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जिले की नदियों का सीना छलनी कर अवैध रूप से खुलेआम बजरी निकालने का सिलसिला थम ही नहीं रहा। जिले में चंबल, मेज, मांगली, कुरेज, घोड़ापछाड़ नदियों से रोजाना 500 ट्रॉली से ज्यादा बजरी का खनन दिनदहाड़े किया रहा है। इस बारे में जिम्मेदार से पूछने पर उनका जवाब था कि खनन माफिया का नेटवर्क हमसे ज्यादा मजबूत है।असली बजरी कारोबार बनास की बजरी का है। शहर में कुंभा स्टेडियम, मीरागेट, नैनवां रोड पर बजरी का अवैध कारोबार होता है। बूंदी से बनास तक पहुंचने के रूट में देवली से सांथली, वनस्थली, अजमेर रास्ते में देवली, सावर होते हुए नाफा का खेड़ा, जहाजपुर से पहले शकरगढ़, काछोला से आगे दबलाना रोड, सवाईमाधोपुर रोड से परिवहन होता है। जिले में नदियों में अवैध रूप से गहरे गड्ढे खोदकर रोज बेशुमार बजरी निकाली जा रही है।इससे नदियों का मूल स्वरूप और जलीय तंत्र से जुड़े जीवों का पर्यावास भी उजड़ रहा है। इसमें संदेह है कि इतने बड़े अवैध कारोबार की पुलिस, प्रशासन को भनक भी नहीं होगी। बजरी माफिया का दुस्साहस इतना ज्यादा है कि अवैध बजरी खनन का फोटो खींचना जान जोखिम में डालने से कम नहीं, वे हमला कर नुकसान पहुंचा सकते हैं, फिर भी रिपोर्टर दिनेश शर्मा और फोटोग्राफर कौशल सैनी ने यह रिस्क उठाते हुए उनके फोटो खींचे, कैमरा देखकर वहां अफरा-तफरी मच गई।चढ़ती-उतरती रहती है रेटबनास से लाई गई बजरी के एक ट्रक की रेट बाजार में 40 से 60 हजार रुपए और एक ट्रॉली बजरी की कीमत 12 से 15 हजार रुपए है। वहीं काली बजरी की कीमत तीन हजार से साढ़े तीन हजार रुपए चल रही है। यह रेट स्थाई नहीं है, पुलिस, प्रशासन की सख्ती होने पर रेत की रेट बढ़ जाती है।
पहली तस्वीर चंबल नदी की...रोज 25-30 ट्रॉली बजरी खनन
केशवरायपाटन के पास चंबल नदी की है। यहां शाम करीब 5 बजे नदी के उस पार रंगपुर गांव के पास किनारे पर अवैध रूप से बजरी जमा कर बनाए गए टीले से ट्रैक्टर ट्रॉलियों में बजरी भरी जा रही थी। बजरी माफिया बेखौफ होकर बजरी भर रहे थे। बजरी के चार-पांच जगह पहाड़नुमा ढेर लगे थे। कई लोग नदी किनारे बजरी खोदकर ट्रॉली में भर रहे थे। पास ही क्रिकेट खेल रहे युवा विनोद शर्मा, कैलाश, रामावतार बताते हैं कि काफी समय से अवैध बजरी खनन चल रहा है, ये नजारा यहां आम है। जागरूक लोगों ने कई बार अधिकारियों को सूचना दी थी, लेकिन कुछ नहीं हुआ। उल्टे कई बार तो शिकायतकर्ताओं का नाम बजरी माफियाओं को बता दिया जाता है। ऐसे में बजरी माफिया आमजन को भी धमकाते हैं। यहां से रोज करीब 25-30 ट्रॉली बजरी रोज जाती है।
दूसरी तस्वीर मेज नदी की...यहां किसी का कोई डर नहीं
खटकड़ स्थित मेज नदी की है। यहां मेन रोड की पुलिया से 200 मीटर दूर नदी खोदकर ट्रॉली में बजरी भर रहे थे। चार-पांच जने बजरी के ढेर करने में लगे हुए थे। समय सुबह करीब 10 बजे का था। यहां बजरी माफियाओं में किसी का कोई डर नहीं था, जबकि पुलिया से आने-जाने वाले आम लोगों को बजरी खनन करते हुए साफ नजर आ रहे थे। जैसे ही भास्कर संवाददाता का कैमरा देखा तो सब लोग इधर-उधर दौड़ने लगे। यहां से रोज सात-आठ ट्रॉली बजरी खनन कर रही है। नदी में काली रेत निकल रही है। इसकी बाजार कीमत 3000 से 3500 रुपए है। वहीं एक ट्रॉली बजरी परिवहन, खुदाई, ढुलाई का खर्च 500 से 700 रुपए पड़ता है। खटकड़ के घनश्याम का कहना था कि पुलिस-प्रशासन सब मिले हुए हैं। यहां पुलिस चौकी भी है, पर पुलिस को अवैध बजरी खनन नजर नहीं आता।
कानूनी पक्ष : अभयारण्य क्षेत्र में अवैध खनन अपराध, 7 साल की सजा भी तय
राट्रीय चंबल अभयारण्य की सीमा चंबल नदी के दोनों ओर किनारे से एक किलोमीटर की सीमा तक है। अभयारण्य क्षेत्र में शिकार, मछली पकड़ना, अवैध खनन, वन्यजीवों के अंडों को नष्ट करना वन्य जीव सरंक्षण अधिनियम 1972 के तहत अपराध है। इसके तहत 7 साल की सजा या 25 हजार रुपए जुर्माना या दोनों हो सकते हैं। चंबल नदी में भी बजरी के अवैध खनन पर सुप्रीम कोर्ट की रोक है। काली बजरी के अवैध कारोबार में सबके हाथ काले हैं। वन विभाग, खान विभाग, प्रशासन, पुलिस के अफसरों की शह के बिना ये अवैध कारोबार मुश्किल ही नहीं, नामुमकिन है। अवैध खनन के दौरान टीले में दबने से चार जनों की मौत व खनन माफिया में कारोबार को लेकर गैंगवार, मर्डर तक हो चुके, पर ये सारे महकमे आंख बंद किए हुए हैं। कापरेन थाना क्षेत्र में बिरज के रास्ते खरेड़, टाकरवाड़ा व बालोद से माफिया अवैध रूप से पत्थरों का खनन करते हैं। डोलर, रोटेदा में पुलिया के पास व सुंडा में, खेड़लीबंधा, ढीकोली से देईखेड़ा के आजंदा पुराना बलदेवपुरा, चंहिचा, बहड़ावली व बसवाड़ा से चंबल से खनन करते हैं।
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