चंबल नदी के किनारों पर इन दिनों अंडों से कछुओं का जन्म हो रहा है। करौली से करीब 60 किमी दूर करणपुर के घमूस दिव्य घाट पर हजारों कछुओं का जन्म हुआ है, इनमें दुर्लभ कछुए भी शामिल है। नदी किनारे सिर्फ कछुए ही नहीं घड़ियाल और मगरमच्छ के भी हजारों अंडे पक रहे हैं। हालांकि घड़ियाल और मगरमच्छ के अंडों से बच्चे बाहर आने में अभी 20 दिन लगेंगे। इन तीनों ही जीवों के अंडे नदी के किनारों पर गड्ढों में रेत के अंदर पकते हैं। मां किनारे पर गड्ढे खोदकर उनमें अंडे रखकर बजरी से ढंक देती है। अंडों को पकने में 60 से 80 दिन लगते हैं, इस दौरान तीनों ही जीव अपने-अपने अंडों की पहरेदारी करते हैं।
करणपुर के घमूस दिव्य घाट पर हजारों कछुओं का जन्म हुआ है। यहां बजरी में 8 से 12 मीटर दूरी पर अंडे रखने के घोंसले बने हैं। मादा कछुआ करीब एक फीट गहरा गड्ढा खोदकर एक साथ करीब 30 से 40 अंडे देती है। साधारणतया अंडे रात में देती है और अंडों से बच्चे निकलने में 60 दिन लगते हैं। अंडों में बच्चे अवस्था पूरी करने पर लेते हैं तो बाहर आने के लिए 'मदर कॉल' करते हैं। मदर कॉल सुनकर मां बजरी हटाकर पंजों से अंडे फोड़ती है और बच्चे बाहर निकलकर मां के साथ पानी में चले जाते हैं। मादा कछुआ साल में एक बार और अपने जीवनकाल में करीब 3 हजार तक अंडे दे देती है।
जानिए क्या है मदर कॉल
प्राकृतिक वातावरण में घड़ियाल और मगरमच्छ एवं कछुए चंबल किनारे अपने अंडों (घोंसलों) के आसपास रहती हैं। ऐसे में अंडों में जब बच्चे पूरी तरह पक जाते है तब अंडों से बाहर आने के लिए बच्चों की एक खास आवाज आनी शुरू हो जाती है, जिसे 'मदर कॉल' (अंडों से बच्चों की पुकार) कहा जाता है। सेंचुरी में कृत्रिम रूप से बने घोंसलों की निगरानी में लगे वॉलिंटियर्स इस 'मदर कॉल' को कान लगाकर सुनते हैं और फिर बच्चों को अंडों से बाहर निकालने में मदद करते हैं।
मुर्गी के अंडों से तीन गुना बड़ा होता है मगरमच्छ का अंडा
मादा मगरमच्छ मार्च में अंडे देती हैं और एक बार में करीब 30 से 40 तक अंडे दे देती है। मगरमच्छ के अंडे सफेद और कठोर होते हैं। इनका अंडा मुर्गी के अंडे से तीन गुना ज्यादा बड़ा होता है। मादा मगरमच्छ अंडों की करीब 70 दिन तक देखभाल करती है। इसके बाद अंडों से बच्चे निकलते हैं। मादा मगरमच्छ 8 से 10 साल की उम्र में अंडे देना शुरू कर देती है।
एक बार में 50 से 70 अंडे देती है मादा घड़ियाल
मादा घड़ियाल मई से जून में 30 से 40 सेमी गहरा गड्ढा खोदकर एक बार में 50 से 70 अंडे देती है। अंडों से बच्चे 60 से 80 दिन में निकलते हैं। घड़ियाल करीब 70 साल तक जीवित रह सकते हैं। यह मगरमच्छ की तरह का जीव है, लेकिन अपनी कुछ विशेषताओं से यह मगरमच्छों से कुछ अलग होता है। घड़ियाल का मुंह (थूथन) चौड़ा होता है और अंग्रेजी के U शेप में खुलता है, जबकि मगरमच्छ का मुंह नुकीला होता है और अग्रेंजी के V शेप की तरह होता है। उम्र बढ़ने के साथ ही घड़ियाल के मुंह पर घड़ेनुमा आकृति बन जाती है, इसीलिए इसे घड़ियाल कहते हैं।
घड़ियाल-मगरमच्छ के प्रजनन में 20 दिन का समय
नेशनल घड़ियाल सेंचुरी सवाई माधोपुर के डीएफओ अनिल कुमार यादव ने बताया कि चंबल नदी किनारे बड़ी संख्या में कछुओं का प्रजनन हुआ है। इसकी हमें बहुत खुशी है। हमने कछुओं के बच्चों को बचाने के लिए नाका इंचार्ज वॉलिंटियर्स को निर्देशित किया है। करणपुर के घमूस दिव्य घाट पर अंडों से निकलकर कछुए सुरक्षित बाहर आ गए हैं, जबकि घड़ियाल और मगरमच्छ के अंडे बजरी रखे हैं। इनके प्रजनन में अभी 20 दिन का समय लगेगा।
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