जोधपुर में भारत और फ्रांस की एयरफोर्स का संयुक्त युद्धाभ्यास शुरू हो चुका है। 26 अक्टूबर से शुरू हुआ युद्धाभ्यास 12 नवंबर तक चलेगा। इस वॉर प्रैक्टिस के जरिए दोनों देशों की एयरफोर्स के पायलट्स एक-दूसरे के साथ अपने अनुभव साझा कर रहे हैं।
इस प्रैक्टिस में दोनों देशों के फाइटर प्लेन हवा से हवा में टारगेट को हिट करने और सबसे खास मिड एयर रीफ्यूलिंग, यानी हवा में ही एक प्लेन से दूसरे प्लेन में फ्यूल भरने की ट्रेनिंग ले रहे हैं। खास बात यह है कि 400kmph प्रतिघंटा की रफ्तार से हवा में ही राफेल समेत 5 फाइटर प्लेन और प्रचंड हेलिकॉप्टर में फ्यूल भरा जा रहा है।
पढ़िए, आसमान में कैसे पूरा होता है हवा में फ्यूल भरने का काम
ये होता है प्रोसेस
मिड एयर रीफ्यूलिंग के लिए तेल लेने व देने वाले दोनों विमान के पायलट्स के कौशल का परीक्षण होता है। पहले फाइटर जेट को एयर टैंकर की स्पीड के बराबर लाया जाता है। इसके बाद दोनों के बीच करीब सौ फीट की दूरी को मेंटेन किया जाता है। इसके बाद शुरू होती है तेल भरने की प्रक्रिया। इस दौरान दोनों विमान के पायलट लगातार एक-दूसरे के कॉन्टैक्ट में भी रहते हैं।
राफेल को हवा में किया था रीफ्यूल
भारत के अधिकांश फाइटर जेट में मिड एयर रीफ्यूलिंग की सुविधा है। फ्रांस से राफेल बगैर कहीं ठहरे भारत पहुंचे थे। रास्ते में कतर के टैंकर ने हवा में ही उनको रीफ्यूल किया था। इसी तरह देश में विकसित तेजस भी हवा से हवा में तेल भर सकता है।
इस कारण की जाती है मिड एयर रीफ्यूलिंग
किसी भी फाइटर जेट की रेंज को बढ़ाने के लिए उसमें मिड एयर रीफ्यूलिंग की जाती है। इसका फायदा यह है कि कम तेल भर अधिक हथियार के सात एक बार फाइटर जेट टेक ऑफ कर लेता है। इसके बाद आसमान में उसमें और फ्यूल भर दिया जाता है। ऐसा करने से न केवल रेंज बढ़ती है बल्कि वह अधिक भारी हथियार भी ढो सकता है। रीफ्यूलिंग का अमूमन लड़ाई के दौरान फाइटर जेट्स में ही उपयोग किया जाता है। सिविल एविएशन में इसका उपयोग नहीं किया जाता है।
ऐसे होता है कोऑर्डिनेशन
तेल टैंकर व फाइटर जेट दो बिल्कुल अलग किस्म के प्लेन होते है। तेल लेने के लिए फाइटर टैंकर से सौ फीट या इससे कुछ कम की दूरी को सबसे पहले मेंटेन करते हुए उसकी गति के समान गति पर आता है। इस दौरान दोनों पायलट्स लगातार कॉन्टैक्ट में रहता है। आसाम में उड़ान भरते समय कोई भी प्लेन अपने आसपास के दायरे में हवा के दबाव को बदल कर रख देता है। ऐसे में अलग तरह के दो विमान पास में आते हैं तो उन्हें एक-दूसरे विमान के दबाव का सामना करना पड़ता है। टैंकर बड़ा होता है ऐसे में उसका दबाव अधिक होता है। इन सब बातों को ध्यान में रख लगातार एक समान दूरी पर उसी ऑएल्टीट्यूड व एयर स्पीड करीब 300 मील प्रति घंटा को बनाए रखने में ही पायलट के कौशल की परीक्षा होती है।
फिर शुरू होती है तेल भरने की प्रक्रिया
इसके बाद शुरू होती है तेल भरने की प्रक्रिया। दो तरह से तेल भरा जाता है। प्रोब एंड ड्रोग या फ्लांग बूम प्रोसेस से। इसमें टैंकर से लंबे पाइप के आगे बंधी हुई ड्रोग निकलती है। यह फाइटर जेट के प्रोब से जाकर जुड़ जाती है। इसके लिए मेग्नेटिक प्रेशर सिस्टम काम में लिया जाता है। मेग्नेटिक प्रेशर इतना तेज होता है कि ड्रोग अपने आप ही प्रोब की तरफ बढ़ जाता है। वैसे टैंकर में बैठा एक ऑपरेटर से नियंत्रित करता है।
