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पाक विस्थापित परिवारों की महिलाओं को उनके पारंपरिक कढ़ाई-बुनाई व सिलाई के हुनर से ही आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में शहर में एक प्रोजेक्ट शुरू किया गया है। इसके पहले चरण में करीब 300 महिलाओं को पारंपरिक कला में मॉडर्नाइजेशन और नई स्किल को समाहित करने की ट्रेनिंग दी जा रही है।
डिजाइनरों की टीम कपड़े से बनने वाले हैंडीक्राफ्ट के आइटम, कशीदेकार तकियों के कवर, दीवार पर सजाने वाले उत्पाद और डॉल इन महिलाओं से बनवा रहे हैं। ट्रेनिंग ले चुकीं ये महिलाएं 27 फरवरी को शुरू होने वाले देश के सबसे बड़े टॉय फेयर में शिरकत करेंगी। फेयर में इनके हाथों से बनी डॉल का प्रदर्शन किया जाएगा। इसके लिए कई एक्सपर्ट इंस्टीट्यूट और एनजीओ मदद कर रहे हैं।
ट्रेनिंग के दौरान बना रहीं नए-नए प्रॉडक्ट, अब ऑर्डर भी मिल रहे
एनजीओ यूनिवर्सल जस्ट एंड एक्शन सोसायटी (उजास) और जोधपुर नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ फैशन टेक्नोलॉजी (निफ्ड) की ओर से चल रही ट्रेनिंग ये महिलाएं नए-नए प्रॉडक्ट बना रही हैं। निफ्ट डायरेक्टर विजया देशमुख ने बताया कि प्रोजेक्ट के तहत इन्हें कलर मिक्सिंग के बारे में जानकारी दी जा रही है। ताकि पारंपरिक के साथ आधुनिक प्रचलन का तालमेल बेहतर हो सके।
उधर, एनजीओ उजास की डिजाइनर आईदमानी ने बताया कि महिलाओं से बातचीत में पता चला की ये बहुत परेशान हैं। इनके द्वारा बन रहे प्रॉडक्ट के ऑर्डर दिलवाने की कोशिश कर रहे हैं, कुछ ऑर्डर मिले भी हैं। डिजाइन एक्सपर्ट लगातार इन्हें सुझाव देते रहते हैं।
ऑनलाइन चल रही ट्रेनिंग
देश में कोविड संक्रमण के मामले सामने आने से पहले से यह प्रोजेक्ट शुरू हो गया था। संक्रमण बढ़ने के दौरान इसे कुछ समय के लिए रोका भी गया, लेकिन बाद में ऑनलाइन कर दिया गया।
डॉल बनेगी आकर्षण
प्रधानमंत्री मोदी ने एक नारा दिया था ‘वोकल फॉर लोकल’। इसी तर्ज पर देश में अब कई खिलौने बन रहे है। पाक विस्थापित महिलाओं ने भी एक डॉल बनाई है। जिसे जल्द ही एक नाम दिया जाएगा।
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