कोरोना संक्रमित होने का सुनकर ही शरीर में सिहरन दौड़ जाती हैं। संक्रमित होने पर किस शारीरिक व मानसिक दर्द से गुजरना पड़ता है, यह पॉजिटिव होने वाले ही जानते हैं। उम्मेद अस्पताल में कार्यरत नर्स सरला विश्नोई तीसरी बार संक्रमित हुईं।
वे नवजातों के वार्ड में कार्यरत हैं और वहां बच्चाें की देखरेख के दौरान वे तीसरी संक्रमण की चपेट में आईं, लेकिन इसके बावजूद सेवा का उनका जज्बा कायम है। इस बार भी जल्द स्वस्थ होकर अस्पताल लौटना चाहती हैं, क्योंकि महासंक्रमण के इस दौरान में एक नर्स के रूप में उनकी वहां ज्यादा जरूरत है।
बांवरला गांव निवासी सरला बचपन से चिकित्सा क्षेत्र में जाना चाहती थीं। यह सपना पूरा होने पर उन्होंने कुछ समय के लिए मिलिट्री हॉस्पिटल में भी सेवाएं दी थी। अब पिछले तीन साल से उम्मेद अस्पताल में कार्यरत हैं। कोरोना की दस्तक के साथ उनकी जिम्मेदारी बढ़ गई, क्योंकि उनकी ड्यूटी नवजात व छोटे बच्चों के वार्ड में है। बच्चे संक्रमित नहीं हो, इसलिए वह ज्यादा सजग और सावधानी बरतने लगी।
8 माह में 3 बार संक्रमण की चपेट मेंं आईं
कोरोना पहली लहर के दौरान उम्मेद अस्पताल में बनाए गए कोविड आइसोलेशन वार्ड में उनकी ड्यूटी लगाई गई थी। इस दौरान मरीजों की सेवा करते हुए सरला पहली बार 12 सितंबर को पॉजिटिव हुई थी। पहली बार पॉजिटिव होने पर वह घबरा गई थी, हालात भी खराब हो गई थी। लेकिन अपने आत्मविश्वास व इलाज से वह जल्दी ठीक हो गई। फिर इस साल 16 जनवरी को फिर पॉजिटिव हो गईं, लेकिन इस बार भी उन्होंने हौसला नहीं खोया। जल्दी ही अपना क्वारेंटाइन पूरा कर काम पर लौट आईं। मुश्किल से तीन महीने बीते होंगे, कि 17 अप्रैल तीसरी बार उनकी रिपोर्ट पॉजिटिव आईं। अभी वे घर पर ही क्वारेंटाइन हैं।
वैक्सीन की दोनों डोज लगवा चुकीं, इस बार लक्षण महसूस नहीं हो रहे
सरला बताती हैं, कि तीन बार पॉजिटिव होने पर चिंता व डर तो लगता है, कि शरीर में क्या साइड इफेक्ट होंगे। उसे वैक्सीन के दोनों डोज लग चुके हैं और वह तीसरी बार पॉजिटिव हुई है। उसे कोरोना का असर महसूस नहीं हो रहा है, जितना पहली बार हुआ था। इसके साथ ही वह यह भी मानती है, कि यह सब नवजात शिशुओं की सेवा का ही फल है, कि वह तीनों बार कोरोना को हरा पाई। मेरा कोरोना जैसी घातक बीमारी से बचना ही काफी है। इन मुश्किल हालात में समाज को अपना योगदान देने का यह सही वक्त है।
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