एक साथ एक टैंकर से दो से तीन फाइटर्स में तेल भरा जा सकता है। तेल भरने की रफ्तार बहुत तेज होती है। फाइटर्स में पंद्रह मिनट के भीतर तेल भर दिया जाता है। इस दौरान सबसे महत्वपूर्ण होता है दोनों विमानों की एक समान रफ्तार के साथ उड़ान। रफ्तार में थोड़ा अंतर आते ही प्रोब व ड्रोग का कनेक्शन टूट जाता है और फिर नए सिरे से उसे जोड़ने का प्रयास करना पड़ता है। एक बार तेल पूरा भर जाने के बाद पायलट ड्रोग व प्रोब का कनेक्शन काटता है। इस दौरान पूरी सावधानी बरतनी पड़ती है। ताकि ड्रोग व प्रोब दोनों विमान में सुरक्षित वापस अंदर समेटे जा सकें।
जोधपुर में राफेल की क्षमता जांच खरीद की डील तैयार हुई थी
2014 में भारत-फ्रांस वायुसेना के संयुक्त युद्धाभ्यास गरूड़ में राफेल जोधपुर में अपनी ताकत दर्शा चुका है। उस समय राफेल और सुखोई के बीच रोमांचक मुकाबला हुआ था। इस युद्धाभ्यास में फ्रांस के तत्कालीन एयर चीफ डेनिस मर्सियर ने सुखोई से उड़ान भरी थी। जबकि तत्कालीन एयर चीफ मार्शल अरुप राहा ने सबसे पहले जोधपुर में ही राफेल उड़ा इसकी परीक्षण किया था। इसके बाद राफेल सौदा तेजी से आगे बढ़ा। इस सौदे की नींव सही मायने में जोधपुर के युद्धाभ्यास के दौरान राफेल की क्षमता को जांचने व परखने के बाद ही रखी गई थी।
यह है रिकॉर्ड
लंबी दूरी के मिशन को मूर्त रूप प्रदान करने के लिए मिड एयर रीफ्यूलिंग को काम में लिया जाता है। एक अभियान के दौरान अमेरिका के दो बी-2 बमवर्षक बारह हजार मील का सफर बिना कहीं ठहरे तय कर वापस लौटे। इस दौरान कई बार मिड एयर रीफ्यूलिंग की गई। अमेरिका के तीन महाद्वीप में स्थित पांच सामरिक ठिकानों से पंद्रह टैंकरों की सहायता से इनमें रीफ्यूलिंग की गई। ऐसा कर अमेरिका ने मैसेज देने का प्रयास किया था कि दुनिया का कोई कोना उनकी जद से अछूता नहीं है।
इधर, भारत को टैंकर बेचने की फिराक में फ्रांस
फ्रांस ने इस युद्धाभ्यास में अपने मल्टी रोल टैंकर ट्रांसपोर्ट ए-330 को राफेल फाइटर जेट के साथ भेजा है। यह बेहतरीन टैंकर माना जाता है। साथ ही इसका अन्य कार्य में भी उपयोग किया जा सकता है। फ्रांस इसे भारत को बेचने का प्रयास कर रहा है। इस संदर्भ में दोनों देश के बीच वार्ता भी चल रही है। दो वर्ष पूर्व जोधपुर में दोनों एयरफोर्स के युद्धाभ्यास में डेजर्ट नाइट में भी से भेजा गया था। उस दौरान तत्कालीन चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ जनरल विपिन रावत ने इस टैंकर में यात्रा कर उसकी क्षमता को नजदीक से परखा था। वर्तमान युद्धाभ्यास में भी इसका जमकर प्रयोग किया जा रहा है।
अलग-अलग फॉर्मेशन
इस युद्धाभ्यास में फ्रांस के राफेल के अलावा भारतीय राफेल, सुखोई, जगुआर व तेजस के अलावा हल्का लड़ाकू हेलिकॉप्टर रुद्र, अवाक्स विमान व हवा में तेज भरने वाले टैंकर हिस्सा ले रहे हैं। इन विमानों के समूह को दो हिस्सों में बांटा गया है। एक दुश्मन का और एक मेजबान का। इसके बाद शुरू होती है आसमान में मशक्कत।
आसमान में दोनों अपना-अपना दायरा तय कर लेते हैं। अब उसमें प्रवेश करने की जद्दोजहद शुरू होती है। दुश्मन के क्षेत्र में प्रवेश कर काल्पनिक लक्ष्य पर न केवल प्रहार करना होता है बल्कि दुश्मन देश के फाइटर्स से स्वयं का बचाव करते हुए सकुशल वापस लौटना होता है। दिन में कई बार इस तरह अलग-अलग ग्रुप बना अभ्यास किया जाता है।
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