तेजी से बढ़ते शहरों की सबसे बड़ी समस्या कचरे का निपटान है। इस समस्या का हल मुंबई के भाभा एटॉमिक रिसर्च सेंटर (बार्क) ने ढूंढ लिया है। इसकी नई टेक्नोलॉजी कोबाल्ट-60 की गामा किरणें सीवरेज लाइन से निकलने वाले कचरे को खाद में बदल देगी। इस खाद का इस्तेमाल खेतों में पैदावार बढ़ाने के लिए हो सकेगा। रावतभाटा स्थित रेडिएशन एवं आइसोटोप टेक्नोलॉजी बोर्ड (ब्रिट) ने इसके लिए गामा सोर्स बनाया है। अहमदाबाद में प्रयोग सफल रहा है। जल्द ही इंदौर में शुरू होने जा रहा है। रावतभाटा से 13 जनवरी को इसके लिए कोबाल्ट 60 का सोर्स इंदौर भेजा जाएगा।
ब्रिट मुंबई के अधिकारी ने बताया कि कोबाल्ट-60 कैंसर के इलाज के साथ कई कामों में उपयोगी साबित हो रहा है। अब सफाई में भी काम आएगा। भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र और ब्रिट के साझा प्रयास से तैयार टेक्नोलॉजी सफल रही है। इस प्रक्रिया में कोबाल्ट-60 से निकली गामाा किरणों के जरिए सूखे सीवेज कीचड़ को साफ किया जाता है। इसे सुखाकर गामा किरणों से नुकसानदेह बैक्टीरिया को खत्म कर खाद में बदल देते हैं। यह इंसानों के लिए सुरक्षित है। अहमदाबाद नगर निगम ने 100 टन क्षमता का संयंत्र स्थापित किया है। रावतभाटा के कोबाल्ट फैसिलिटी के प्रमुख सईद अनवर ने बताया कि सीवेज ट्रीटमेंट के लिए भी अब कोबाल्ट सोर्स रेडियो आइसोटोप दिए जाएंगे।
क्या है कोबाल्ट-60
कोबाल्ट-60 कोबाल्ट का एक आइसोटोप है। कैंसर के उपचार से लेकर औद्योगिक रेडियोग्राफी तक में इसका उपयोग होता है। इंडस्ट्रियल रेडियोग्राफी में यह इमारत के ढांचे में कमी का पता लगाता है। इसके अलावा चिकित्सा संबंधी उपकरणों की स्वच्छता, मेडिकल रेडियोथैरेपी, लैब के रेडियोधर्मी स्रोत, स्मोक डिटेक्टर, रेडियो एक्टिव ट्रेसर्स, फूड और ब्लड इरेडिएशन में भी इसी का इस्तेमाल होता है।
पीएमओ ने भी इसके प्रचार-प्रसार के लिए कहा
अहमदाबाद में प्रोजेक्ट सफल होने के बार इंदौर नगर निगम आगे आया है। परियोजना पूरी कर दी गई है। अब रावतभाटा से कोबाल्ट सोर्स जाते ही अपशिष्ट प्रबंधन शुरू हो जाएगा। इसके लिए वहां पर तैयारी चल रही है। इस प्रौद्योगिकी को बेहतर पाए जाने पर प्रधानमंत्री कार्यालय ने भी इसके प्रचार-प्रसार के निर्देश दिए हैं। राज्यसभा में भी इस पर चर्चा हुई थी। उसके बाद इस टेक्नोलॉजी को सभी बड़े शहरों और सीवरेज सिस्टम के कचरे से परेशान छोटे शहरों को इसे अपनाने की सलाह दी गई है।
रोबोट के जरिए जमा किया जाता है कोबाल्ट-60: दरअसल परमाणु रिएक्टरों को नियंत्रण करने के लिए नियंत्रण छड़ें होती हैं। इसमें कोबाल्ट-59 की छड़ें लगाई जाती है। नियंत्रण के दौरान एक न्यूट्रॉन छड़ ग्रहण कर लेती है और कोबाल्ट-60 का सोर्स बन जाता है। इसे सुरक्षित प्रोसेसिंग से रोबोट और आधुनिक मशीनों की मदद से जमा किया जाता है। इसकी विशेष पैकिंग कर कैंसर अस्पतालों और फूड प्रिजर्वेशन के लिए भेजा जाता है।
Copyright © 2022-23 DB Corp ltd., All Rights Reserved
This website follows the DNPA Code of Ethics.