेरिया से लेकर मंगोलिया तक फैले प्रदेश से हिमालय की ऊंचाइयों को पार करता हुआ हमारे देश में आता है। सर्दियां हमारे मैदानों और तालाबों के करीब गुजारने के बाद वापस अपने मूल देश में लौट जाता है। अपने लंबे सफर के दौरान यह पांच से आठ किलोमीटर की ऊंचाई पर उड़ता है। कुरजां यहां के परिवेश में इतना घुलमिल गया है कि इस पर कई लोकगीत बन चुके है। यहां इनके बच्चे होते है और उनके बड़े होते ही ये वापसी की उड़ान भर लेते है।
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