श्रीरामचरित मानस के अयोध्या कांड में राम राज्याभिषेक की तैयारी, कैकयी-मंथरा संवाद, के बाद राम जी को वनवास मिल जाता है। राम-सीता और लक्ष्मण वनगमन पर जाते हैं। गोस्वामी तुलसीदासजी ने मानस में भगवान राम के प्रति विषाद का प्रेम, रामजी-सुमंत का संवाद, राम-केवट के प्रेम का विशेष प्रसंग, राम का चित्रकूट पहुंचना, दशरथ का प्राण त्यागना बताते हैं। अंत में भगवान श्रीराम भरत को चरण पादूका प्रदान करते हैं आर भरत अयोध्या लौट आते हैं। अयोध्याकांड में 326 छंद, दोहे और सोरठ समाहित हैं।
आज अयोध्याकांड की संक्षिप्त जानकारी एवं संबंधित चित्र।
जिस दिन राम जी के राज्याभिषेक की तैयारी थी, उसी दिन कैकयी ने राजा दशरथ से राम की जगह भरत को राज और राम को चौदह वर्ष का वनवास देने का वचन मांग लिया।
भ्राताप्रेम राम को बुलाने भरत पीछे गए थे
जब भरत को पता चला कि मां कैकयी ने राम को वनवास दिला दिया तो वे अपने भाई को बुलाने पीछे गए। रामजी ने उन्हें अपने खड़ाऊ दिए। भरत ने इन्हीं खड़ाऊ से राज किया।
गंगा पार केवट ने पार कराई गंगा, उतराई नहीं ली
केवट ने राम, लखन व सीता मां को गंगा पार कराई। उतराई में सीता ने मुद्रिका दी। केवट ने यह कहते हुए वापस लौटा दी कि जब मैं आपके घाट आऊं तब मुझे पार लगा देना।
सीख-आज्ञा का पालन: मानस सिखाती है कि माता-पिता की सुनो
नवाह्नपारायण के तहत कलियुग के संपूर्णों पापों का विध्वंश करने वाले मानस का दूसरा सोपान अयोध्याकांड है। इस कांड में पिताजी की आज्ञा पालन करते हुए श्रीराम-सीता व लक्ष्मण 14 वर्ष वनवास पर चले गए। यह अध्याय हमें सिखाता है कि परिस्थिति भले कैसी भी हो, माता-पिता की आज्ञा का पालन हमारे लिए बहुत जरुरी है। इसके साथ ही भरत का भाई प्रेम भी वंदनीय है। मानस की सीख है कि अपने भाई का सम्मान करें और बड़े भाई की बात कभी टालनी नहीं चाहिए। आपसी प्रेम मानस ही सिखाती है।
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