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गोपालपुरा गांव की यह जमीन मेरे पिता कन्हैया, चाचा धूलाजी और कृष्णाजी के संयुक्त खाते की कृषि भूमि है। 13 जनवरी को नायब तहसीलदार मंडाना विनय चतुर्वेदी, पटवारी राधेश्याम प्रजापति व भू-अभिलेख निरीक्षक जगदीश शर्मा तीनों मौके पर हमारे गांव आए थे। जिन्होंने विभाजन प्रस्ताव में (खसरा नम्बर-120) की भूमि का विभाजन हम तीनों खातेदारान को बराबर-बराबर दर्ज किया। 1 फरवरी को वाद (संख्या 42/09) का फैसला आना था। फैसले से पहले हमारे गांव का बलराम मीणा मुझसे मिला और कहा कि मेरी जमीन का वाद का फैसला आने वाला है।
जब विभाजन प्रस्ताव में हम तीनों को जमीन मिल गई तो फैसला हमारे पक्ष में आना तय था, इसलिए मैंने 4 लाख रुपए नहीं दिए। मेरे पास इतने रुपयों की व्यवस्था भी नहीं थी। जब 1 फरवरी को फैसला मेरे पक्ष में नहीं आया तो मुझे धक्का लगा और मैं एकान्त बाबू व बलराम मीणा से मिला। एकांत बाबू ने कहा कि तुम्हारे समझ में तो आया नहीं और जमनालाल ने 5 लाख रुपए दे दिए... अब कुछ नहीं हो सकता।
फैसले के बाद मैंने अपील और उस पर स्टे के आदेश के लिए आरएए कोटा में अपील की। जिसमें सुनवाई 8 फरवरी को है। लेकिन, तब तक मुआवजा राशि जमनालाल को रिलीज नहीं हो सके, इसलिए मैं एप्लीकेशन लेकर एसडीएम लाडपुरा दीपक मित्तल के ऑफिस गया। जहां फिर मेरा सामना एकांत बाबू से हुआ।
वो मुस्कुराए और बलराम से मिलने व उनके बताए अनुसार काम करने को कहा। बलराम मीणा ने कहा कि मुआवजा राशि सोमवार तक रोकने के लिए एकांत बाबू ने एक लाख रुपए देने के लिए कहा है। बस... इसके बाद मैंने घूसखोरी के इस पूरे मामले को खोलने की ठान ली और एसीबी ऑफिस पहुंच गया। जहां शिकायत देकर यह सारे तथ्य बताएं। गोपनीय सत्यापन में एसीबी ने पुष्टि की और फिर एकांत को गिरफ्तार कर लिया।
(जैसा पीड़ित ने भास्कर रिपोर्टर को बताया और एसीबी में दस्तावेज दिए।)
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